24.4 C
Gujarat
मंगलवार, दिसम्बर 3, 2024

श्री दशावतार स्तोत्र (श्रीमच्छङ्कराचार्य द्वारा रचित) Dashavatar Stotram

Post Date:

श्रीमच्छङ्कराचार्य द्वारा रचित दशावतारस्तोत्र का महत्व

श्रीमच्छङ्कराचार्य द्वारा रचित दशावतारस्तोत्र भारतीय धर्म, दर्शन और भक्ति साहित्य का एक महत्वपूर्ण और अत्यंत प्रशंसनीय स्तोत्र है। यह स्तोत्र वैष्णव धर्म के अनुयायियों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें भगवान विष्णु के दस प्रमुख अवतारों का वर्णन किया गया है। इन अवतारों के माध्यम से भगवान विष्णु ने संसार की रक्षा और धर्म की पुनः स्थापना के लिए समय-समय पर अवतार धारण किए। यह ग्रंथ न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

दशावतार स्तोत्र का सार भगवान विष्णु के उन दस अवतारों के गुणगान में है, जिनके माध्यम से उन्होंने इस संसार में विभिन्न युगों में अवतार लिया। यह अवतार मुख्य रूप से मत्स्य, कूर्म, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि के रूप में जाने जाते हैं। इन अवतारों का वर्णन करते हुए, शंकराचार्य ने इस स्तोत्र में उनके महान कार्यों और धर्म की स्थापना में उनके योगदान को विस्तार से बताया है।

दशावतार की अवधारणा भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा में गहरी जड़ें रखती है। यह मान्यता है कि जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म का उत्थान होता है, तब-तब भगवान विष्णु किसी न किसी रूप में अवतार धारण कर इस पृथ्वी पर आते हैं और धर्म की पुनः स्थापना करते हैं।

श्रीमच्छङ्कराचार्य का यह स्तोत्र न केवल भगवान विष्णु के प्रति उनकी भक्ति का अद्भुत प्रमाण है, बल्कि इसमें उनके दार्शनिक दृष्टिकोण की भी झलक मिलती है। उन्होंने भगवान विष्णु के प्रत्येक अवतार के माध्यम से यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि संसार की हर युग में एक ही सत्य की पुनः स्थापना होती है, भले ही रूप अलग-अलग हों। मत्स्य अवतार में जब भगवान विष्णु ने एक छोटी मछली के रूप में अवतार लिया, तब भी उनका उद्देश्य संसार की रक्षा और धर्म की स्थापना करना ही था। इसी प्रकार, कूर्म और वाराह अवतारों में भी उन्होंने पृथ्वी और सृष्टि की रक्षा की, जबकि नृसिंह अवतार में उन्होंने अपने भक्त की रक्षा करते हुए अत्याचारी हिरण्यकशिपु का विनाश किया।

श्रीमच्छङ्कराचार्य द्वारा रचित इस स्तोत्र का एक अन्य महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि इसमें भक्ति और ज्ञान का अद्भुत संयोग है। दशावतारों का वर्णन करते हुए, शंकराचार्य ने भगवान विष्णु के प्रति अपनी अटूट भक्ति को व्यक्त किया है, वहीं दूसरी ओर, उन्होंने प्रत्येक अवतार के माध्यम से जीवन के विभिन्न आयामों को भी समझाने का प्रयास किया है। उदाहरण के लिए, वामन अवतार में उन्होंने भगवान के उस रूप का वर्णन किया है, जिसमें उन्होंने अपने भक्त बली से तीन पग भूमि मांगी और फिर सारा संसार नापकर यह दिखाया कि भगवान के पास सब कुछ होते हुए भी वे अपने भक्तों के प्रति हमेशा दयालु और करुणामयी होते हैं।

इस स्तोत्र की भाषा सरल होते हुए भी अत्यंत प्रभावशाली है। इसमें संस्कृत भाषा का उपयोग करते हुए, उसे इतना सरल और सुबोध बनाया है कि आम भक्त भी इसे आसानी से समझ सकते हैं। इस स्तोत्र का पाठ भक्तों को भगवान विष्णु के प्रति उनकी भक्ति को और भी दृढ़ करने में सहायक होता है।

अंततः, श्रीमच्छङ्कराचार्य द्वारा रचित दशावतारस्तोत्र भारतीय भक्ति साहित्य का एक अनमोल रत्न है। इसमें भगवान विष्णु के दस अवतारों का वर्णन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपरा का भी प्रतीक है। इस स्तोत्र के माध्यम से शंकराचार्य ने यह सिद्ध किया है कि भगवान विष्णु के अवतारों की कथा अनंत और अपार है, जो सदियों से भक्तों के मन में भक्ति और श्रद्धा का संचार करती आ रही है। यह स्तोत्र आज भी भक्तों के बीच अत्यंत लोकप्रिय है और उन्हें धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।

इस प्रकार, दशावतारस्तोत्र भगवान विष्णु की महिमा और उनके अद्वितीय अवतारों की कथा का एक सुंदर और सारगर्भित संकलन है, जिसे पढ़ना और समझना हर भक्त के लिए आवश्यक है।

 

श्री दशावतार स्तोत्र Dashavatar Stotram With Lyrics

चलल्लोलकल्लोलकल्लोलिनीशस्फुरन्नक्रचक्रातिवक्त्राम्बुलिनः ।
हतो येन मीनावतारेण शङ्खः स पायादपायाज्जगद्वासुदेवः ॥ १॥

धरानिर्जरारातिभारादपारादकूपारनीरातुराधः पतन्ती ।
धृता कूर्मरूपेण पृष्ठोपरिष्टे सदेवो मुदे वोस्तु शेषाङ्गशायी ॥ २॥

उद्रग्रे रदाग्रे सगोत्रापि गोत्रा स्थिता तस्थुषः केतकाग्रे षडङ्घ्रेः ।
तनोति श्रियं सश्रियं नस्तनोतु प्रभुः श्रीवराहावतारो मुरारिः ॥ ३॥

उरोदार आरम्भसंरम्भिणोसौ रमासम्भ्रमाभङ्गुराग्रैर्नखाग्रैः ।
स्वभक्तातिभक्त्याभिव्यक्तेन दारुण्यघौघं सदा वः स हिंस्यान्नृसिंहः ॥ ४॥

छलादाकलय्य त्रिलोकीं बलीयान् बलिं सम्बवन्ध त्रिलोकीबलीयः ।
तनुत्वं दधानां तनुं सन्दधानो विमोहं मनो वामनो वः स कुर्यात् ॥ ५॥

हतक्षत्रियासृक्प्रपानप्रनृत्तममृत्यत्पिशाचप्रगीतप्रतापः ।
धराकारि येनाग्रजन्माग्रहारं विहारं क्रियान्मानसे वः स रामः ॥ ६॥

नतग्रीवसुग्रीव-साम्राज्यहेतुर्दशग्रीव-सन्तान-संहारकेतुः ।
धनुर्येन भग्नं महत्कामहन्तुः स मे जानकीजानिरेनांसि हन्तु ॥ ७॥

घनाद्गोधनं येन गोवर्धनेन व्यरक्षि प्रतापेन गोवर्धनेन ।
हतारातिचक्री रणध्वस्तचक्री पदध्वस्तचक्री स नः पातु चक्री ॥ ८॥

धराबद्धपद्मासनस्थाङ्घ्रियष्टिर्नियम्यानिलं न्यस्तनासाग्रदृष्टिः ।
य आस्ते कलौ योगिनां चक्रवर्ती स बुद्धः प्रबुद्धोऽस्तु निश्चिन्तवर्ती ॥ ९॥

दुरापारसंसारसंहारकारी भवत्यश्ववारः कृपाणप्रहारी
मुरारिर्दशाकारधारीह कल्की करोतु द्विषां ध्वंसनं वः स कल्की ॥ १०॥

इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं दशावतारस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Share post:

Subscribe

Popular

More like this
Related

अंगारक नामावली स्तोत्रम् Angaraka Namavali Stotram

अंगारक नामावली स्तोत्रम् Angaraka Namavali Stotramhttps://youtu.be/YIwnTBfgG6c?si=x85GbFT0sA-aHA13अंगारक नामावली स्तोत्रम् एक...

चंद्र कवचम् Chandra Kavacham

चंद्र कवचम् Chandra Kavachamhttps://youtu.be/J9ejFmCLzWI?si=KTCgWqu5p7tWj5G5गौतम ऋषि द्वारा रचित चंद्र कवचम्...

बुध कवचम् Budha Kavacham

बुध कवचम् Budha Kavachamबुध कवचम् एक महत्वपूर्ण वैदिक स्तोत्र...

बृहस्पति कवचम् Brihaspati Kavacham

बृहस्पति कवचम् Brihaspati Kavachamबृहस्पति कवचम् एक धार्मिक स्तोत्र है,...
error: Content is protected !!