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बुधवार, दिसम्बर 3, 2025

सौंप दिये मन प्राण उसी को मुखसे गाते उसका नाम – Saump Diye Man Praan Useeko

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सौंप दिये मन प्राण उसी को मुखसे गाते उसका नाम

 

सौंप दिये मन-प्राण उसीको, मुखसे गाते उसका नाम ।

कर्माकर्म चुकाकर सारे चलते हैं अब उसके धाम ॥

इंद्रियग्राम लेकर विषयोंको मरा करें इच्छा अनुसार ।

हम तो हैं अनुगत उसके ही, वही हमारा प्राणाधार ।।

प्रेम उसीके से प्रेमिक बन, गाते सब उसका गुण-गान ।

उसकी नासा पुष्प उसीके-से लेती नित उसकी घाण ॥

उसके प्राणोंकी व्याकुलता सत्र प्राणोंमें जाग रही ।

इसी हेतु बैठे योगासन वृत्ति उसीमें लाग रही ।।

उसके ही रससे रसिका बन रसना हो गइ दीवानी ।

विषयोंके रस बिरस हुए सब, नहीं कर सकै मनमानी ॥

आँख उसीकी, देख रहीं नित उसका रूप परम सुंदर ।

कान उसीके सुनते उसका सदा सुरीला कंठस्वर ।।

देह उसीकी करती नित आवेग-भरा परसन उससे ।

मन-प्राण भर उठे, दीखता सारा जगत भरा उससे ॥

सभी भुलाकर सोच रहा वह कहाँ ? कौन ? मेरा मनचोर ।

हृदय-सलिलके अगाध तलमें खोजूँगा, यदि पाऊँ छोर ।।

जब वह अपने प्राणोंको मेरे प्राणोंमें दिखलाता ।

दोनों कूल डूब जाते हैं, कुछ भी नजर नहीं आता ।।

माता-पिता बही इम सबका, भाई-बंधु, पुत्र-दारा ।

है सर्वस्व वही सबका बस, उससे मरा विश्व सारा ।।

है वह जीवनसखा हमारा, है वह परम हमारा धन ।

अन्तस्तलमें बैठे हैं टुक करनेको उसके दर्शन ॥

जब वह दोनों भुजा उठाकर, अपनी ओर बुलाता है।

सब सुख तजकर मन उसके ही पीछे दौड़ा जाता है ॥

सब कुछ भूल नाच उठते हैं, हँसना औ रोना तजकर ।

चरण-कूलकी तरफ दौड़ते, भन्न जीर्ण नौका लेकर ।।

आशा सकल चहाकर उस प्यारेके अरुण चरणतलमें।

कूद पड़ेंगे, डूबे चाहे तर निकलें चाहे कूलस्य लमें ||

इस जबके जो कुछ भी सुख हैं, सो सब रहें उसीके पास ।

अरुण चरण के स्पर्शमात्रसे, मिटी हमारी सारी आस ।॥

किसी वस्तुकी चाइ नहीं है, मिटा चाइना, पाना, सब ।

बैठे हैं भव-तीर, भरोसा किये युगल-चरणोंका अब ॥

अब तो बंध-मोक्षको इच्छा व्याकुल कभी न करती है।

मुखड़ा ही नित-नव बंधन है, मुक्ति चरणसे झरती है ।।

चाहे अपने पास बिठा ले, चाहे दूर फेंक देवें ।

दूर रहें या पास रहें, हम संतत चरणमूल सेर्वे ॥

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