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रविवार, जून 1, 2025

ताम्रपर्णी स्तोत्रम्

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Tamraparni Stotram In Hindi

ताम्रपर्णी स्तोत्रम्(Tamraparni Stotram) एक पवित्र संस्कृत स्तोत्र है, जो ताम्रपर्णी नदी की महिमा का वर्णन करता है। यह स्तोत्र इस नदी को देवी के रूप में पूजनीय मानता है और इसकी दिव्यता, पवित्रता एवं आध्यात्मिक महत्त्व को दर्शाता है।

ताम्रपर्णी नदी का परिचय

  • ताम्रपर्णी नदी भारत के तमिलनाडु राज्य में स्थित एक प्रमुख नदी है।
  • इसका उद्गम पोदिगई पर्वत (Western Ghats) से होता है, जिसे महर्षि अगस्त्य की तपोभूमि माना जाता है।
  • यह नदी अरब सागर में मिलती है और इसके तट पर कई पवित्र तीर्थस्थल स्थित हैं।
  • धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह नदी ऋषियों और संतों द्वारा पूजित रही है तथा इसकी जलधारा में स्नान करने से पापों का नाश होता है।

ताम्रपर्णी स्तोत्रम् का महत्त्व

  • यह स्तोत्र ताम्रपर्णी नदी की स्तुति करता है और उसकी दिव्य शक्तियों को वर्णित करता है।
  • इसमें बताया गया है कि इस नदी का जल पवित्र, रोग नाशक और मोक्षदायक है।
  • यह स्तोत्र भक्तों को सौभाग्य, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है।
  • ताम्रपर्णी को गंगा, यमुना और सरस्वती जैसी पवित्र नदियों के समान माना गया है।

ताम्रपर्णी स्तोत्रम् के लाभ

  • स्नान एवं पाठ से मन और शरीर की शुद्धि होती है
  • संतान सुख, धन-संपत्ति और आरोग्य प्रदान करता है
  • आध्यात्मिक उन्नति में सहायक एवं मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है
  • घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है

पाठ करने की विधि

  • प्रातःकाल या संध्याकाल में ताम्रपर्णी नदी के तट पर या घर में पाठ करें
  • शुद्धता एवं भक्ति भाव से जल अर्पण करें
  • शुक्रवार एवं विशेष रूप से कार्तिक और माघ मास में इसका पाठ अधिक शुभ माना जाता है
  • यदि ताम्रपर्णी नदी में स्नान संभव न हो तो इसके जल का स्मरण मात्र भी पुण्यदायी माना जाता है

ताम्रपर्णी स्तोत्रम् (Tamraparni Stotram)

या पूर्ववाहिन्यपि मग्ननॄणामपूर्ववाहिन्यघनाशनेऽत्र।

भ्रूमापहाऽस्माकमपि भ्रमाड्या सा ताम्रपर्णी दुरितं धुनोतु।

माधुर्यनैर्मल्यगुणानुषङ्गात् नैजेन तोयेन समं विधत्ते।

वाणीं धियं या श्रितमानवानां सा ताम्रपर्णी दुरितं धुनोतु।

या सप्तजन्मार्जितपाप- सङ्घनिबर्हणायैव नृणां नु सप्त।

क्रोशान् वहन्ती समगात्पयोधिं सा ताम्रपर्णी दुरितं धुनोतु।

कुल्यानकुल्यानपि या मनुष्यान् कुल्या स्वरूपेण बिभर्ति पापम्।

निवार्य चैषामपवर्ग दात्री सा ताम्रपर्णी दुरितं धुनोतु।

श्री पापनाशेश्वर लोकनेत्र्यौ यस्याः पयोलुब्धधियौ सदापि।

यत्तीरवासं कुरुतः प्रमोदात् सा ताम्रपर्णी दुरितं धुनोतु।

नाहं मृषा वच्मि यदीयतीरवासेन लोकास्सकलाश्च भक्तिम्।

वहन्ति गुर्वाङ्घ्रियुगे च देवे सा ताम्रपर्णी दुरितं धुनोतु।

जलस्य योगाज्जडतां धुनाना मलं मनस्थं सकलं हरन्ती।

फलं दिशन्ती भजतां तुरीयं सा ताम्रपर्णी दुरितं धुनोतु।

न जह्रुपीता न जटोपरुद्धा महीध्रपुत्र्यापि मुदा निषेव्या।

स्वयं जनोद्धारकृते प्रवृत्ता सा ताम्रपर्णी दुरितं धुनोतु।

ताम्रपर्णी स्तोत्रम् एक अत्यंत पवित्र और कल्याणकारी स्तोत्र है, जो ताम्रपर्णी नदी की महिमा का गुणगान करता है। इस स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करने से सभी प्रकार की परेशानियाँ दूर होती हैं, मानसिक शांति मिलती है और जीवन में समृद्धि आती है। यह स्तोत्र भक्तों के लिए मोक्षदायक एवं कल्याणकारी माना जाता है।



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