25.5 C
Gujarat
गुरूवार, अक्टूबर 30, 2025

रश्मिरथी – षष्ठ सर्ग – भाग 9 | Rashmirathi Sixth Sarg Bhaag 9

Post Date:

रश्मिरथी – षष्ठ सर्ग – भाग 9 | Rashmirathi Sixth Sarg Bhaag 9

तब कहते हैं अर्जुन के हित,
हो गया प्रकृति-क्रम विपर्यस्त,
माया की सहसा शाम हुई,
असमय दिनेश हो गये अस्त।

ज्यों त्यों करके इस भाँति वीर
अर्जुन का वह प्रण पूर्ण हुआ,
सिर कटा जयद्रथ का, मस्तक
निर्दोष पिता का चुर्ण हुआ।

हाँ, यह भी हुआ कि सात्यकि से,
जब निपट रहा था भूरिश्रवा,
पार्थ ने काट ली, अनाहूत,
शर से उसकी दाहिनी भुजा।
औ‘ भूरिश्रवा अनशन करके,
जब बैठ गया लेकर मुनि-व्रत,
सात्यकि ने मस्तक काट लिया,
जब था वह निश्चल, योग-निरत।

है वृथा धर्म का किसी समय,
करना विग्रह के साथ ग्रथन,
करूणा से कढ़ता धर्म विमल,
है मलिन पुत्र हिंसा का रण।
जीवन के परम ध्येय-सुख-को
सारा समाज अपनाता है,
देखना यही है कौन वहाँ
तक किस प्रकार से जाता है ?

है धर्म पहुँचना नहीं, धर्म तो
जीवन भर चलने में है।
फैला कर पथ पर स्निग्ध ज्योति
दीपक समान जलने में है।
यदि कहें विजय, तो विजय प्राप्त
हो जाती परतापी को भी,
सत्य ही, पुत्र, दारा, धन, जन;
मिल जाते है पापी को भी।

इसलिए, ध्येय में नहीं, धर्म तो
सदा निहित, साधन में है,
वह नहीं सिकी भी प्रधन-कर्म,
हिंसा, विग्रह या रण में है।
तब भी जो नर चाहते, धर्म,
समझे मनुष्य संहारों को,
गूँथना चाहते वे, फूलों के
साथ तप्त अंगारों को।

हो जिसे धर्म से प्रेम कभी
वह कुत्सित कर्म करेगा क्या ?
बर्बर, कराल, दंष्ट्री बन कर
मारेगा और मरेगा क्या ?
पर, हाय, मनुज के भाग्य अभी
तक भी खोटे के खोटे हैं,
हम बढ़े बहुत बाहर, भीतर
लेकिन, छोटे के छोटे हैं।

संग्राम धर्मगुण का विशेष्य
किस तरह भला हो सकता है ?
कैसे मनुष्य अंगारों से
अपना प्रदाह धो सकता है ?
सर्पिणी-उदर से जो निकला,
पीयूष नहीं दे पायेगा,
निश्छल होकर संग्राम धर्म का
साथ न कभी निभायेगा।

मानेगा यह दंष्ट्री कराल
विषधर भुजंग किसका यन्त्रण ?
पल-पल अति को कर धर्मसिक्त
नर कभी जीत पाया है रण ?
जो ज़हर हमें बरबस उभार,
संग्राम-भूमि में लाता है,
सत्पथ से कर विचलित अधर्म
की ओर वही ले जाता है।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Share post:

Subscribe

Popular

More like this
Related

धन्वन्तरिस्तोत्रम् | Dhanvantari Stotram

धन्वन्तरिस्तोत्रम् | Dhanvantari Stotramॐ नमो भगवते धन्वन्तरये अमृतकलशहस्ताय,सर्वामयविनाशनाय, त्रैलोक्यनाथाय...

दृग तुम चपलता तजि देहु – Drg Tum Chapalata Taji Dehu

दृग तुम चपलता तजि देहु - राग हंसधुन -...

हे हरि ब्रजबासिन मुहिं कीजे – He Hari Brajabaasin Muhin Keeje

 हे हरि ब्रजबासिन मुहिं कीजे - राग सारंग -...

नाथ मुहं कीजै ब्रजकी मोर – Naath Muhan Keejai Brajakee Mor

नाथ मुहं कीजै ब्रजकी मोर - राग पूरिया कल्याण...
error: Content is protected !!