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बुधवार, अक्टूबर 8, 2025

शुद्ध सच्चिदानंद सनातन अज अक्षर आनंद-सागर – Shuddh Sachchidaanand Sanaatan Aj Akshar Aanand Saagar

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शुद्ध सच्चिदानंद सनातन अज अक्षर आनंद-सागर

Shuddh Sachchidaanand Sanaatan Aj Akshar Aanand Saagar

 

शुद्ध, सच्चिदानंद, सनातन, अज, अक्षर, आनंद-सागर ।

अखिल चराचरमें नित ब्यापक, अखिल जगतके उजियागर ।।

बिश्व-मोहिनी मायाके मोहन मनमोहन ! नटनागर ! रसिक श्याम ! मानव-बपु-घारी ! दिव्य, भरे गागर सागर ।। १ ।।

भक्त-भीति-मंजन, जन-रंजन, नाथ निरंजन एक अपार ।

नव-नीरद-श्यामल-सुंदर शुचि, सर्वगुणाकर, सुषमा-सार ।।

भक्तराज वसुदेव-देवकीके सुख-साधन, प्राणाधार निज लीलासे प्रकट हुए अत्याचारी के कारागार ।। २ ।।

पावन दिव्य प्रेम पूरित व्रज- लीला प्रेमीजन-सुखमूल ।

तन-मन-हारिणि बजी बंसरी रसमयकी कालिंदी-कूल ।।

गिरिधर, विविध रूप धर हरिने हर ली विधि-सुरेंद्रकी भूल कंस-केशि-बध, साधु-त्राण कर यादव-कुलके हर दृच्छूल ।। ३ ।।

समरांगण में सखा भक्तके अश्वोंकी कर पकड़ लगाम ।

बने मार्गदर्शक लीलामय प्रेम-सुघोदधि, जन-सुखधाम ||

प्रेमी पार्थव्याजसे सबको करुणाकर लोचन अभिराम शरणागतिका मधुर मनोहर तत्व सुनाया सार्थ ललाम || ४ ||

‘मन्मना भव, भव मन्द्भक्तः, मद्याजी, कर मुझे प्रणाम ।

सत्य शपथयुत कहता हूँ प्रिय सखे ! मुझीमें ले बिश्राम ॥

छोड़ सभी धर्मोको मेरी एक शरण हो जा निष्काम चिंता मत कर, सभी पापसे तुझे छुड़ा दूँगा प्रियकाम  ॥ ५ ॥

श्रीहरिके सुखमय मंगलमय प्रण-वाक्योंकी स्मृति कर दीन ! चित्त !

सभी चंचलता तजकर चार चरणमें हो जा लीन !

रसिकबिहारी मुरलीधर, गीतामायकके हो आधीन त्रिभुवनमोहनके अतुलित सौंदर्याम्बुधिका बन जा मीन  ॥ ६ ॥

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