27.7 C
Gujarat
मंगलवार, नवम्बर 4, 2025

हिरण्य गर्भ सूक्तम्

Post Date:

Hiranya Garbha Suktam In Hindi

हिरण्यगर्भ सूक्तम्(Hiranya Garbha Suktam) ऋग्वेद में वर्णित एक महत्त्वपूर्ण सूक्त है, जिसमें सृष्टि के आदिकाल, ब्रह्मांड की उत्पत्ति और ब्रह्म (परम तत्व) के स्वरूप का गूढ़ वर्णन किया गया है। यह सूक्त वेदों के दिव्य ज्ञान को प्रकट करने वाला एक रहस्यमय और गूढ़ स्रोत माना जाता है।

नाम की व्युत्पत्ति

  • हिरण्य का अर्थ है “स्वर्ण” (सोना) या “तेजस्वी।”
  • गर्भ का अर्थ है “कोख” या “बीज।”
  • सूक्तम् का अर्थ है “स्तुति” या “श्लोकों का समूह।”

अतः हिरण्यगर्भ सूक्तम् का शाब्दिक अर्थ है “स्वर्णिम गर्भ (ब्रह्मांड के मूल कारण) की स्तुति।”

स्रोत और महत्व

यह सूक्त ऋग्वेद (मंडल 10, सूक्त 121) में मिलता है और इसमें 10 मंत्र हैं। इसे वेदों के गूढ़तम रहस्यों में से एक माना जाता है क्योंकि यह सृष्टि की उत्पत्ति और परमात्मा के प्रथम स्वरूप का वर्णन करता है।

यह सूक्त सृष्टि के प्रारंभिक रहस्य को उद्घाटित करता है और यह दर्शाता है कि सृष्टि की उत्पत्ति से पहले केवल हिरण्यगर्भ (ब्रह्मांडीय चेतना) ही विद्यमान था। यही परमात्मा बाद में संपूर्ण सृष्टि का आधार बना।

हिरण्यगर्भ सूक्तम् का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण

  • आध्यात्मिक दृष्टि से यह सूक्त हमें सिखाता है कि संपूर्ण ब्रह्मांड एक ही ऊर्जा या चेतना से उत्पन्न हुआ है।
  • आधुनिक भौतिकी में भी “बिग बैंग” सिद्धांत इस तथ्य की पुष्टि करता है कि संपूर्ण ब्रह्मांड एक “सिंगुलरिटी” से उत्पन्न हुआ।
  • वैदिक दृष्टि से इसे “हिरण्यगर्भ” के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो सृष्टि की आदिसत्ता है।

हिरण्य गर्भ सूक्तम्Hiranya Garbha Suktam

(ऋ.१०.१२१)

हि॒र॒ण्य॒ग॒र्भ-स्सम॑वर्त॒ताग्रे॑ भू॒तस्य॑ जा॒तः पति॒रेक॑ आसीत् ।
स दा॑धार पृथि॒वी-न्द्यामु॒तेमा-ङ्कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥ १

य आ॑त्म॒दा ब॑ल॒दा यस्य॒ विश्व॑ उ॒पास॑ते प्र॒शिषं॒-यँस्य॑ दे॒वाः ।
यस्य॑ छा॒यामृतं॒-यँस्य॑ मृ॒त्युः कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥ २

यः प्रा॑ण॒तो नि॑मिष॒तो म॑हि॒त्वैक॒ इद्राजा॒ जग॑तो ब॒भूव॑ ।
य ईशे॑ अ॒स्य द्वि॒पद॒श्चतु॑ष्पदः॒ कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥ ३

यस्ये॒मे हि॒मव॑न्तो महि॒त्वा यस्य॑ समु॒द्रं र॒सया॑ स॒हाहुः ।
यस्ये॒माः प्र॒दिशो॒ यस्य॑ बा॒हू कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥ ४

येन॒ द्यौरु॒ग्रा पृ॑थि॒वी च॑ दृ॒ल्​हा येन॒ स्वः॑ स्तभि॒तं-येँन॒ नाकः॑ ।
यो अ॒न्तरि॑क्षे॒ रज॑सो वि॒मानः॒ कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥ ५

य-ङ्क्रन्द॑सी॒ अव॑सा तस्तभा॒ने अ॒भ्यैक्षे॑ता॒-म्मन॑सा॒ रेज॑माने ।
यत्राधि॒ सूर॒ उदि॑तो वि॒भाति॒ कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥ ६

आपो॑ ह॒ यद्बृ॑ह॒तीर्विश्व॒माय॒-न्गर्भ॒-न्दधा॑ना ज॒नय॑न्तीर॒ग्निम् ।
ततो॑ दे॒वानां॒ सम॑वर्त॒तासु॒रेकः॒ कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥ ७

यश्चि॒दापो॑ महि॒ना प॒र्यप॑श्य॒द्दक्ष॒-न्दधा॑ना ज॒नय॑न्तीर्य॒ज्ञम् ।
यो दे॒वेष्विधि॑ दे॒व एक॒ आसी॒त्कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥ ८

मा नो॑ हिंसीज्जनि॒ता यः पृ॑थि॒व्या यो वा॒ दिवं॑ स॒त्यध॑र्मा ज॒जान॑ ।
यश्चा॒पश्च॒न्द्रा बृ॑ह॒तीर्ज॒जान॒ कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥ ९

प्रजा॑पते॒ न त्वदे॒तान्य॒न्यो विश्वा॑ जा॒तानि॒ परि॒ ता ब॑भूव ।
यत्का॑मास्ते जुहु॒मस्तन्नो॑ अस्तु व॒यं स्या॑म॒ पत॑यो रयी॒णाम् ॥ १०

हिरण्यगर्भ सूक्तम् वेदों का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्तोत्र है, जिसमें सृष्टि की उत्पत्ति, ब्रह्मांड की संरचना और परमात्मा की सर्वोच्चता का वर्णन किया गया है। यह सूक्त न केवल दार्शनिक और आध्यात्मिक रूप से गूढ़ है, बल्कि यह सृष्टि के वैज्ञानिक रहस्यों की भी झलक देता है। जो भी व्यक्ति श्रद्धा और विश्वास के साथ इस सूक्त का पाठ करता है, उसे आत्मज्ञान, आध्यात्मिक शक्ति और परमात्मा की कृपा प्राप्त होती है।



कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Share post:

Subscribe

Popular

More like this
Related

धन्वन्तरिस्तोत्रम् | Dhanvantari Stotram

धन्वन्तरिस्तोत्रम् | Dhanvantari Stotramॐ नमो भगवते धन्वन्तरये अमृतकलशहस्ताय,सर्वामयविनाशनाय, त्रैलोक्यनाथाय...

दृग तुम चपलता तजि देहु – Drg Tum Chapalata Taji Dehu

दृग तुम चपलता तजि देहु - राग हंसधुन -...

हे हरि ब्रजबासिन मुहिं कीजे – He Hari Brajabaasin Muhin Keeje

 हे हरि ब्रजबासिन मुहिं कीजे - राग सारंग -...

नाथ मुहं कीजै ब्रजकी मोर – Naath Muhan Keejai Brajakee Mor

नाथ मुहं कीजै ब्रजकी मोर - राग पूरिया कल्याण...
error: Content is protected !!