विद्या प्रदा सरस्वती स्तोत्रम् – Vidya Prada Saraswathy Stotram
विद्या प्रदा सरस्वती स्तोत्रम्(Vidya Prada Saraswathy Stotram) एक अत्यंत प्रभावशाली संस्कृत स्तोत्र है, जो माँ सरस्वती को समर्पित है। यह स्तोत्र देवी सरस्वती की स्तुति करता है और विद्या, बुद्धि, ज्ञान, वाणी और कला में उन्नति के लिए उनका आह्वान करता है। यह उन विद्यार्थियों, कलाकारों, लेखकों और विद्वानों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है, जो ज्ञान और रचनात्मकता में उत्कृष्टता प्राप्त करना चाहते हैं।
विद्या प्रदा सरस्वती स्तोत्रम् का महत्व
- यह स्तोत्र विद्या, बुद्धि और स्मरण शक्ति को बढ़ाने के लिए अत्यंत प्रभावी माना जाता है।
- इसे विद्यार्थी, विद्वान, कवि, लेखक, संगीतकार और वक्ता आदि नियमित रूप से पढ़ते हैं।
- माँ सरस्वती की कृपा से वाणी में माधुर्य, तर्क शक्ति और निर्णय क्षमता का विकास होता है।
- इस स्तोत्र के पाठ से मनोवांछित ज्ञान की प्राप्ति होती है और अज्ञानता दूर होती है।
माँ सरस्वती का स्वरूप और स्तोत्र में उनका वर्णन
विद्या प्रदा सरस्वती स्तोत्रम् में देवी सरस्वती के दिव्य स्वरूप का सुंदर वर्णन किया गया है:
- वे श्वेत वस्त्रधारी, वीणा वादिनी, कमल पर विराजमान हैं।
- उनके हाथों में वीणा, पुस्तक, माला और वरदमुद्रा होती है।
- वे ज्ञान और संगीत की अधिष्ठात्री देवी हैं, जिनकी कृपा से संसार में विद्या और कला की प्रकाशमान ज्योति फैलती है।
विद्या प्रदा सरस्वती स्तोत्रम् के लाभ
- स्मरण शक्ति और मानसिक क्षमता बढ़ती है – यह स्तोत्र विद्यार्थियों और विद्वानों के लिए अत्यंत उपयोगी है।
- बुद्धि और वाणी में माधुर्य आता है – वक्ता, गायक, कवि और कलाकारों के लिए यह अत्यंत फलदायी है।
- विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होती है – यह विशेष रूप से परीक्षा, अध्ययन और शोधकार्य में लाभकारी है।
- अवरोध और अज्ञान दूर होते हैं – मानसिक भ्रम, आलस्य और निर्णय क्षमता की कमजोरी दूर होती है।
- संगीत और कला में सिद्धि मिलती है – संगीतकार, नर्तक और चित्रकारों के लिए भी यह अत्यंत प्रभावी है।
सही विधि और समय
- प्रातःकाल स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर माँ सरस्वती की प्रतिमा या चित्र के समक्ष बैठकर पाठ करें।
- बुधवार और बसंत पंचमी को यह स्तोत्र विशेष फलदायी माना जाता है।
- पढ़ते समय स्फटिक माला से जप करना लाभकारी होता है।
- स्तोत्र के पाठ के दौरान माँ सरस्वती को श्वेत फूल, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
विद्या प्रदा सरस्वती स्तोत्रम् – Vidya Prada Saraswathy Stotram
विश्वेश्वरि महादेवि वेदज्ञे विप्रपूजिते।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
सिद्धिप्रदात्रि सिद्धेशि विश्वे विश्वविभावनि।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
वेदत्रयात्मिके देवि वेदवेदान्तवर्णिते।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
वेददेवरते वन्द्ये विश्वामित्रविधिप्रिये।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
वल्लभे वल्लकीहस्ते विशिष्टे वेदनायिके।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
शारदे सारदे मातः शरच्चन्द्रनिभानने।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
श्रुतिप्रिये शुभे शुद्धे शिवाराध्ये शमान्विते।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
रसज्ञे रसनाग्रस्थे रसगङ्गे रसेश्वरि।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
रसप्रिये महेशानि शतकोटिरविप्रभे।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
पद्मप्रिये पद्महस्ते पद्मपुष्पोपरिस्थिते।
बालेन्दुशेखरे बाले भूतेशि ब्रह्मवल्लभे।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
बीजरूपे बुधेशानि बिन्दुनादसमन्विते।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
जगत्प्रिये जगन्मातर्जन्मकर्मविवर्जिते।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
जगदानन्दजननि जनितज्ञानविग्रहे।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
त्रिदिवेशि तपोरूपे तापत्रितयहारिणि।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
जगज्ज्येष्ठे जितामित्रे जप्ये जननि जन्मदे।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
भूतिभासितसर्वाङ्गि भूतिदे भूतनायिके।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
ब्रह्मरूपे बलवति बुद्धिदे ब्रह्मचारिणि।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
योगसिद्धिप्रदे योगयोने यतिसुसंस्तुते।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
यज्ञस्वरूपे यन्त्रस्थे यन्त्रसंस्थे यशस्करि।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
महाकवित्वदे देवि मूकमन्त्रप्रदायिनि।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
मनोरमे महाभूषे मनुजैकमनोरथे।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
मणिमूलैकनिलये मनःस्थे माधवप्रिये।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
मखरूपे महामाये मानिते मेरुरूपिणि।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
महानित्ये महासिद्धे महासारस्वतप्रदे।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
मन्त्रमातर्महासत्त्वे मुक्तिदे मणिभूषिते।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
साररूपे सरोजाक्षि सुभगे सिद्धिमातृके।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
सावित्रि सर्वशुभदे सर्वदेवनिषेविते।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
सहस्रहस्ते सद्रूपे सहस्रगुणदायिनि।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
सर्वपुण्ये सहस्राक्षि सर्गस्थित्यन्तकारिणि।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
सर्वसम्पत्करे देवि सर्वाभीष्टप्रदायिनि।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
विद्येशि सर्ववरदे सर्वगे सर्वकामदे।
विद्यां प्रदेहि सर्वज्ञे वाग्देवि त्वं सरस्वति।
य इमं स्तोत्रसन्दोहं पठेद्वा शृणुयादथ।
स प्राप्नोति हि नैपुण्यं सर्वविद्यासु बुद्धिमान्।