भज़ रामकृष्ण
भज़ रामकृष्ण मुकुन्द माधव नन्द नन्दन सांबरे ॥
छुटे पाप कोटिन जन्म के चारों पदारथ पावरे ॥ १ ॥
संसार सागर अगम को नहि सुगम प्रबल वहाव है ॥
त्यहि पार उतारन हेतु है हरिनाम ही एकनावरे । म० ॥ २ ॥
श्रवणन से सुन हरिकी कथा नैनन से लख लीला ललित ।
रसनी का कर वश में सदा जगदीशका गुण गावरे ||४०||३||
ले नाम जिनको विमल कलिमल ग्रसित बहु पापी तरे ।
तिन प्रभु सुखद श्रशरण शरण का ध्याय खूब रिझावरे ||४||
चिन नाम धन बल धाम सुत पितु धाम काम न श्राइ है ।
अतएव निन मणिलाल पंडित चित चरण में लावरे ॥ भजराम कृष्णा ॥ ५ ॥
नोंध: इस रचना को रामायण (तर्ज राधेश्याम) भाग २६ में से लिया गया हें “तर्ज राधेश्याम” रामायण का एक अद्भुत परिणाम है जो सभी को मनोरंजन और ज्ञान का संगम देता है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम आपको बताएंगे कि “तर्ज राधेश्याम” के बारे में क्या है और इसके महत्व को समझाएंगे।