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बुधवार, अक्टूबर 16, 2024

गणेशावतार स्तोत्रं आङ्गिरस उवाच Ganesh Avatar Stotra

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गणेशावतार स्तोत्रं: आङ्गिरस ऋषि का स्तवन Ganesh Avatar Stotra

गणेशावतार स्तोत्रं एक प्रमुख धार्मिक ग्रंथ है, जिसमें भगवान गणेश के विभिन्न अवतारों का स्तवन किया गया है। यह स्तोत्र ऋषि आङ्गिरस द्वारा रचित माना जाता है। आङ्गिरस ऋषि प्राचीन काल के महर्षियों में से एक थे और उन्हें वेदों, यज्ञों और तंत्र-विद्या का गहन ज्ञान था। उनके द्वारा रचित गणेशावतार स्तोत्रम भगवान गणेश की महिमा, स्वरूप और उनके विविध अवतारों की स्तुति करता है।

आङ्गिरस उवाच

आङ्गिरस उवाच का अर्थ है “आङ्गिरस ने कहा”। यह पारंपरिक रूप से धार्मिक ग्रंथों में उस समय उपयोग होता है जब किसी ऋषि या संत द्वारा किसी विशेष मंत्र, स्तुति या श्लोक की रचना और उद्घोषणा की जाती है। इसमें आङ्गिरस ऋषि भगवान गणेश की उपासना के संदर्भ में उनके दिव्य रूपों का वर्णन करते हैं। गणेशावतार स्तोत्रं में भगवान गणेश को विभिन्न स्वरूपों में प्रस्तुत किया गया है, जिनका भक्तों के जीवन पर गहरा प्रभाव होता है।

गणेशावतार स्तोत्र के प्रमुख तत्व

  1. गणेशावतारों का वर्णन: गणेशावतार स्तोत्रं में भगवान गणेश के विभिन्न अवतारों का विस्तार से वर्णन किया गया है। इनमें गणेश के मुख्य रूपों जैसे गजानन, विघ्नहर्ता, लंबोदर, एकदंत आदि का उल्लेख होता है। इन अवतारों के माध्यम से भगवान गणेश ने संसार के विघ्नों और बाधाओं को दूर किया।
  2. भगवान गणेश की स्तुति: इस स्तोत्र में भगवान गणेश के शारीरिक लक्षणों, गुणों, और दिव्यता की स्तुति की जाती है। गणेश जी की महिमा को गाते हुए ऋषि आङ्गिरस ने उन्हें विघ्नहर्ता, संकटमोचन, बुद्धि और ज्ञान के देवता के रूप में प्रस्तुत किया है।
  3. विघ्नों का नाशक: स्तोत्र में भगवान गणेश की शक्ति और क्षमता का उल्लेख है कि वे किस प्रकार अपने भक्तों के जीवन से समस्त विघ्नों और बाधाओं को समाप्त करते हैं। इस स्तोत्र का पाठ करने से सभी प्रकार के विघ्नों का नाश होता है और जीवन में सफलता प्राप्त होती है।
  4. सहजता और सरलता: गणेशावतार स्तोत्रम की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह सरल और सहज भाषा में लिखा गया है, जिससे साधारण भक्त भी इसे आसानी से पढ़ सकते हैं और भगवान गणेश की महिमा का अनुभव कर सकते हैं।
  5. भक्ति और विश्वास का प्रतीक: यह स्तोत्र भक्तों में भगवान गणेश के प्रति गहरा भक्ति भाव और विश्वास उत्पन्न करता है। गणेश जी को सर्वप्रथम पूज्य माना गया है, और इस स्तोत्र में भी उनका वही स्थान है, जो किसी भी कार्य के आरंभ में उनकी पूजा और स्तुति करने की परंपरा को दर्शाता है।

गणेशावतार स्तोत्रं का महत्व

गणेशावतार स्तोत्रं का पाठ करने से व्यक्ति को मानसिक शांति, सुख और समृद्धि प्राप्त होती है। यह स्तोत्र न केवल विघ्नों का नाश करता है, बल्कि भगवान गणेश के आशीर्वाद से भक्त को सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करने वाले व्यक्ति के जीवन में कोई भी बाधा स्थायी रूप से नहीं टिकती और उसे हर क्षेत्र में उन्नति प्राप्त होती है।

गणेशावतार स्तोत्रं आङ्गिरस उवाच Ganesh Avatar Stotra

अनन्ता अवताराश्च गणेशस्य महात्मनः ।
न शक्यते कथां वक्तुं मया वर्षशतैरपि ॥१॥

संक्षेपेण प्रवक्ष्यामि मुख्यानां मुख्यतां गतान् ।
अवतारांश्च तस्याष्टौ विख्यातान् ब्रह्मधारकान् ॥२॥

वक्रतुण्डावतारश्च देहिनां ब्रह्मधारकः ।
मत्सरासुरहन्ता स सिंहवाहनगः स्मृतः ॥३॥

एकदन्तावतारो वै देहिनां ब्रह्मधारकः ।
मदासुरस्य हन्ता स आखुवाहनगः स्मृतः ॥४॥

महोदर इति ख्यातो ज्ञानब्रह्मप्रकाशकः ।
मोहासुरस्य शत्रुर्वै आखुवाहनगः स्मृतः ॥५॥

गजाननः स विज्ञेयः साङ्ख्येभ्यः सिद्धिदायकः ।
लोभासुरप्रहर्ता च मूषकगः प्रकीर्तितः ॥६॥

लम्बोदरावतारो वै क्रोधसुरनिबर्हणः ।
आखुगः शक्तिब्रह्मा सन् तस्य धारक उच्यते ॥७॥

विकटो नाम विख्यातः कामासुरप्रदाहकः ।
मयूरवाहनश्चायं सौरमात्मधरः स्मृतः ॥८॥

विघ्नराजावतारश्च शेषवाहन उच्यते ।
ममासुरप्रहन्ता स विष्णुब्रह्मेति वाचकः ॥९॥

धूम्रवर्णावतारश्चाभिमानासुरनाशकः ।
आखुवाहनतां प्राप्तः शिवात्मकः स उच्यते ॥१०॥

एतेऽष्टौ ते मया प्रोक्ता गणेशांशा विनायकाः ।
एषां भजनमात्रेण स्वस्वब्रह्मप्रधारकाः ॥११॥

स्वानन्दवासकारी स गणेशानः प्रकथ्यते ।
स्वानन्दे योगिभिर्दृष्टो ब्रह्मणि नात्र संशयः ॥१२॥

तस्यावताररूपाश्चाष्टौ विघ्नहरणाः स्मृताः ।
स्वानन्दभजनेनैव लीलास्तत्र भवन्ति हि ॥१३॥

माया तत्र स्वयं लीना भविष्यति सुपुत्रक ।
संयोगे मौनभावश्च समाधिः प्राप्यते जनैः ॥१४॥

अयोगे गणराजस्य भजने नैव सिद्ध्यति ।
मायाभेदमयं ब्रह्म निवृत्तिः प्राप्यते परा ॥१५॥

योगात्मकगणेशानो ब्रह्मणस्पतिवाचकः ।
तत्र शान्तिः समाख्याता योगरूपा जनैः कृता ॥१६॥

नानाशान्तिप्रभेदश्च स्थाने स्थाने प्रकथ्यते ।
शान्तीनां शान्तिरूपा सा योगशान्तिः प्रकीर्तिता ॥१७॥

योगस्य योगता दृष्टा सर्वब्रह्म सुपुत्रक ।
न योगात्परमं ब्रह्म ब्रह्मभूतेन लभ्यते ॥१८॥

एतदेव परं गुह्यं कथितं वत्स तेऽलिखम् ।
भज त्वं सर्वभावेन गणेशं ब्रह्मनायकम् ॥१९॥

पुत्रपौत्रादिप्रदं स्तोत्रमिदं शोकविनाशनम् ।
धनधान्यसमृद्ध्यादिप्रदं भावि न संशयः ॥२०॥

धर्मार्थकाममोक्षाणां साधनं ब्रह्मदायकम् ।
भक्तिदृढकरं चैव भविष्यति न संशयः ॥२१॥

इति मुद्गलपुराणान्तर्गतं गणेशावतारस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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