Yamuna Ashtakam In Hindi
यमुना अष्टकम(Yamuna Ashtakam) एक प्रसिद्ध स्तोत्र है जो भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय नदी यमुना जी की महिमा और उनके दिव्य स्वरूप का गुणगान करता है। यह स्तोत्र संस्कृत में रचित है और इसे विशेष रूप से भक्ति मार्ग में यमुना जी की पूजा और साधना के दौरान गाया जाता है। यमुना जी को हिन्दू धर्म में एक पवित्र नदी और देवी के रूप में माना जाता है। उन्हें भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली और मोक्ष प्रदान करने वाली देवी के रूप में पूजनीय माना गया है।
यमुना अष्टकम का महत्व
यमुना अष्टकम का पाठ भक्तों को आध्यात्मिक शांति और मोक्ष प्रदान करने में सहायक माना जाता है। इसमें यमुना नदी के सौंदर्य, उनकी पवित्रता और भगवान श्रीकृष्ण के साथ उनके संबंध का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र मुख्य रूप से भक्तों को यमुना जी की भक्ति के प्रति प्रेरित करता है और उनके जीवन में सुख-शांति लाने की प्रार्थना करता है।
यमुना अष्टकम का रचयिता कई स्रोतों के अनुसार श्रीमद् वल्लभाचार्य माने जाते हैं, जो पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक थे। उन्होंने इस स्तोत्र के माध्यम से यमुना जी की कृपा और उनकी लीला का वर्णन किया है। स्तोत्र के आठ श्लोकों में यमुना जी के जल, उनकी महिमा और भगवान श्रीकृष्ण के साथ उनके अद्भुत संबंध की सुंदर व्याख्या की गई है।
यमुना अष्टकम पाठ का लाभ
यमुना अष्टकम का नियमित पाठ भक्तों के जीवन में आध्यात्मिक उन्नति लाता है। यह पवित्रता, शांति और भक्ति की अनुभूति कराने वाला माना जाता है। जो लोग इसे श्रद्धा से पढ़ते हैं, उनके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है।
यमुना अष्टकम के श्लोक
मुरारिकायकालिमाललामवारिधारिणी
तृणीकृतत्रिविष्टपा त्रिलोकशोकहारिणी।
मनोनुकूलकूलकुञ्जपुञ्जधूतदुर्मदा
धुनोतु नो मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा।
मलापहारिवारिपूरिभूरिमण्डितामृता
भृशं प्रवातकप्रपञ्चनातिपण्डितानिशा।
सुनन्दनन्दिनाङ्गसङ्गरागरञ्जिता हिता
धुनोतु नो मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा।
लसत्तरङ्गसङ्गधूतभूतजातपातका
नवीनमाधुरीधुरीणभक्तिजातचातका।
तटान्तवासदासहंससंवृताह्निकामदा
धुनोतु नो मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा।
विहाररासखेदभेदधीरतीरमारुता
गता गिरामगोचरे यदीयनीरचारुता।
प्रवाहसाहचर्यपूतमेदिनीनदीनदा
धुनोतु नो मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा।
तरङ्गसङ्गसैकतान्तरातितं सदासिता
शरन्निशाकरांशुमञ्जुमञ्जरी सभाजिता।
भवार्चनाप्रचारुणाम्बुनाधुना विशारदा
धुनोतु नो मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा।
जलान्तकेलिकारिचारुराधिकाङ्गरागिणी
स्वभर्त्तुरन्यदुर्लभाङ्गताङ्गताम्शभागिनी।
स्वदत्तसुप्तसप्तसिन्धुभेदिनातिकोविदा
धुनोतु नो मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा।
जलच्युताच्युताङ्गरागलम्पटालिशालिनी
विलोलराधिकाकचान्तचम्पकालिमालिनी।
सदावगाहनावतीर्णभर्तृभृत्यनारदा
धुनोतु नो मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा।
सदैव नन्दिनन्दकेलिशालिकुञ्जमञ्जुला
तटोत्थफुल्लमल्लिकाकदम्बरेणुसूज्ज्वला।
जलावगाहिणां नृणां भवाब्धिसिन्धुपारदा
धुनोतु नो मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा।