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मंगलवार, अक्टूबर 22, 2024

सूर्य हृदय स्तोत्रम् Surya Hridaya Stotram

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सूर्य हृदय स्तोत्रम् Surya Hridaya Stotram

सूर्य हृदय स्तोत्रम् हिंदू धर्म के प्रमुख स्तोत्रों में से एक है, जो भगवान सूर्य को समर्पित है। इसे विशेष रूप से उनकी पूजा और ध्यान के लिए किया जाता है। यह स्तोत्र एक शक्ति और आत्मविश्वास को बढ़ाने वाला है, जो व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। इसके नियमित पाठ से मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक लाभ होते हैं।

सूर्य हृदय स्तोत्रम् का महत्त्व:

सूर्य हृदय स्तोत्रम् का उल्लेख महाभारत के रामायण में आता है। रामायण के युद्ध कांड में जब भगवान राम रावण के साथ युद्ध कर रहे थे और कई प्रयासों के बाद भी सफलता नहीं मिल रही थी, तब अगस्त्य ऋषि ने भगवान राम को सूर्य हृदय स्तोत्रम् का पाठ करने की सलाह दी थी। इस स्तोत्र के प्रभाव से भगवान राम ने ऊर्जा और आत्मबल प्राप्त किया और रावण को पराजित किया।

स्तोत्र की विशेषताएँ:

  • सूर्य को आदित्य का रूप: सूर्य हृदय स्तोत्रम् में भगवान सूर्य को आदित्य कहा गया है, जो ब्रह्मांड में जीवन देने वाली प्रमुख ऊर्जा के स्रोत हैं। सूर्य को विश्व का आत्मा और सभी जीवों का रक्षक माना जाता है।
  • स्वास्थ्य और जीवन: इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को स्वास्थ्य लाभ मिलता है और यह दीर्घायु, समृद्धि और शांति की प्राप्ति में सहायक होता है। यह रोगों को नष्ट करने वाला और मानसिक तनाव को कम करने वाला माना जाता है।
  • ध्यान और योग: सूर्य को ध्यान का प्रमुख केंद्र माना गया है। जो व्यक्ति नियमित रूप से सूर्य हृदय स्तोत्रम् का पाठ करते हैं, उन्हें मानसिक शांति और ध्यान की गहराई प्राप्त होती है।

सूर्य हृदय स्तोत्रम् का पाठ:

सूर्य हृदय स्तोत्रम् का पाठ सूर्योदय के समय किया जाना अत्यधिक शुभ माना जाता है। इसे स्नान करने के बाद, स्वच्छ वस्त्र धारण कर सूर्य को अर्घ्य देने के साथ करना चाहिए। नियमित रूप से इसके पाठ से व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ होते हैं।

सूर्य हृदय स्तोत्रम् के पाठ के लाभ:

  1. शारीरिक ऊर्जा में वृद्धि: यह स्तोत्र शरीर की ऊर्जा को बढ़ाने में सहायक होता है। सूर्य की किरणों का लाभ उठाते हुए, यह पाठ व्यक्ति को जीवन में सक्रिय और उर्जावान बनाता है।
  2. स्वास्थ्य में सुधार: यह माना जाता है कि सूर्य हृदय स्तोत्रम् का नियमित पाठ करने से व्यक्ति की स्वास्थ्य समस्याएँ दूर हो जाती हैं, विशेषकर नेत्र रोग, त्वचा रोग और हृदय रोग।
  3. मन की शांति: मानसिक शांति और सकारात्मक सोच के लिए इस स्तोत्र का पाठ अत्यंत लाभकारी है।
  4. आत्मबल और साहस: यह स्तोत्र व्यक्ति के आत्मबल को बढ़ाता है और उसे साहस और धैर्य प्रदान करता है।
  5. नकारात्मकता से मुक्ति: सूर्य हृदय स्तोत्रम् का पाठ व्यक्ति के चारों ओर से नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर करता है और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है।

स्तोत्र का पाठ कैसे करें:

  • सुबह सूर्योदय के समय सूर्य को अर्घ्य देने के बाद इस स्तोत्र का पाठ करें।
  • शांत और साफ वातावरण में बैठकर ध्यान से इसका उच्चारण करें।
  • पाठ के समय भगवान सूर्य का ध्यान करें और उनके आशीर्वाद की प्रार्थना करें।

सूर्य हृदय स्तोत्रम् का पाठ Surya Hridaya Stotram

व्यास उवाच –
अथोपतिष्ठेदादित्यमुदयन्तं समाहितः ।
मन्त्रैस्तु विविधैः सौरै ऋग्यजुःसामसम्भवैः ॥

उपस्थाय महायोगं देवदेवं दिवाकरम् ।
कुर्वीत प्रणतिं भूमौ मूर्ध्ना तेनैव मन्त्रतः ॥

ॐ खद्योताय च शान्ताय कारणत्रयहेतवे ।
निवेदयामि चात्मानं नमस्ते ज्ञानरूपिणे ॥

नमस्ते घृणिने तुभ्यं सूर्याय ब्रह्मरूपिणे ।
त्वमेव ब्रह्म परममापो ज्योती रसोऽमृतम् ।
भूर्भुवःस्वस्त्वमोङ्कारः शर्वरुद्रः सनातनः ॥

पुरुषः सन्महोऽन्तस्थं प्रणमामि कपर्दिनम् ।
त्वमेव विश्वं बहुधा जात यज्जायते च यत् ।
नमो रुद्राय सूर्याय त्वामहं शरणं गतः ॥

प्रचेतसे नमस्तुभ्यं नमो मीढुष्टमाय ते ।
नमो नमस्ते रुद्राय त्वामहं शरणं गतः ।
हिरण्यबाहवे तुभ्यं हिरण्यपतये नमः ॥

अम्बिकापतये तुभ्यमुमायाः पतये नमः ।
नमोऽस्तु नीलग्रीवाय नमस्तुभ्यं पिनाकिने ॥

विलोहिताय भर्गाय सहस्राक्षाय ते नमः ।
नमो हंसाय ते नित्यमादित्याय नमोऽस्तु ते ॥

नमस्ते वज्रहस्ताय त्र्यम्बकाय नमो नमः ।
प्रपद्ये त्वां विरूपाक्षं महान्तं परमेश्वरम् ॥

हिरण्मये गृहे गुप्तमात्मानं सर्वदेहिनाम् ।
नमस्यामि परं ज्योतिर्ब्रह्माणं त्वां परां गतिम् ॥

विश्वं पशुपतिं भीमं नरनारीशरीरिणम् ।
नमः सूर्याय रुद्राय भास्वते परमेष्ठिने ॥

उग्राय सर्वभक्षाय त्वां प्रपद्ये सदैव हि ।
एतद्वै सूर्यहृदयं जप्त्वा स्तवमनुत्तमम् ॥

प्रातः कालेऽथ मध्याह्ने नमस्कुर्याद्दिवाकरम् ।
इदं पुत्राय शिष्याय धार्मिकाय द्विजातये ॥

प्रदेयं सूर्यहृदयं ब्रह्मणा तु प्रदर्शितम् ।
सर्वपापप्रशमनं वेदसारसमुद्भवम् ।
ब्राह्मणानां हितं पुण्यमृषिसङ्घैर्निषेवितम् ॥

अथागम्य गृहं विप्रः समाचम्य यथाविधि ।
प्रज्वाल्य विह्निं विधिवज्जुहुयाज्जातवेदसम् ॥

ऋत्विक्पुत्रोऽथ पत्नी वा शिष्यो वाऽपि सहोदरः ।
प्राप्यानुज्ञां विशेषेण जुहुयुर्वा यताविधि ॥

पवित्रपाणिः पूतात्मा शुक्लाम्बरधरः शुचिः ।
अनन्यमानसो वह्निं जुहुयात् संयतेन्द्रियः ॥

Credit Parmarh Astro

FAQs of सूर्य हृदय स्तोत्रम् Surya Hridaya Stotram

1. सूर्य हृदय स्तोत्रम् क्या है?

सूर्य हृदय स्तोत्रम् एक प्राचीन हिंदू स्तोत्र है जो सूर्य देव की आराधना के लिए रचित है। यह स्तोत्र विशेष रूप से महाभारत के युद्ध में भगवान राम द्वारा रावण के साथ युद्ध के दौरान ऋषि अगस्त्य द्वारा दिया गया था। इसे नियमित रूप से पाठ करने से सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में शक्ति, समृद्धि और सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।

2. सूर्य हृदय स्तोत्रम् का पाठ कब और कैसे करना चाहिए?

सूर्य हृदय स्तोत्रम् का पाठ प्रातःकाल सूर्य उदय के समय करना श्रेष्ठ माना जाता है। इसे सूर्योदय के समय खुली हवा में या छत पर खड़े होकर, सूर्य को अर्घ्य देकर करना चाहिए। पाठ करते समय मन को एकाग्र रखना और भक्ति भाव से स्तोत्र का उच्चारण करना अत्यंत लाभकारी होता है। पाठ करने से पहले स्नान करना भी शुभ माना जाता है।

3. सूर्य हृदय स्तोत्रम् के क्या लाभ हैं?

सूर्य हृदय स्तोत्रम् का नियमित पाठ करने से मानसिक और शारीरिक शक्ति मिलती है। यह स्तोत्र स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने में सहायक होता है, आत्मबल को बढ़ाता है, और जीवन में समृद्धि और सफलता का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह स्तोत्र सूर्य देव की कृपा पाने का अत्यंत प्रभावी माध्यम है और तनाव, चिंता और अवसाद को दूर करने में सहायक माना जाता है।

4. क्या सूर्य हृदय स्तोत्रम् का पाठ किसी विशेष दिन करना चाहिए?

हालांकि सूर्य हृदय स्तोत्रम् का पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है, परंतु रविवार को इसका विशेष महत्व है क्योंकि रविवार सूर्य देव का दिन माना जाता है। इसके अतिरिक्त, मकर संक्रांति, छठ पूजा, और सूर्य ग्रहण के समय भी इस स्तोत्र का पाठ करने से विशेष फल मिलता है।

5. सूर्य हृदय स्तोत्रम् का पाठ कौन कर सकता है?

सूर्य हृदय स्तोत्रम् का पाठ कोई भी व्यक्ति कर सकता है, चाहे वह महिला हो या पुरुष। इसे किसी भी जाति, धर्म, या आयु के लोग श्रद्धा और भक्ति के साथ कर सकते हैं। स्तोत्र के प्रभाव को प्राप्त करने के लिए भक्ति भाव और सच्चे मन से इसका पाठ करना आवश्यक है।

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