स्याम तव मूरति हृदय समानी
Syam Tav Murti Hriday Samani
स्याम तव मूरति हृदय समानी ।
अंग-अंग व्यापी, रग-रग राँची, रोम-रोम उरझानी ||
जित देखौं तित तू ही दीखत, दृष्टि कहा बौरानो ।
स्रवन सुनत नित ही बंसी-धुनि, देह रही लपटानी ।।
स्याम-अंग सुचि सौरभ मीठी, नासा तेहि रति मानी ।
जिभ्या सरस मनोहर मधुमय, हरि-जूठन रस-स्वानी ।।
ऊधौ कहत संदेस तिहारो, हमहिं बनावत ग्यानी ।
कहु थल जहाँ ग्यानकों राखें, कहा मसखरी ठानी ।।
निकसत नाहिं हृदयतें हमरे बैठ्यो रहत लुकानी ।
ऊषौ ! स्याम न छाड़त हमकों, करत सदा मनमानी ।।