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रविवार, अगस्त 17, 2025

प्रार्थना – माया तेरी अपार

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माया तेरी अपार

माया है तेरी अपार माया पार नहीं कोई पाता है।
राई को पर्वत पर्वत को राई देय बनाय ।
नीचे को ऊंचा ऊंचे को नीचे देय गिराय ॥
जो चाहे कर दिखलाता है । माया० ॥

नादानों को दाना करदे दाना को नादान ।
पलभर भी नहीं लगे बनादे निर्धन को धनवान ॥
इसी से नाम विधाता है । माया० ॥

बीरानों को बस्ती करदे बस्ती को बीरान ।
सुलतानों को चोर बनादे चोरों को सुलतान ॥
दनि बन्धु कहलाता है । माया० ॥

व्यापक जीव चराचर सबमें निराकार साकार ।
बिना तेरी मरजी के हरगिज पत्ता हिलेन डार ॥
तुही घट घट में पाता है । माया० ॥

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