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बुधवार, अक्टूबर 16, 2024

नटेश पञ्चरत्न स्तोत्र

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टेश पञ्चरत्न स्तोत्र एक प्रसिद्ध स्तोत्र है जो भगवान शिव के नटराज रूप को समर्पित है। नटराज, शिव के उस रूप को कहते हैं जिसमें वे सृष्टि, पालन, और संहार की शक्ति का प्रतीक हैं। नटराज का नृत्य पूरे ब्रह्मांड की गति और शक्ति को दर्शाता है। यह स्तोत्र विशेष रूप से भगवान शिव के पंचरत्न, यानी पाँच रत्नों से भरे गुणों की स्तुति करता है।

यह स्तोत्र आस्था रखने वाले भक्तों के बीच बहुत लोकप्रिय है क्योंकि यह भगवान नटराज की महिमा, उनके नृत्य और ब्रह्मांडीय शक्तियों को वर्णित करता है। स्तोत्र में भगवान नटराज के रूप, उनके स्वरूप, और उनके नृत्य की शक्ति की महत्ता का वर्णन किया गया है।

नटेश पञ्चरत्न स्तोत्र का महत्व:

  1. सृष्टि की गति: नटराज को सृष्टि के निर्माता, पालक और संहारक के रूप में पूजा जाता है। उनका नृत्य सृष्टि की उत्पत्ति, संरक्षण और विनाश को दर्शाता है। स्तोत्र का पाठ करने से भक्त भगवान शिव की इस अलौकिक शक्ति को समझते हैं और उनकी कृपा प्राप्त करते हैं।
  2. आध्यात्मिक उन्नति: नटराज का नृत्य जीवन की अस्थिरता और स्थिरता दोनों का प्रतीक है। स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को जीवन के संघर्षों को सहन करने की शक्ति मिलती है और आत्मिक उन्नति की दिशा में प्रेरित होता है।
  3. शांति और आनंद: नटराज के नृत्य से व्यक्ति को मानसिक शांति और आनंद की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र भक्तों को शारीरिक और मानसिक संतुलन बनाए रखने में सहायक होता है।
  4. कल्याणकारी शक्ति: नटेश पञ्चरत्न स्तोत्र में भगवान शिव की करुणा, दयालुता, और उनकी शरण में आने वालों को कल्याण देने वाली शक्ति का वर्णन है। यह स्तोत्र भगवान शिव की कृपा को प्राप्त करने का सशक्त माध्यम है।

स्त्रोत: नटेश पञ्चरत्न स्तोत्र का मूल संस्कृत में है और इसके कई भाषाओं में अनुवाद किए गए हैं। इसका नियमित पाठ शिव भक्तों के लिए लाभकारी माना जाता है, क्योंकि इससे भक्त के जीवन में शांति, समृद्धि और भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।

यह स्तोत्र भक्तों को भगवान शिव की लीलाओं और उनकी अनंत शक्तियों की महिमा का स्मरण कराता है। यदि इस स्तोत्र का विधिपूर्वक श्रद्धा और भक्ति के साथ पाठ किया जाए, तो भगवान शिव की असीम कृपा प्राप्त होती है।

नटेश पञ्चरत्न स्तोत्र Shri Natesha Pancharatna Stotra

॥ध्यानम् ॥

वामे भूधरजा पुरश्च वृषराट् पश्चान्मुनिर्जैमिनिः ।
श्री मद्-व्यास पतञ्जलीत्युभयतः वाय्वादिकोणेषु च ॥
श्रीमत्तिल्लवनैकवासिमखिनः ब्रह्मादिवृन्दारकाः
मध्ये स्वर्ण सभापतिर्विजयते हृत्पुण्डरीके पुरे ॥

॥अथ श्री नटेश पञ्चरत्नम् ॥
श्रीमच्चिदम्बरनटनात् नटराजराजात्
विद्याधिपात् विविधमङ्गलदानशौण्डात् ।
पूर्णेन्दु सुन्दर मुखात् द्विजराजचूडात्
भर्गात्परं किमपि तत्त्वमहं न जाने ॥१॥

डक्काविभूशितकरात् विषनीलकण्टात् ।
फुल्लारविन्दनयनात् फणिराजवन्द्यात् ।
व्याघ्राङ्घ्रि पूज्यचरणात् शिवकुञ्चिताङ्घ्रेः
शम्भोः परं किमपि तत्त्वमहं न जाने ॥२॥

श्रीनाथमृग्यचरणात् विधिमृग्यचूडात्
श्रीपुण्डरीक निलयात् श्रितदुःखनाशात् ।
श्रीमद्गुहस्य जनकात् सुखटत्तराजात्
श्रीशात्परं किमपि तत्त्वमहं न जाने ॥३॥

श्रीमद्गणेशजनकात् मखिवृन्दपूज्यात्
तिल्लीटवीसुनिलयात् त्रिपुराम्बिकेशात् ।
व्याघ्राजिनाम्बरधरात् उरूरोगनाशात्
रुद्रात्परं किमपि तत्त्वमहं न जाने ॥४॥

श्रिमद्-व्याघ्रपुरेश्चरात् फणिराजभूषात्
संसार रोगभिषजः निखिलाण्डपालात् ।
श्रीमद्धेमसभेश्वरात् ललिताम्बिकेशात्
स्थाणोः परं किमपि तत्त्वमहं न जाने ॥५॥

॥अथ फलश्रुतिः ॥

पञ्चरत्नं नटेशस्य सोमशेखरयज्वभिः ।
संस्तुतं यः पठेन्नित्यं शाश्वतं तस्य मङ्गलम् ॥
॥इति श्री नटेश पञ्चरत्नम् सम्पूर्णम् ॥

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