Markandey Puran
मार्कण्डेय पुराण हिंदू धर्म के अठारह महापुराणों में से एक है। यह एक प्राचीन ग्रंथ है जिसमें धर्म, दर्शन, इतिहास, पुरानी कथाएँ और वेदांत का विस्तृत वर्णन मिलता है। इस पुराण का नाम महर्षि मार्कण्डेय के नाम पर पड़ा, जो इसके मुख्य वक्ता हैं। इसमें कुल ९,००० श्लोक हैं और इसे वैष्णव, शैव, व शाक्त सभी परंपराओं में समान रूप से आदर प्राप्त है।
मार्कण्डेयपुराण का इतिहास और उत्पत्ति
मार्कण्डेय पुराण की भाषा संस्कृत है और यह श्लोकबद्ध शैली में लिखा गया है। इसकी विषयवस्तु विविधताओं से भरी हुई है और इसमें ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, विभिन्न देवताओं की कथाएँ, धर्मशास्त्र, नीति, मोक्ष, भक्ति, योग और स्त्रियों से संबंधित अनेक उपदेश शामिल हैं। इस पुराण की विशेषता यह है कि इसमें “दुर्गा सप्तशती” (या देवी महात्म्य) का भी समावेश है, जो भगवती दुर्गा के महात्म्य को दर्शाती है।
मार्कण्डेयपुराण का धार्मिक महत्व
मार्कण्डेयपुराण का धार्मिक महत्व अत्यंत उच्च है। इसमें हिंदू धर्म के विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा, अनुष्ठान और विधियों का वर्णन किया गया है। यह पुराण विशेष रूप से दुर्गा सप्तशती (चण्डीपाठ) के लिए प्रसिद्ध है, जो दुर्गा माता की महिमा का गान करता है।
मार्कण्डेयपुराण में वर्णित कथाएँ
मार्कण्डेयपुराण में कई अद्भुत और प्रेरणादायक कथाएँ हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कथाएँ निम्नलिखित हैं:
दुर्गा सप्तशती
दुर्गा सप्तशती या चण्डीपाठ मार्कण्डेयपुराण का सबसे प्रसिद्ध हिस्सा है। इसमें देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों और उनके अद्भुत पराक्रमों का वर्णन है। यह कथा बताती है कि कैसे देवी दुर्गा ने महिषासुर जैसे दानवों का वध किया और धर्म की स्थापना की।
राजा हरिश्चंद्र की कथा
राजा हरिश्चंद्र की कथा मार्कण्डेयपुराण में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह कथा सत्य, धर्म और कर्तव्यनिष्ठा की महत्वपूर्ण शिक्षा देती है। राजा हरिश्चंद्र ने अपने सत्य और धर्म के पालन के लिए सभी सुख-समृद्धियों का त्याग किया और अनेक कष्ट सहे।
मार्कण्डेय ऋषि की कथा
मार्कण्डेय ऋषि की कथा भी इस पुराण में वर्णित है। वे अपनी तपस्या और ध्यान के माध्यम से अमरत्व प्राप्त करते हैं। उनकी कथा से हमें तप, संयम और भक्ति का महत्व समझ में आता है।

मार्कण्डेयपुराण के प्रमुख अध्याय
मार्कण्डेयपुराण में कुल 137 अध्याय हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना महत्व है। यहाँ कुछ प्रमुख अध्यायों की सूची दी गई है:
- सृष्टि खंड: इस खंड में ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और उसकी संरचना का वर्णन है।
- धर्म खंड: इस खंड में धर्म, न्याय और नीति के सिद्धांतों का वर्णन है।
- माता दुर्गा खंड: इस खंड में दुर्गा माता के विभिन्न रूपों और उनकी पूजा का महत्व बताया गया है।
- राजा हरिश्चंद्र खंड: इस खंड में राजा हरिश्चंद्र की कथा का विस्तार से वर्णन है।
- मार्कण्डेय खंड: इस खंड में मार्कण्डेय ऋषि की कथा और उनकी तपस्या का वर्णन है।
मार्कण्डेयपुराण का सांस्कृतिक महत्व
मार्कण्डेयपुराण न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसमें वर्णित कथाएँ और अनुष्ठान भारतीय संस्कृति और परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। विशेष रूप से दुर्गा पूजा के अवसर पर दुर्गा सप्तशती का पाठ अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
मार्कण्डेयपुराण में नैतिक शिक्षा
इस पुराण में दी गई नैतिक शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं। सत्य, धर्म, कर्तव्य, तपस्या, और भक्ति जैसे महत्वपूर्ण मूल्य मार्कण्डेयपुराण के विभिन्न कथाओं और उपदेशों में उभरे हैं। इनसे हमें एक सच्चे और धार्मिक जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है।
मार्कण्डेयपुराण का साहित्यिक मूल्य
मार्कण्डेयपुराण का साहित्यिक मूल्य भी अत्यंत उच्च है। इसकी भाषा, शैली और कथानक की समृद्धि इसे एक उत्कृष्ट साहित्यिक कृति बनाते हैं। इसमें वर्णित काव्यात्मक और दार्शनिक तत्व इसे साहित्यिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बनाते हैं।
मार्कण्डेयपुराण के प्रभाव
मार्कण्डेयपुराण का प्रभाव केवल धार्मिक और सांस्कृतिक नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज और जीवन शैली पर भी गहरा प्रभाव डालता है। इसके उपदेश और शिक्षाएँ आज भी समाज में नैतिकता और धर्म का पालन करने की प्रेरणा देती हैं।
मार्कण्डेयपुराण का अध्ययन
मार्कण्डेयपुराण का अध्ययन विभिन्न दृष्टिकोणों से किया जा सकता है। यह न केवल धार्मिक और दार्शनिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसमें सामाजिक और सांस्कृतिक तत्व भी शामिल हैं। इसके अध्ययन से हमें प्राचीन भारतीय समाज और संस्कृति के बारे में गहन जानकारी प्राप्त होती है।
मार्कण्डेयपुराण की आधुनिक प्रासंगिकता
आज के युग में भी मार्कण्डेयपुराण की शिक्षाएँ प्रासंगिक हैं। इसके उपदेश हमें सत्य, धर्म, और कर्तव्य के पालन की प्रेरणा देते हैं। आधुनिक जीवन की जटिलताओं और चुनौतियों का सामना करने के लिए इसमें दी गई शिक्षाएँ अत्यंत उपयोगी हैं।
