29.7 C
Gujarat
शनिवार, जून 21, 2025

रश्मिरथी – तृतीय सर्ग – भाग 7 | Rashmirathi Third Sarg Bhaag 7

Post Date:

रश्मिरथी के तृतीय सर्ग के भाग 7 में रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने कर्ण और श्रीकृष्ण के मध्य संवाद को अत्यंत मार्मिक और दार्शनिक ढंग से प्रस्तुत किया है। यह अंश उस क्षण का चित्रण करता है जब श्रीकृष्ण कर्ण को युद्ध से पूर्व समझाने आते हैं कि वह अपने वास्तविक भाई पांडवों का साथ दे। परंतु कर्ण, धर्म और कर्तव्य के द्वंद्व में उलझा हुआ, अपने निर्णय पर अडिग रहता है। आइए इस अंश को भावार्थ, व्याख्या और संदर्भ के साथ विस्तार से समझते हैं:

Rashmirathi thumb

रश्मिरथी – तृतीय सर्ग – भाग 7 | Rashmirathi Third Sarg Bhaag 7

“तुच्छ है, राज्य क्या है केशव?
पाता क्या नर कर प्राप्त विभव?
चिंता प्रभूत, अत्यल्प हास,
कुछ चाकचिक्य, कुछ पल विलास,
पर वह भी यहीं गवाना है,
कुछ साथ नही ले जाना है।

“मुझसे मनुष्य जो होते हैं,
कंचन का भार न ढोते हैं,
पाते हैं धन बिखराने को,
लाते हैं रतन लुटाने को,
जग से न कभी कुछ लेते हैं,
दान ही हृदय का देते हैं।

“प्रासादों के कनकाभ शिखर,
होते कबूतरों के ही घर,
महलों में गरुड़ ना होता है,
कंचन पर कभी न सोता है।
रहता वह कहीं पहाड़ों में,
शैलों की फटी दरारों में।

“होकर सुख-समृद्ठि के अधीन,
मानव होता निज तप क्षीण,
सत्ता किरीट मणिमय आसन,
करते मनुष्य का तेज हरण।
नर विभव हेतु लालचाता है,
पर वही मनुज को खाता है।

“चाँदनी पुष्प-छाया मे पल,
नर भले बने सुमधुर कोमल,
पर अमृत क्लेश का पिए बिना,
आताप अंधड़ में जिए बिना,
वह पुरुष नही कहला सकता,
विघ्रों को नही हिला सकता।

“उड़ते जो झंझावतों में,
पीते सो वारी प्रपातो में,
सारा आकाश अयन जिनका,
विषधर भुजंग भोजन जिनका,
वे ही फानिबंध छुड़ाते हैं,
धरती का हृदय जुड़ाते हैं।

“मैं गरुड़ कृष्ण मै पक्षिराज,
सिर पर ना चाहिए मुझे ताज।
दुर्योधन पर है विपद घोर,
सकता न किसी विधि उसे छोड़,
रण-खेत पाटना है मुझको,
अहिपाश काटना है मुझको।

“संग्राम सिंधु लहराता है,
सामने प्रलय घहराता है,
रह रह कर भुजा फड़कती है,
बिजली-सी नसें कड़कती हैं,
चाहता तुरत मैं कूद पडू,
जीतूं की समर मे डूब मरूं।

“अब देर नही कीजे केशव,
अवसेर नही कीजे केशव।
धनु की डोरी तन जाने दें,
संग्राम तुरत ठन जाने दें,
तांडवी तेज लहराएगा,
संसार ज्योति कुछ पाएगा।

“पर, एक विनय है मधुसूदन,
मेरी यह जन्मकथा गोपन,
मत कभी युधिष्ठिर से कहिए,
जैसे हो इसे छिपा रहिए,
वे इसे जान यदि पाएँगे,
सिंहासन को ठुकराएँगे।

“साम्राज्य न कभी स्वयं लेंगे,
सारी संपत्ति मुझै देंगे।
मैं भी ना उसे रख पाऊंगा,
दुर्योधन को दे जाऊँगा।
पांडव वंचित रह जाएँगे,
दुख से न छूट वे पाएँगे।

“अच्छा अब चला प्रणाम आर्य,
हो सिद्व समर के शीघ्र कार्य।
रण मे ही अब दर्शन होंगे,
शार से चरणःस्पर्शन होंगे।
जय हो दिनेश नभ में विहं,
भूतल मे दिव्य प्रकाश भरें।”

रथ से राधेय उतार आया,
हरि के मन मे विस्मय छाया,
बोले कि “वीर शत बार धन्य,
तुझसा न मित्र कोई अनन्य,
तू कुरूपति का ही नही प्राण,
नरता का है भूषण महान।”

hq720

रश्मिरथी तृतीय सर्ग के भाग 7 का भावार्थ :

इस खंड में कर्ण कहता है कि राज्य, वैभव, और सत्ता तुच्छ हैं, क्योंकि अंततः मनुष्य को ये सब यहीं छोड़कर जाना होता है। वह एक सच्चे मानव के आदर्श को प्रस्तुत करता है जो स्वार्थ नहीं, परमार्थ के लिए जीता है। महलों के वैभव को वह त्याग देता है, क्योंकि गरुड़ (उसका प्रतीक) उन स्थलों पर नहीं, पहाड़ों की दरारों में वास करता है।

कर्ण स्पष्ट करता है कि वह राजसत्ता या सिंहासन के लिए नहीं, बल्कि अपने कर्तव्य और दानवीरता के लिए खड़ा है। वह श्रीकृष्ण से आग्रह करता है कि उसकी जन्मकथा को युधिष्ठिर से गोपनीय रखा जाए, क्योंकि यदि वे जान गए कि कर्ण उनका भ्राता है, तो वे राजपाट छोड़ देंगे और कर्ण को सौंप देंगे, जिसे कर्ण कभी स्वीकार नहीं कर सकता। वह फिर उसे दुर्योधन को सौंप देगा, जिससे पांडव वंचित रह जाएंगे। इसलिए वह विवेक और न्याय के विरुद्ध अपने जन्म रहस्य को छिपाना ही उचित मानता है।

साहित्यिक महत्व:

  • इस अंश में विपरीत स्थितियों में आदर्शों को निभाने वाले नायक का चित्रण है।
  • कर्ण के चरित्र की त्रासदी यहाँ चरम पर है वह सब कुछ समझते हुए भी अपने धर्म, वचन और मित्रता को नहीं छोड़ता।
  • यह काव्य त्याग, आत्मबल, संघर्ष और नैतिकता का उत्कृष्ट उदाहरण है।
  • रामधारी सिंह दिनकर ने दार्शनिकता और वीर रस को सुंदर समन्वय में पिरोया है।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Share post:

Subscribe

Popular

More like this
Related

ऋग्वेद हिंदी में

ऋग्वेद (Rig veda in Hindi PDF) अर्थात "ऋचाओं का...

Pradosh Stotram

प्रदोष स्तोत्रम् - Pradosh Stotramप्रदोष स्तोत्रम् एक महत्वपूर्ण और...

Sapta Nadi Punyapadma Stotram

Sapta Nadi Punyapadma Stotramसप्तनदी पुण्यपद्म स्तोत्रम् (Sapta Nadi Punyapadma...

Sapta Nadi Papanashana Stotram

Sapta Nadi Papanashana Stotramसप्तनदी पापनाशन स्तोत्रम् (Sapta Nadi Papanashana...
error: Content is protected !!