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बुधवार, अक्टूबर 16, 2024

शिवजी की आरती Shiv Aarti

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शिवजी की आरती Shiv Aarti

आरती श्री शिव जी की: एक संपूर्ण जानकारी

शिव जी की आरती हिन्दू धर्म में एक प्रमुख पूजा पद्धति है जो भगवान शिव को समर्पित है। शिव जी को त्रिनेत्रधारी, महादेव, नीलकंठ, और भोलेनाथ के नामों से भी जाना जाता है। आरती में शिव जी की महिमा का गुणगान किया जाता है और उन्हें सृष्टि के संहारक के रूप में पूजा जाता है। शिव की आराधना कई रूपों में की जाती है, जिनमें से आरती एक अत्यंत महत्वपूर्ण विधि है, जो दिन या रात के किसी भी समय की जा सकती है। आरती के माध्यम से भक्त भगवान शिव को अपनी श्रद्धा और भक्ति अर्पित करते हैं।

शिव जी की आरती का महत्त्व

आरती एक धार्मिक अनुष्ठान है जिसमें दीप या ज्योति जलाकर भगवान की स्तुति की जाती है। यह पूजा में एक अटूट हिस्सा है और इसे संपूर्ण विधि-विधान से करना आवश्यक माना जाता है। शिव जी की आरती का उद्देश्य भक्त और भगवान के बीच एक आत्मीय संबंध स्थापित करना है। आरती के दौरान, शिव भक्त शिव जी के प्रति अपनी विनम्रता, समर्पण और आस्था व्यक्त करते हैं।

आरती की धुन और शब्द भगवान शिव की शक्तियों, गुणों और उनकी महिमा का वर्णन करते हैं। इसे सुनने और गाने से मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। आरती शिव जी की कृपा प्राप्त करने का सरल और प्रभावी माध्यम मानी जाती है, और यह कहा जाता है कि इससे भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।

आरती का स्वरूप

आरती में मुख्य रूप से एक दीपक जलाकर उसे शिव जी की मूर्ति या चित्र के समक्ष घुमाया जाता है। इस दीपक को पाँच या सात बत्तियों का बनाया जाता है, जिन्हें घी या तेल से जलाया जाता है। आरती करते समय शंख, घंटियाँ और मृदंग आदि का प्रयोग भी किया जाता है, जिससे पूजा का वातावरण और भी दिव्य हो जाता है।

आरती के शब्द सरल और भक्तिपूर्ण होते हैं, जिन्हें आमतौर पर संस्कृत या हिंदी भाषा में गाया जाता है। यहाँ पर शिव जी की आरती के कुछ प्रमुख श्लोक या पद दिए जा रहे हैं:

शिव जी की आरती के शब्द

जय शिव ओंकारा, भज हर शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धाङ्गी धारा॥ ॐ जय…

एकानन चतुरानन पंचानन राजै।
हंसासन गरुड़ासन वृषवाहन साजै॥ ॐ जय…

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहै।
तीनों रूप निरखते त्रिभुवन मन मोहे॥ ॐ जय…

अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद चंदा सोहै त्रिपुरारी॥ ॐ जय…

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक ब्रह्मादिक भूतादिक संगे॥ ॐ जय…

करके मध्ये कमंडलु चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी ॥ ॐ जय…

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका।
त्रिगुण शिव जी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी सुख सम्पत्ति पावे ॥ ॐ जय…

आरती का अनुष्ठान

  1. शुद्धिकरण: आरती करने से पहले पूजा स्थल और शरीर को शुद्ध किया जाता है। शिवलिंग या शिव जी की मूर्ति के समक्ष दीपक, फूल, और जल अर्पित किया जाता है।
  2. आरती की तैयारी: आरती करने के लिए दीपक, कपूर, घी, घंटी, शंख आदि आवश्यक सामग्रियों को एकत्र किया जाता है।
  3. दीप प्रज्वलन: दीपक में घी या तेल डालकर उसे जलाया जाता है और भगवान शिव के समक्ष इसे घुमाया जाता है।
  4. घंटियाँ बजाना: आरती के दौरान भक्त घंटियाँ बजाते हैं और शंख ध्वनि करते हैं, जिससे वातावरण में दिव्यता का अनुभव होता है।
  5. प्रसाद वितरण: आरती के बाद भक्तों में प्रसाद वितरित किया जाता है और शिव जी के चरणों में चढ़ाया हुआ जल ग्रहण किया जाता है।

शिव आरती के लाभ

  1. मानसिक शांति: शिव जी की आरती में भाग लेने से मानसिक शांति और सुकून मिलता है। यह ध्यान और ध्यान के समान प्रभावकारी हो सकता है।
  2. नकारात्मक ऊर्जा का नाश: यह माना जाता है कि शिव जी की आरती करने से घर और मन की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मकता का संचार होता है।
  3. समस्याओं का समाधान: जो भी भक्त शिव जी की आरती करता है, उसकी सभी समस्याओं का समाधान शिव जी की कृपा से हो जाता है। उनके आशीर्वाद से दुख, कष्ट और कठिनाइयाँ दूर हो जाती हैं।
  4. धार्मिक और आत्मिक विकास: शिव जी की आरती नियमित रूप से करने से धार्मिक और आत्मिक विकास होता है। भक्त का भगवान के प्रति विश्वास और गहरा होता है।

आरती के समय

शिव जी की आरती दिन के किसी भी समय की जा सकती है, परंतु विशेष रूप से इसे सुबह और शाम को करना अत्यंत शुभ माना जाता है। सोमवार का दिन शिव जी की पूजा के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है और इस दिन आरती करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

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