Saraswati Chalisa
श्री सरस्वती चालीसा माँ सरस्वती की स्तुति में रचित 40 चौपाइयों का एक पवित्र स्तोत्र है। इसे श्रद्धा और भक्ति भाव से पढ़ने से विद्या, बुद्धि, वाणी और कला के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। माँ सरस्वती को ज्ञान, संगीत, कला और साहित्य की देवी माना जाता है, और उनकी कृपा से व्यक्ति के जीवन में अज्ञानता का नाश होता है तथा ज्ञान का प्रकाश फैलता है।
॥ श्री सरस्वती चालीसा ॥
॥ दोहा ॥
जनक जननि पदम दुरज, निज मस्तक पर धारि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि ॥
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु ।
रामसागर के पाप को, मातु तुही अब हन्तु ॥
॥ चौपाई ॥
जय श्रीसकल बुद्धि बलरासी, जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी।
जय जय जय वीणाकर धारी, करती सदा सुहंस सवारी ।
रूप चर्तुभुजधारी माता, सकल विश्व अन्दर विख्याता ।
जग में पाप बुद्धि जब होती, तबही धर्म की फीकी ज्योति।
तबहि मातु का निज अवतारा, पाप हीन करती महि तारा।
बाल्मीकि जी थे हत्यारा, तब प्रसाद जानै संसारा।
रामचरित जो रचे बनाई, आदि कवि पदवी को पाई।
कालिदास जो भये विख्याता, तेरी कृपा दृष्टि से माता।
तुलसी सूर आदि विद्वाना, भये और जो ज्ञानी नाना।
तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा, केवल कृपा आपकी अम्बा।
करहु कृपा सोई मातु भवानी, दुखित दीन निज दासहि जानी।
पुत्र करई अपराध बहूता, तेहि न धरइ चित सुन्दर माता।
राखु लाज जननि अब मेरी, विनय करु भाँति बहुतेरी।
मैं अनाथ तेरी अवलंबा, कृपा करऊ जय जय जगदंबा।
मधु कैटभ जो अति बलवाना, बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना।
समर हजार पांच में घोरा, फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा।
मातु सहाय कीन्ह तेहि काला, बुद्धि विपरीत भई खलहाला।
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी, पुरवहु मातु मनोरथ मेरी।
चंड मुण्ड जो थे विख्याता, छण महु संहारेउ तेहिमाता।
रक्तबीज से समरथ पापी, सुरमुनि हृदय धरा सब काँपी।
काटेउ सिर जिम कदली खम्बा, बार बार बिनऊं जगदंबा।
जगप्रसिद्ध जो शुंभनिशुंभा, छण में वधे ताहि तू अम्बा।
भरत-मातु बुद्धि फेरेऊ जाई, रामचन्द्र बनवास कराई।
एहिविधि रावन वध तू कीन्हा, सुर नर मुनि सबको सुख दीन्हा।
को समरथ तव यश गुन गाना, निगम अनादि अनंत बखाना।
विष्णु रुद्र अज सकहिन मारी, जिनकी हो तुम रक्षाकारी।
रक्त दन्तिका और शताक्षी, नाम अपार है दानव भक्षी।
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा, दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा।
दुर्ग आदि हरनी तू माता, कृपा करहु जब जब सुखदाता।
नृप कोपित को मारन चाहै, कानन में घेरे मृग नाहै।
सागर मध्य पोत के भंजे, अति तूफान नहिं कोऊ संगे।
भूत प्रेत बाधा या दुःख में, हो दरिद्र अथवा संकट में।
नाम जपे मंगल सब होई, संशय इसमें करइ न कोई।
पुत्रहीन जो आतुर भाई, सबै छाँडि पूजें एहि माई।
करै पाठ नित यह चालीसा, होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा।
धूपादिक नवैद्य चढ़ावै, संकट रहित अवश्य हो जावै।
भक्ति मातु की करें हमेशा, निकट न आवै ताहि कलेशा।
बंदी पाठ करें सत बारा, बंदी पाश दूर हो सारा।
रामसागर बाधि हेतु भवानी, कीजै कृपा दास निज जानी।
॥ दोहा ॥
मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप।
डूबन से रक्षा करहु, परूँ न मैं भव कूप ॥
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु ।
राम सागर अधम को आश्रय तू ही ददातु ॥
श्री सरस्वती चालीसा का महत्व
1. विद्या और बुद्धि का आशीर्वाद
जो विद्यार्थी और विद्वान जन नियमित रूप से सरस्वती चालीसा का पाठ करते हैं, उन्हें विद्या, ज्ञान और स्मरण शक्ति की प्राप्ति होती है। माँ सरस्वती की कृपा से पढ़ाई में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं और बुद्धि कुशाग्र होती है।
2. वाणी में मधुरता
माँ सरस्वती को वाणी की देवी भी कहा जाता है। जो व्यक्ति उनकी आराधना करता है, उसकी वाणी मधुर और प्रभावशाली हो जाती है। विशेष रूप से कवि, लेखक, वक्ता और गायक इस चालीसा के पाठ से विशेष लाभ प्राप्त करते हैं।
3. कलात्मक और रचनात्मक विकास
माँ सरस्वती संगीत, नृत्य और अन्य कलाओं की देवी हैं। कलाकार यदि इस चालीसा का नित्य पाठ करें तो उनकी प्रतिभा निखरती है और नए-नए रचनात्मक विचार आते हैं।
4. आध्यात्मिक जागृति
इस चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। मन और आत्मा को शांति मिलती है और नकारात्मक विचार दूर होते हैं।
श्री सरस्वती चालीसा का पाठ करने के नियम
- स्नान और शुद्धता: पाठ करने से पहले स्नान कर लें और साफ वस्त्र धारण करें।
- सही समय: ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) में पाठ करना श्रेष्ठ माना जाता है, लेकिन यदि संभव न हो तो किसी भी शुभ समय में किया जा सकता है।
- शुद्ध आसन: सफेद या पीले रंग के आसन पर बैठकर पाठ करें, जिससे मन एकाग्र रहता है।
- माँ सरस्वती की प्रतिमा या चित्र के समक्ष करें: दीप जलाकर, अगरबत्ती लगाकर श्रद्धा भाव से चालीसा का पाठ करें।
- नियमितता: प्रतिदिन पाठ करना सर्वोत्तम होता है, विशेषकर परीक्षा के दिनों में या किसी महत्वपूर्ण कार्य से पहले।
श्री सरस्वती चालीसा का पाठ कब करें?
- बसंत पंचमी के दिन इसका पाठ विशेष लाभकारी होता है।
- विद्यार्थी परीक्षा से पहले इसका पाठ कर सकते हैं।
- लेखक, कवि और कलाकार किसी नए कार्य की शुरुआत से पहले इस चालीसा का पाठ करें तो उनकी रचनात्मकता बढ़ती है।
- किसी भी महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले सरस्वती चालीसा पढ़ना शुभ माना जाता है।
सरस्वती चालीसा के पाठ के लाभ
- विद्या और बुद्धि में वृद्धि
- वाणी में मधुरता और प्रभावशीलता
- संगीत और कला में सफलता
- एकाग्रता और स्मरण शक्ति में सुधार
- नकारात्मकता से मुक्ति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार
- विद्यार्थियों के लिए परीक्षा में सफलता
- मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति