Sapta Nadi Punyapadma Stotram

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Sapta Nadi Punyapadma Stotram

सप्तनदी पुण्यपद्म स्तोत्रम् (Sapta Nadi Punyapadma Stotram) एक दुर्लभ और पवित्र स्तोत्र है जो सात पवित्र नदियों (सप्तनदियों) की महिमा का गान करता है। यह स्तोत्र विशेष रूप से स्नान, तीर्थ यात्रा, या नदी पूजा के समय पाठ किया जाता है। इसके पाठ से आत्मशुद्धि, पापों की मुक्ति और आध्यात्मिक उन्नति मानी जाती है। यह स्तोत्र देवी गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी, नर्मदा, सिन्धु और कावेरी की स्तुति में रचा गया है।

सप्तनदी पुण्यपद्म स्तोत्रम्

सुरेश्वरार्यपूजितां महानदीषु चोत्तमां
द्युलोकतः समागतां गिरीशमस्तकस्थिताम्|

वधोद्यतादिकल्मषप्रणाशिनीं हितप्रदां
विकाशिकापदे स्थितां विकासदामहं भजे|

प्रदेशमुत्तरं च पूरुवंशदेशसंस्पृशां
त्रिवेणिसङ्गमिश्रितां सहस्ररश्मिनन्दिनीम्|

विचेतनप्रपापनाशकारिणीं यमानुजां
नमामि तां सुशान्तिदां कलिन्दशैलजां वराम्|

त्रिनेत्रदेवसन्निधौ सुगामिनीं सुधामयीं
महत्प्रकीर्णनाशिनीं सुशोभकर्मवर्द्धिनीम्|

पराशरात्मजस्तुतां नृसिंहधर्मदेशगां
चतुर्मुखाद्रिसम्भवां सुगोदिकामहं भजे|

विपञ्चकौलिकां शुभां सुजैमिनीयसेवितां
सु-ऋग्गृचासुवर्णितां सदा शुभप्रदायिनीम्|

वरां च वैदिकीं नदीं दृशद्वतीसमीपगां
नमामि तां सरस्वतीं पयोनिधिस्वरूपिकाम्|

महासुराष्ट्रगुर्जरप्रदेशमध्यकस्थितां
महानदीं भुविस्थितां सुदीर्घिकां सुमङ्गलाम्|

पवित्रसज्जलेन लोकपापकर्मनाशिनीं
नमामि तां सुनर्मदां सदा सुधेव सौख्यदाम्|

विजम्बुवारिमध्यगां सुमाधुरीं सुशीतलां
सुधासरित्सु देविकेति रूपितां पितृप्रियाम्|

सुपूज्यदिव्यमानसां च शल्यकर्मनाशिनीं
नमामि सिन्धुमुत्तमां सुसत्फलैर्विमण्डिताम्|

अगस्त्यकुम्भसम्भवां कवेरराजकन्यकां
सुरङ्गनाथपादपङ्कजस्पृशां नृपावनीम्|

तुलाभिमासके समस्तलोकपुण्यदायिनीं
पुरारिनन्दनप्रियां पुराणवर्णितां भजे|

पठेन्नरः सदाऽन्विमां नुतिं नदीविशेषिकाम्
अवाप्नुते बलं धनं सुपुत्रसौम्यबान्धवान्|

महानदीनिमज्जनादिपावनप्रपुण्यकं
सदा हि सद्गतिः फलं सुपाठकस्य तस्य वै।

सप्तनदियाँ कौन-कौन सी हैं?

‘सप्त नदियाँ’ भारतीय धर्मशास्त्रों और पुराणों में पवित्र नदियों के रूप में प्रतिष्ठित हैं:

  1. गंगा – मोक्षदायिनी और पापहरिणी नदी
  2. यमुना – प्रेम, भक्ति और सौंदर्य की प्रतीक
  3. सरस्वती – ज्ञान, वाणी और ऋषिकल्प परंपरा की वाहिका
  4. गोदावरी – दक्षिण की गंगा मानी जाती है
  5. नर्मदा – केवल दर्शन मात्र से पाप मुक्त करनेवाली
  6. सिन्धु – वेदों में वर्णित अत्यंत पावन नदी
  7. कावेरी – दक्षिण भारत की अत्यंत पूजनीय नदी

सप्तनदी पुण्यपद्म स्तोत्रम् का उद्देश्य और महत्त्व

  • इस स्तोत्र का पाठ नदियों में स्नान करते समय अथवा मानसिक रूप से उन नदियों का ध्यान करते हुए भी किया जा सकता है।
  • यह नदियों के पवित्र जल के प्रतीक रूप में धार्मिक ऊर्जा, शुद्धता, और मोक्षदायक शक्ति को जागृत करता है।
  • यह स्तोत्र केवल नदियों की स्तुति नहीं है, बल्कि एक आध्यात्मिक भावना का आह्वान है, जिसमें जल के रूप में ईश्वर की कृपा को आमंत्रित किया जाता है।

सप्तनदी पुण्यपद्म स्तोत्रम् का उपयोग और पाठ विधि:

  • पाठ का समय: सूर्योदय से पूर्व, स्नान से पहले या तीर्थ स्थानों पर।
  • अनुष्ठान में उपयोग: किसी यज्ञ, पूजा या विशेष पर्व पर।
  • भावना: यदि आप इन नदियों के निकट नहीं हैं, तब भी इस स्तोत्र के माध्यम से आप मानसिक रूप से उनके पुण्य प्रभाव को आमंत्रित कर सकते हैं।

सप्तनदी पुण्यपद्म स्तोत्रम् का आध्यात्मिक लाभ:

  1. पापों का क्षय करता है
  2. मानसिक शांति और सात्विक ऊर्जा की प्राप्ति होती है
  3. तीर्थ स्नान का फल प्राप्त होता है
  4. जल तत्व के प्रति कृतज्ञता का भाव प्रगट होता है

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