31 C
Gujarat
बुधवार, नवम्बर 5, 2025

सकल जग हरिको रूप निहार

Post Date:

Sakal Jag Hariko Roop Nihar

सकल जग हरिको रूप निहार ।

हरि बिनु विश्व कतहुँ कोउ नाहीं, मिथ्या भ्रम संसार ।।

अलख निरंजन, सब जग व्यापक, सब जगको आधार ।

नहिं आधार, नाहिं कोउ हरिमहँ, केवल हरि-विस्तार ।।

अति समीप, अति दूर, अनोखे, जगमहूँ, जगतें पार ।

पय-घृत, पावक-काष्ठ, बीजमहँ, तरु-फल पल्लव-डार ।।

तिमि हरि व्यापक अखिल विश्वमहँ, आनंद पूर्ण अपार ।

एहि बिधि एक बार निरखत ही, भव-बारिधि हो पार ।।

Share post:

Subscribe

Popular

More like this
Related

धन्वन्तरिस्तोत्रम् | Dhanvantari Stotram

धन्वन्तरिस्तोत्रम् | Dhanvantari Stotramॐ नमो भगवते धन्वन्तरये अमृतकलशहस्ताय,सर्वामयविनाशनाय, त्रैलोक्यनाथाय...

दृग तुम चपलता तजि देहु – Drg Tum Chapalata Taji Dehu

दृग तुम चपलता तजि देहु - राग हंसधुन -...

हे हरि ब्रजबासिन मुहिं कीजे – He Hari Brajabaasin Muhin Keeje

 हे हरि ब्रजबासिन मुहिं कीजे - राग सारंग -...

नाथ मुहं कीजै ब्रजकी मोर – Naath Muhan Keejai Brajakee Mor

नाथ मुहं कीजै ब्रजकी मोर - राग पूरिया कल्याण...
error: Content is protected !!