हिन्दू काल गणना || Hindu Kal Ganana (Hindu Units Of Time)
प्राचीन भारतीय धार्मिक और पौराणिक समय चक्र एक अद्भुत रूप से एकदृष्टिकोण से समान है। ये प्राचीन भारतीय मापन पद्धतियाँ आज भी उपयोग में हैं। जिन्हें आपके सभी प्रश्नों का समाधान करने के लिए ऋषि मुनियों और हमारे पूर्वजों ने बनाया था, वे आज भी उपयोगी हैं। हिन्दू वैदिक ग्रंथों में लंबाई, क्षेत्र, और भार को मापन के लिए विभिन्न इकाइयां उल्लेखित हैं। ये सभी योग में भी उपयोग किए जाते हैं। हिंदू समय चक्र सूर्यसिद्धांत पुस्तक के पहले अध्याय में 11 से 23 श्लोक तक सभी पहलु को बहोत अच्छे से दर्शाया गया हैं।
वैदिक समय की सबसे छोटी काल गणना
नाक्षत्रीय मापन पद्धति
- 1 परमाणु मानवीय आँख के पलक झपकने का समय के समान = लगभग ४ सैकिण्ड
- 1 विघटि = 6 परमाणु = 24 सैकिण्ड
- 1 घटि या घड़ी = 60 विघटि = 24 मिनट
- 1 मुहूर्त = 2 घड़ियां = 48 मिनट
- 1 नक्षत्र अथवा नाक्षत्रीय दिवस = 30 मुहूर्त (दिन के शुरुआतसे अगले सूर्योदय तक, न कि आधी रात्रि से)
विज्ञान में अनुसार, परमाणु विश्व का सबसे छोटा तत्व होता है। हमारे प्राचीन विद्वानों ने कालचक्र को वर्णन करते समय काल की सबसे छोटी इकाई के रूप में परमाणु को ही स्वीकारा किया था। वायु पुराण में दिए गए विभिन्न काल खंडों के विवरण के अनुसार, दो परमाणु मिलकर एक अणु का निर्माण करते हैं और तीन अणुओं के मिलने से एक त्रसरेणु बनता है। तीन त्रसरेणुओं से एक त्रुटि, 100 त्रुटियों से एक वेध, तीन वेध से एक लव तथा तीन लव से एक निमेष (क्षण) बनता है। इसी तरह तीन निमेष से एक काष्ठा, 15 काष्ठा से एक लघु, 15 लघु से एक नाडिका, दो नाडिका से एक मुहूर्त, छह नाडिका से एक प्रहर और आठ प्रहर से एक दिन और एक रात बनते हैं। दिन और रात की गणना साठ घड़ी में भी की जाती है। इस रूप में प्रचलित एक घंटे को ढाई घड़ी के बराबर माना जा सकता है। एक माह में 15-15 दिन के दो पक्ष होते हैं, जिन्हें शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष कहा जाता है। सूर्य की दृष्टि से वर्ष में भी छह-छह माह के दो अयन होते हैं- उत्तरायण और दक्षिणायन। वैदिक काल में वर्ष के 12 महीनों के नाम ऋतुओं के आधार पर रखे गए थे, जिनमें चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन शामिल थे। इसी तरह दिनों के नाम ग्रहों के नामों पर रखे गए- रवि, सोम (चंद्रमा), मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि। इस प्रकार, काल खंडों को निश्चित आधार पर निश्चित नाम दिए गए और पल-पल की गणना स्पष्ट की गई।
वैदिक समय पद्धति (सबसे छोटा अंश परमाणु)
- 1 तॄसरेणु = 6 ब्रह्माण्डीय
- 1 त्रुटि = 3 तॄसरेणु, या सैकिण्ड का 1/1687.5 भाग
- 1 वेध =100 त्रुटि
- 1 लावा = 3 वेध.[2]
- 1 निमेष = 3 लावा, या पलक झपकना
- 1 क्षण = 3 निमेष
- 1 काष्ठा = 5 क्षण, = 8 सैकिण्ड
- 1 लघु =15 काष्ठा, = 2 मिनट
- 15 लघु = = एक नाड़ी के बराबर होते हैं, जिसे दण्ड भी कहते हैं। इसका मान उस समय के बराबर होता है, जिसमें छह पल भार के (चौदह आउन्स) के ताम्र पात्र से पूर्णतः निकल जाता है, जबकि उस पात्र में चार मासे की चार अंगुल लंबी सूई से छेद किया गया होता है। ऐसा पात्र समय की माप बताने के लिए तैयार किया जाता है।
- 2 दण्ड = एक मुहूर्त के बराबर होते हैं।
- 6 या 7 मुहूर्त = एक याम या एक चौथाई दिन या रात्रि के बराबर होते हैं।
- 4 याम या प्रहर = एक दिन या रात्रि होती है।
विष्णु पुराण में दी गई एक अन्य वैकल्पिक पद्धति समय मापन पद्धति अनुभाग, विष्णु पुराण, भाग-१, अध्याय तॄतीय निम्न है।
विष्णु पुराण के तृतीय अध्याय में, हमें एक अन्य रूप से समय को मापने की वैकल्पिक पद्धति का परिचय मिलता है। इस पद्धति में समय को मापने के लिए विशेष तरीके का उल्लेख किया गया है।
- 10 पलक झपकने का समय = 1 काष्ठा
- 35 काष्ठा = 1 कला
- 20 कला = 1 मुहूर्त
- 10 मुहूर्त = 1 दिवस (24 घंटे)
- 30 दिवस = 1 मास
- 6 मास = 1 अयन
- 2 अयन = 1 वर्ष, = 1 दिव्य दिवस
चाँद्र मापन पद्धति || Chandra Mapan Technique
- 1 पक्ष या फिर 1 पखवाड़ा = 15 तिथियाँ
- चान्द्र मास 2 प्रकार का होता है – 1) अमान्त : शुक्लप्रतिपदा से अमावास्या तक अर्थात् शुक्लादिकृष्णान्त मास वेदांग ज्योतिष मानता है। 2) पूर्णिमान्त। इसके अलावा सूर्यसिद्धान्तादि लौकिक ज्योतिष के पक्षधर दूसरा पक्ष मानते हैं पूर्णिमान्त। अर्थात् कृष्ण प्रतिपदासे सुरुआत कर के पूर्णिमा तक एक महिना।
- 1 ऋतु = २ मास
- 1अयन = 3 ॠतुएं
- 1 वर्ष= 2 अयन तक का होता है
शुक्लयजुर्वेदसंहिता | २७|४५,३०|१५ ,२२|२८,२७|४५ ,२२|३१ |
ब्रह्माण्डपुराण | १|२४|१३९-१४३ |
लिंगपुराण | १|६१|५०-५४ |
वायुपुराण | १|५३|१११-११५ |
म.भारत.आश्वमेधिक पर्व | ४४|२,४४|१८ |
कौटलीय अर्थशास्त्र | २|२० |
सुश्रुतसंहिता सूत्रस्थान | ६|३-९ |
ऊष्ण कटिबन्धीय मापन पद्धति
- 1 याम = 7½ घटि
- आठ याम आधा दिन = दिवस या रात्रि
- एक अहोरात्र = नाक्षत्रीय दिन
चारों युग || Four Yug
- 4 चरण (1,728,000 सौरवर्ष) = सतयुग
- 3 चरण (1,296,000 सौरवर्ष) = त्रेतायुग
- 2 चरण (864,000 सौरवर्ष) = द्वापरयुग
- 1 चरण (432,000 सौरवर्ष) = कलियुग