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शुक्रवार, जून 20, 2025

वामन पुराण

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वामन पुराण

वामन पुराण हिंदू धर्म के अठारह महापुराणों में से एक है, जिसकी रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी। यह पुराण भगवान विष्णु के वामन अवतार से संबंधित होने के कारण वैष्णव पुराण माना जाता है, लेकिन इसमें भगवान शिव की महिमा का भी विस्तृत वर्णन मिलता है, जिसके कारण इसे शैव पुराण की श्रेणी में भी रखा जाता है। पुराणों की सूची में यह चौदहवें स्थान पर आता है, जैसा कि स्वयं महर्षि पुलस्त्य ने देवर्षि नारद को बताया था। वामन पुराण में दस हजार श्लोक होने की बात कही जाती है, हालांकि वर्तमान में इसके केवल छह हजार श्लोक ही उपलब्ध हैं। इसका उत्तर भाग प्राप्त नहीं है, फिर भी यह अपने आप में संपूर्णता लिए हुए है।

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वामन पुराण की संरचना और विषय-वस्तु

वामन पुराण दो भागों में विभक्त है: पूर्व भाग और उत्तर भाग। इसमें कूर्म कल्प के वृत्तांत और त्रिवर्ण की कथा का वर्णन है। पुराणों के पांच लक्षणसर्ग (सृष्टि की उत्पत्ति), प्रतिसर्ग (सृष्टि का पुनर्जनन), वंश (देवताओं और ऋषियों की वंशावली), मन्वंतर (मनुओं के शासनकाल), और वंशानुचरित (सूर्य और चंद्र वंश का इतिहास) का समावेश इस पुराण में यथोचित रूप से किया गया है। इसके अतिरिक्त, इसमें अध्यात्मिक विवेचन, कर्मकांड, सदाचार, और विभिन्न धार्मिक कथाओं का भी उल्लेख है।

इस पुराण का मुख्य वक्ता महर्षि पुलस्त्य हैं, जबकि देवर्षि नारद इसके प्रथम प्रश्नकर्ता और श्रोता हैं। नारद द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर में ही इस पुराण की कथाएं और उपदेश सामने आते हैं। यह पुराण भगवान विष्णु के माहात्म्य को तो दर्शाता ही है, साथ ही शिव, शक्ति, और अन्य देवी-देवताओं की महिमा को भी स्थापित करता है, जिससे इसमें वैष्णव, शैव, और शाक्त मतों का समन्वय दिखाई देता है।

प्रमुख कथाएं

  1. वामन अवतार और बलि की कथा:
    वामन पुराण में भगवान विष्णु के वामन अवतार की कथा प्रमुखता से वर्णित है। यह कथा असुर राजा बलि और भगवान वामन के बीच के प्रसंग को दर्शाती है। बलि ने अपने तप और पराक्रम से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था, जिससे देवताओं का स्वर्ग छिन गया। देवमाता अदिति की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने वामन रूप में अवतार लिया। वामन ने एक बौने ब्राह्मण के रूप में बलि से तीन पग भूमि मांगी। बलि के वचन देने पर वामन ने अपने विशाल रूप में पहले पग में भूलोक, दूसरे पग में स्वर्गलोक को नाप लिया। तीसरे पग के लिए स्थान न होने पर बलि ने अपना सिर आगे कर दिया। भगवान वामन ने बलि की भक्ति और वचनबद्धता से प्रसन्न होकर उसे सुतल लोक का स्वामी बनाया और स्वयं उसके द्वारपाल के रूप में रहने का वरदान दिया। यह कथा भक्ति, दान, और वचन की महत्ता को दर्शाती है।
  2. दक्ष यज्ञ का विध्वंस:इस पुराण में दक्ष यज्ञ के विध्वंस की कथा भी अन्य पुराणों से भिन्न रूप में प्रस्तुत की गई है। लोकप्रिय कथा के अनुसार सती अपने पिता दक्ष के यज्ञ में बिना निमंत्रण के जाती हैं और वहां शिव का अपमान देखकर आत्मदाह कर लेती हैं। लेकिन वामन पुराण के अनुसार, सती को गौतम-पुत्री जया से पता चलता है कि उसकी बहनें दक्ष के यज्ञ में गई हैं, जबकि शिव को निमंत्रण नहीं मिला। इस शोक में सती अपने प्राण त्याग देती हैं। इसके बाद शिव के आदेश पर वीरभद्र दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर देते हैं।
  3. कामदेव का दहन:कामदेव के दहन की कथा भी इस पुराण में अनूठे रूप में मिलती है। जब शिव दक्ष यज्ञ का विध्वंस कर रहे थे, तब कामदेव ने उन पर ‘उन्माद’, ‘संताप’, और ‘विज्रम्भण’ नामक बाण चलाए। इससे व्यथित शिव सती के लिए विलाप करने लगे और वे दारूकवन में चले गए। वहां ऋषि-पत्नियां शिव पर मोहित हो गईं, जिसके कारण ऋषियों ने शिवलिंग को खंडित होने का शाप दे दिया। शापवश शिवलिंग धरती पर गिरा, जिसका कोई ओर-छोर न था। अंततः सभी देवताओं ने शिव की स्तुति की और विष्णु ने चार वर्णों द्वारा शिवलिंग की पूजा का नियम स्थापित किया।
  4. प्रह्लाद की कथा: प्रह्लाद भगवान विष्णु के एक प्रमुख भक्त थे। उनकी कथा न केवल भक्ति की महिमा को दर्शाती है, बल्कि उसमें यह भी दिखाया गया है कि सच्ची भक्ति और धर्म के सामने अत्याचार कभी टिक नहीं सकते। प्रह्लाद की कथा वामन पुराण में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

वामन पुराण में दर्शाए गए अन्य महत्वपूर्ण विषय

  • आध्यात्मिक उपदेश: आत्मज्ञान की प्राप्ति को सर्वोच्च माना गया है। यह कहा गया है कि जो व्यक्ति आत्मज्ञान प्राप्त कर लेता है, उसे व्रत या तीर्थ की आवश्यकता नहीं रहती। सच्चा ब्राह्मण वही है जो धन की लालसा न करे और प्राणियों के कल्याण को अपना धर्म माने।
  • तीर्थों का वर्णन: वामन पुराण में कुरुक्षेत्र, कुरुजांगल, पृथूदक जैसे तीर्थों का विस्तृत वर्णन है। कुरुक्षेत्र को ब्रह्मावर्त कहा गया है और बलि का यज्ञ भी यहीं संपन्न हुआ था।
  • सृष्टि और भूगोल: सृष्टि की उत्पत्ति, विकास, और भारतवर्ष के पर्वतों, नदियों, और स्थानों का उल्लेख भी इसमें मिलता है।
  • व्रत और पूजा: विभिन्न व्रतों, जैसे करवा चौथ, और पूजा विधियों का महत्व बताया गया है।

वामन पुराण का सांस्कृतिक महत्व

वामन पुराण का सांस्कृतिक महत्व भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं का विस्तृत वर्णन है। इस पुराण में विभिन्न त्योहारों, रीति-रिवाजों और परंपराओं का भी उल्लेख है।

त्योहार और उत्सव

वामन पुराण में विभिन्न त्योहारों और उत्सवों का उल्लेख है। इसमें विशेष रूप से वामन जयंती का महत्व बताया गया है। वामन जयंती भगवान वामन के अवतार दिवस के रूप में मनाई जाती है और यह त्योहार विशेष रूप से विष्णु भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है।

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कश्यप द्वारा भगवान वामन की स्तुति

कश्यप उवाच

नमोऽस्तु ते देवदेव एकशृङ्ग वृषार्चे सिन्धुवृष वृषाकपे सुरवृष अनादिसम्भव रुद्र कपिल विष्वक्सेन
सर्वभूतपते ध्रुव धर्माधर्म वैकुण्ठ वृषाव अनादिमध्यनिधन धनञ्जय शुचिश्रवः पृश्नितेजः
निजजय अमृतेशय सनातन त्रिधाम तुषित महातत्त्व
लोकनाथ पद्मनाभ विरिश्चे बहुरूप अक्षय अक्षर हव्यभुज खण्डपरशो
शक्र मुञ्जकेश हंस महादक्षिण हृषीकेश सूक्ष्म महानियमधर विरज लोकप्रतिष्ठ
अरूप अग्रज धर्मज धर्मनाभ गभस्तिनाभ शतक्रतुनाभ चन्द्ररथ सूर्यतेजः
समुद्रवासः अजः सहस्त्रशिरः सहस्त्रपाद अधोमुख महापुरुष पुरुषोत्तम
सहस्त्रबाहो सहस्त्रमूर्ते सहस्त्रास्य सहस्त्रसम्भव सहस्त्रसत्त्वं त्वामाहुः ।
पुष्पहास चरम त्वमेव वौषट् वषट्‌कारं त्वामाहुरग्रयं
मखेषु प्राशितारं सहस्त्रधारं च भूश्च भुवश्च स्वश्च
त्वमेव वेदवेद्य ब्रह्मशय ब्राह्मणप्रिय
त्वमेव द्यौरसि मातरिश्वाऽसि धर्मोऽसि होता पोता
मन्ता नेता होमहेतुस्त्वमेव अग्रय विश्वधाम्ना त्वमेव दिग्भिः
सुभाण्ड इज्योऽसि सुमेधोऽसि समिधस्त्वमेव मतिर्गतिर्दाता त्वमसि ।
मोक्षोऽसि योगोऽसि
। सृजसि ।
धाता परमयज्ञोऽसि सोमोऽसि दीक्षितोऽसि दक्षिणाऽसि विश्वमसि ।
स्थविर हिरण्यनाभ नारायण त्रिनयन आदित्यवर्ण आदित्यतेजः
महापुरुष पुरुषोत्तम आदिदेव सुविक्रम प्रभाकर शम्भो स्वयम्भो भूतादिः
महाभूतोऽसि विश्वभूत विश्वं त्वमेव विश्वगोप्ताऽसि पवित्रमसि
विश्वभव ऊर्ध्वकर्म अमृत दिवस्पते वाचस्पते घृतार्चे अनन्तकर्म वंश प्राग्वंश विश्वपातस्त्वमेव ।
वरार्थिनां त्वम् । वरदोऽसि चतुर्भिश्च चतुर्भिश्च द्वाभ्यां पञ्चभिरेव च।
हूयते च पुनर्द्राभ्यां तुम्भं होत्रात्मने नमः ॥ १ ॥

वामन पुराण की हिंदी पुस्तक

वामन पुराण की संस्कृत पुस्तक

Vaman Puran In English

FAQs for Vaman Purana

  1. वामन पुराण क्या है?

    वामन पुराण हिंदू धर्म के 18 महापुराणों में 14वें स्थान पर आता है। इसका नाम भगवान विष्णु के पांचवें अवतार “वामन” के नाम पर रखा गया है। यह पुराण मूल रूप से 10,000 श्लोकों का बताया जाता है, लेकिन वर्तमान में केवल 6,000 श्लोक ही उपलब्ध हैं। इसमें शैव और वैष्णव दोनों मतों का समन्वय देखने को मिलता है, साथ ही सृष्टि, भूगोल, तीर्थ, व्रत, और आध्यात्मिक ज्ञान का वर्णन भी किया गया है।

  2. वामन पुराण का मुख्य विषय क्या है?

    वामन पुराण का मुख्य विषय भगवान विष्णु के वामन अवतार की कथा और शिव की महिमा है। इसके साथ ही इसमें दक्ष-यज्ञ विध्वंस, कामदेव दहन, सती की मृत्यु, और शिवलिंग की पूजा जैसे प्रसंगों का वर्णन है। यह पुराण पांच लक्षणों (सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वंतर, और वंशानुचरित) को भी समाहित करता है।

  3. वामन पुराण को किसने लिखा?

    वामन पुराण को महर्षि वेदव्यास ने संकलित किया, जो सभी 18 पुराणों के रचयिता माने जाते हैं। इस पुराण में महर्षि पुलस्त्य इसके वक्ता हैं, और देवर्षि नारद इसके श्रोता हैं। ऐसा माना जाता है कि इसे विभिन्न विद्वानों ने अलग-अलग समय पर संशोधित किया होगा।

  4. वामन पुराण में कितने श्लोक और खंड हैं?

    श्लोक: मूल रूप से इसमें 10,000 श्लोक थे, लेकिन वर्तमान में केवल 6,000 श्लोक उपलब्ध हैं। इसका उत्तर भाग लुप्त हो चुका है।
    खंड: यह पुराण दो भागों में विभक्त है – पूर्व भाग और उत्तर भाग (हालांकि उत्तर भाग उपलब्ध नहीं है)।

  5. वामन पुराण में वामन अवतार की कथा क्या है?

    वामन पुराण में भगवान विष्णु के वामन अवतार की कथा इस प्रकार है:
    *असुर राजा बलि ने अपने बल से तीनों लोकों (स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल) पर अधिकार कर लिया था।
    *देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने माता अदिति के गर्भ से वामन (बौने ब्राह्मण) रूप में अवतार लिया।
    *बलि के यज्ञ में पहुंचकर वामन ने तीन पग भूमि मांगी। बलि ने सहर्ष स्वीकार किया।
    *वामन ने अपने विराट रूप में पहले पग में पृथ्वी, दूसरे में स्वर्ग नाप लिया। तीसरे पग के लिए जगह न होने पर बलि ने अपना सिर आगे किया, और वामन ने उसे पाताल भेज दिया।
    *बलि की भक्ति से प्रसन्न होकर विष्णु ने उसे सुतल लोक का स्वामी बनाया और अपने द्वारपाल के रूप में नियुक्त किया।

  6. वामन पुराण में सती की मृत्यु की कथा कैसे भिन्न है?

    प्रचलित कथा के अनुसार, सती अपने पिता दक्ष के यज्ञ में बिना निमंत्रण जाती हैं और शिव का अपमान देखकर आत्मदाह कर लेती हैं। लेकिन वामन पुराण में यह कथा अलग है:
    *गौतम-पुत्री जया सती से मिलने आती है और बताती है कि उसकी बहनें दक्ष के यज्ञ में गई हैं।
    *यह सुनकर सती को पता चलता है कि शिव को निमंत्रण नहीं मिला। वे शोक में डूब जाती हैं और वहीं प्राण त्याग देती हैं।
    *इसके बाद शिव के आदेश पर वीरभद्र दक्ष के यज्ञ का विध्वंस करता है।

  7. वामन पुराण में कामदेव दहन की कथा क्या है?

    वामन पुराण में कामदेव दहन की कथा भी अनूठी है:
    *दक्ष-यज्ञ विध्वंस के दौरान कामदेव ने शिव पर ‘उन्माद’, ‘संताप’, और ‘विज्रम्भण’ नामक तीन बाण चलाए।
    *इससे शिव सती के लिए विलाप करने लगे और व्यथित होकर बाण कुबेर के पुत्र पांचालिक को दे दिए।
    *कामदेव ने पुनः बाण चलाया तो शिव दारूकवन चले गए। वहां ऋषि-पत्नियां शिव पर आसक्त हो गईं।
    *क्रुद्ध ऋषियों ने शिवलिंग को खंडित होने का शाप दिया। शाप से शिवलिंग धरती पर गिरा, जिसका कोई अंत नहीं था।
    *देवताओं की स्तुति से शिव प्रसन्न हुए और लिंग रूप में पुनः स्थापित हुए।

  8. वामन पुराण में कौन-कौन से तीर्थों का वर्णन है?

    वामन पुराण में भारतवर्ष के कई तीर्थों, नदियों, और पर्वतों का उल्लेख है, जैसे:
    *कुरुक्षेत्र (ब्रह्मावर्त)
    *सरस्वती और दृषद्वती नदियां
    *नर्मदा नदी
    *विभिन्न पवित्र स्थल और उनके महात्म्य।

  9. वामन पुराण में आध्यात्मिक संदेश क्या है?

    *आत्मज्ञान प्राप्त व्यक्ति को व्रत-तीर्थ की आवश्यकता नहीं होती।
    *सच्चा ब्राह्मण वही है जो धन की लालसा न करे, दान को हीन समझे, और प्राणियों के कल्याण को अपना धर्म माने।
    *पाप-पुण्य, नरक, और मोक्ष के मार्ग का वर्णन भी इसमें है।

  10. वामन पुराण को शैव पुराण क्यों कहा जाता है?

    हालांकि इसका नाम वामन अवतार से लिया गया है, जो विष्णु से संबंधित है, इसमें शैव मत का विस्तृत वर्णन है। शिवलिंग पूजा, शिव-पार्वती विवाह, और कामदेव दहन जैसे प्रसंग इसे शैव पुराण की श्रेणी में लाते हैं।

  11. वामन पुराण में भूगोल का वर्णन कैसे है?

    इसमें सृष्टि की उत्पत्ति, विकास, और भारतवर्ष के भौगोलिक विवरण हैं। विभिन्न प्रदेशों, पर्वतों (जैसे हिमालय), और नदियों (जैसे गंगा, नर्मदा) का उल्लेख है। यह पुराण प्राचीन भारत के भूगोल को समझने में सहायक है।

  12. वामन पुराण के अन्य प्रमुख प्रसंग कौन से हैं?

    *प्रह्लाद और नर-नारायण युद्ध: भक्त प्रह्लाद की भक्ति और युद्ध का वर्णन।
    *शिव-पार्वती विवाह: शिव और पार्वती के विवाह की कथा।
    *दुर्गा चरित्र: भगवती दुर्गा की महिमा।
    *लक्ष्मी चरित्र: लक्ष्मी की उत्पत्ति और महत्व।
    *अंधक वध: शिव द्वारा अंधकासुर का वध।

  13. वामन पुराण का महत्व क्या है?

    *यह पुराण धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान का स्रोत है।
    *यह शैव और वैष्णव मतों के बीच समन्वय प्रस्तुत करता है।
    *व्रत, पूजा, और तीर्थाटन के महत्व को समझाता है।
    *प्राचीन भारतीय संस्कृति, भूगोल, और इतिहास की जानकारी देता है।

  14. वामन पुराण को कैसे पढ़ें या प्राप्त करें?

    *वामन पुराण संस्कृत और हिंदी अनुवाद में उपलब्ध है। इसे गीताप्रेस, गोरखपुर या अन्य प्रकाशनों से खरीदा जा सकता है।
    *ऑनलाइन पीडीएफ जो की Sanatanweb.com पर उपलब्ध है।

  15. वामन पुराण का पाठ करने के लाभ क्या हैं?

    *पापों से मुक्ति मिलती है।
    *शिव और विष्णु की भक्ति बढ़ती है।
    *आत्मज्ञान और धर्म के प्रति जागरूकता प्राप्त होती है।
    *जीवन को सार्थक बनाने की प्रेरणा मिलती है।

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