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गुरूवार, अक्टूबर 23, 2025

स्वरमंगला सरस्वती स्तोत्रम्

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स्वरमंगला सरस्वती स्तोत्रम्

Swaramangala Saraswati Stotram एक ऐसा पवित्र स्तोत्र है जो देवी सरस्वती की महिमा, उनके स्वरूप और उनके आशीर्वाद का गुणगान करता है। देवी सरस्वती ज्ञान, संगीत, कला, भाषा और विद्या की देवी मानी जाती हैं। इस स्तोत्र में न केवल उनके दिव्य गुणों का वर्णन किया गया है, बल्कि यह भी बताया गया है कि कैसे उनका आशीर्वाद प्राप्त करने से जीवन में उजाला, रचनात्मकता और बौद्धिक विकास होता है।

स्तोत्र का महत्त्व

  1. विद्या और ज्ञान का स्रोत:
    सरस्वती देवी को ज्ञान, बुद्धि और शिक्षा की देवी के रूप में पूजा जाता है। इस स्तोत्र के माध्यम से भक्त देवी की कृपा से विद्या में प्रगति, अध्ययन में सफलता और बौद्धिक विकास की कामना करते हैं।
  2. संगीत एवं कला की देवी:
    “स्वरमंगला” शब्द से तात्पर्य है “स्वर की मंगला” या “संगीतमय”, जो यह दर्शाता है कि देवी सरस्वती का स्वरूप संगीत और कला से संबंधित है। जिन लोगों की रचनात्मकता, संगीत या कला में रुचि है, उनके लिए यह स्तोत्र विशेष लाभकारी माना जाता है।
  3. आध्यात्मिक उन्नति:
    स्तोत्र का नियमित पाठ करने से मानसिक स्पष्टता, रचनात्मकता में वृद्धि तथा आध्यात्मिक विकास होता है। यह स्तोत्र जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक चेतना को जागृत करता है।

पाठ की विधि एवं अनुशासन

  • समय:
    • सुबह-सुबह या किसी शांत वातावरण में स्तोत्र का पाठ करना अधिक फलदायी माना जाता है।
    • विशेष अवसरों जैसे सरस्वती व्रत, सरस्वती पूजा या विद्या की शुभ शुरुआत के समय इसका पाठ करना उत्तम रहता है।
  • आसन एवं तैयारी:
    • पाठ से पहले शुद्धता के लिए स्नान करके साफ वस्त्र धारण करें।
    • देवी सरस्वती की प्रतिमा या चित्र के सामने दीप, धूप एवं फूल अर्पित करें।
  • मनन:
    • पाठ करते समय मन को एकाग्र करें और देवी के स्वरूप, उनकी अनंत कृपा तथा ज्ञान की महिमा का ध्यान करें।
    • नियमित और श्रद्धापूर्ण पाठ से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलते हैं।

Swaramangala Saraswati Stotram

हे शारदे त्वं तमसां निहन्त्री
सद्बुद्धिदात्री शशिशुभ्रगात्री ।
देवीं सुविद्याप्रतिभामयीं त्वां
नमामि नित्यं वरदानहस्ताम् ॥

आयाहि मातः स्वरमङ्गला त्वं
राजस्व कण्ठे ललितं मदीये ।
तनुष्व रूपं सुपरिप्रकाशं
रागं सरागं मधुरं प्रकामम् ॥

कान्तिस्त्वदीया हि समुज्ज्वलन्ती
खेदावसादं विनिवारयन्ती ।
स्वान्तारविन्दं कुरुते प्रफुल्लं
मातर्नमस्ते वितरानुकम्पाम् ॥

विजयतां सुकृतामनुरागिणी
रुचिररागरुचा स्वरभास्वती ।
सरसमङ्गलवर्णतरङ्गिणी
सुमधुरा सुभगा भुवि भारती ॥

विराजते विनोदिनी पवित्रतां वितन्वती ।
सुमङ्गलं ददातु नो विभास्वरा सरस्वती ॥

स्वरमंगला सरस्वती स्तोत्रम् देवी सरस्वती की दिव्यता और उनके द्वारा प्रदान किए जाने वाले ज्ञान, संगीत एवं कला के आशीर्वाद का सम्पूर्ण वर्णन करता है। इस स्तोत्र के नियमित पाठ से न केवल शैक्षिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों में सफलता प्राप्त होती है, बल्कि मानसिक स्पष्टता, रचनात्मकता और आध्यात्मिक उन्नति भी होती है।

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