Ganga Mangala Stotram In Hindi
गंगा मंगल स्तोत्रम्(Ganga Mangala Stotram) एक अत्यंत पवित्र और मंगलकारी स्तोत्र है, जो माँ गंगा को समर्पित है। यह स्तोत्र माँ गंगा की महिमा, उनकी कृपा और उनके पवित्र जल की शुद्धि शक्ति का वर्णन करता है। हिंदू धर्म में गंगा नदी को मात्र एक नदी नहीं, बल्कि माँ गंगा के रूप में पूजनीय माना जाता है, जो सभी जीवों के पापों का नाश करती हैं और मोक्ष प्रदान करती हैं।
गंगा मंगल स्तोत्रम् का महत्व
- इस स्तोत्र का पाठ करने से माँ गंगा की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
- यह पापों का नाश करता है और आत्मा को शुद्ध करता है।
- मोक्ष प्राप्ति के लिए इसे अत्यंत प्रभावी माना जाता है।
- इसे गंगा दशहरा, माघ पूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा, और विशेष रूप से गंगा स्नान के समय पाठ करने का विशेष महत्व है।
- यह स्तोत्र मानसिक शांति, शारीरिक शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है।
गंगा मंगल स्तोत्रम् के पाठ की विधि
- प्रातः स्नान करने के बाद शुद्ध मन और शरीर से इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
- यदि संभव हो, तो इसे गंगा किनारे या गंगाजल से स्नान करने के बाद पढ़ना अत्यंत शुभ होता है।
- पाठ के दौरान माँ गंगा का ध्यान करें और उनका आशीर्वाद मांगें।
- गंगा दशहरा, माघ पूर्णिमा, और सोमवती अमावस्या के दिन इसका पाठ विशेष फलदायी होता है।
- इसे 21 बार या 108 बार पढ़ने से विशेष लाभ प्राप्त होते हैं।
Ganga Mangala Stotram
नमस्तुभ्यं वरे गङ्गे मोक्षसौमङ्गलावहे।
प्रसीद मे नमो मातर्वस मे सह सर्वदा।
गङ्गा भागीरथी माता गोमुखी सत्सुदर्शिनी।
भगीरथतपःपूर्णा गिरीशशीर्षवाहिनी।
गगनावतरा गङ्गा गम्भीरस्वरघोषिणी।
गतितालसुगाप्लावा गमनाद्भुतगालया।
गङ्गा हिमापगा दिव्या गमनारम्भगोमुखी।
गङ्गोत्तरी तपस्तीर्था गभीरदरिवाहिनी।
गङ्गाहरिशिलारूपा गहनान्तरघर्घरा।
गमनोत्तरकाशी च गतिनिम्नसुसङ्गमा।
गङ्गाभागीरथीयुक्तागम्भीरालकनन्दभा।
गङ्गा देवप्रयागा मा गभीरार्चितराघवा।
गतनिम्नहृषीकेशा गङ्गाहरिपदोदका।
गङ्गागतहरिद्वारा गगनागसमागता।
गतिप्रयागसुक्षेत्रा गङ्गार्कतनयायुता।
गतमानवपापा च गङ्गा काशीपुरागता।
गहनाघविनाशा च गत्युत्तमसुखावनी।
गतिकालीनिवासा च गङ्गासागरसङ्गता।
गङ्गा हिमसमावाहा गम्भीरनिधिसालया।
गद्यपद्यनुतागीता गद्यपद्यप्रवाहिणी।
गानपुष्पार्चिता गङ्गा गाहितागह्वगह्वरा
गायगाम्भीर्यमाधुर्या गायमाधुर्यवाग्वरा।
नमस्ते तुहिने गङ्गे नीहारमयनिर्झरि।
गङ्गासहस्रवाग्रूपे नमस्ते मानसालये।
मङ्गलं पुण्यगङ्गे ते सहस्रश्लोकसंस्फुरे।
सहस्रायुतसत्कीर्ते सत्त्वस्फूर्ते सुमङ्गलम्।