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बुधवार, नवम्बर 5, 2025

स्याम तव मूरति हृदय समानी | Syam Tav Murti Hriday Samani

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स्याम तव मूरति हृदय समानी

Syam Tav Murti Hriday Samani

स्याम तव मूरति हृदय समानी ।

अंग-अंग व्यापी, रग-रग राँची, रोम-रोम उरझानी ||

जित देखौं तित तू ही दीखत, दृष्टि कहा बौरानो ।

स्रवन सुनत नित ही बंसी-धुनि, देह रही लपटानी ।।

स्याम-अंग सुचि सौरभ मीठी, नासा तेहि रति मानी ।

जिभ्या सरस मनोहर मधुमय, हरि-जूठन रस-स्वानी ।।

ऊधौ कहत संदेस तिहारो, हमहिं बनावत ग्यानी ।

कहु थल जहाँ ग्यानकों राखें, कहा मसखरी ठानी ।।

निकसत नाहिं हृदयतें हमरे बैठ्यो रहत लुकानी ।

ऊषौ ! स्याम न छाड़त हमकों, करत सदा मनमानी ।।

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