भज रघुनन्दन असुर निकन्दन त्रिभुवन बंदन विश्वपतिम् ।
मुनिजन मानस हंस मनोहर सर्वाधार विशुद्ध मतिम् ॥
मय्यादा पुरुषोत्तम सत्तम निंदन कोटि अनंग छविम ।
ज्ञानगम्य अतिरम्य रमेसं भासित दीप्ति अनेक रविम् ॥
ब्रह्मण्यं विज्ञान निधानं सत्य प्रतिज्ञ कृपानिलय |
आगम निगम प्रथा संस्थापन धर्म धुरन्धुर बर अजयम् ॥
शरणागत वत्सल मंगलमय दुरितक्षयं गुण गंभीरम् ।
शांत सरण सर्वज्ञ सुखाकर जने प्रण पालन रणवीरम् ॥
भुक्ति मुक्ति दायक अद्वैतं अनवद्यं अनघं रामम् ।
रट मणिलाल निरंतर हितयुत नीलांबुज इवतन श्यामम् ॥
भज रघुनन्दन असुर निकन्द त्रिभुवनन बन्दन विश्वपतिम् ॥