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बुधवार, अक्टूबर 16, 2024

श्री रामरक्षास्तोत्रं पद्ममहापुराणान्तर्गतम्

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श्री रामरक्षास्तोत्रं पद्ममहापुराणान्तर्गतम् Ramaraksha Stotra

श्री रामरक्षास्तोत्रं एक अत्यंत प्रसिद्ध और पवित्र स्तोत्र है, जो भगवान श्रीराम की महिमा का गुणगान करता है। यह स्तोत्र विशेष रूप से भगवान राम के भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसे पढ़ने से उनके जीवन में रक्षा, शांति, और समृद्धि प्राप्त होती है। रामरक्षास्तोत्र का उल्लेख पद्म महापुराण में मिलता है, जो एक प्रमुख पुराण है और इसमें भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों का वर्णन है, जिनमें श्रीराम भी शामिल हैं।

रामरक्षास्तोत्र की उत्पत्ति Origin of Ramraksha Stotra

यह माना जाता है कि रामरक्षास्तोत्र की रचना ऋषि बुढ़कौशिक द्वारा की गई थी। कहा जाता है कि यह स्तोत्र स्वयं भगवान शिव ने अपने स्वप्न में ऋषि बुढ़कौशिक को प्रकट होकर बताया था। रामरक्षास्तोत्र भगवान राम के नाम, गुण, और उनके पराक्रम का वर्णन करता है, और इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति पर भगवान राम की कृपा होती है।

पद्ममहापुराण और रामरक्षास्तोत्र Padma Mahapuran and Ramrakshastotra

पद्ममहापुराण विष्णु भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसमें धर्म, अध्यात्म, और भक्ति के विभिन्न पहलुओं पर गहन चर्चा की गई है। इस पुराण में भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों के साथ-साथ रामावतार का भी विस्तृत वर्णन है। इसी संदर्भ में रामरक्षास्तोत्र का स्थान आता है, जहां भगवान राम की महिमा और उनके नाम की शक्ति की व्याख्या की गई है। यह स्तोत्र भक्तों को भगवान राम की असीम कृपा प्राप्त करने का मार्ग दिखाता है।

रामरक्षास्तोत्र का महत्व Importance of Ramrakshastotra

  1. रक्षा का वचन: जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है, यह स्तोत्र भगवान राम से रक्षा की प्रार्थना करता है। जो भी इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसके जीवन में नकारात्मक शक्तियों और कष्टों से रक्षा होती है।
  2. शांति और समृद्धि: रामरक्षास्तोत्र का नियमित पाठ करने से मानसिक शांति और आंतरिक संतुलन प्राप्त होता है। यह जीवन के तनावों को कम करता है और समृद्धि लाता है।
  3. भक्तों के लिए वरदान: इसे भगवान राम के प्रति भक्ति और समर्पण का अद्भुत माध्यम माना जाता है। यह स्तोत्र भक्तों को भगवान राम के निकट ले जाने का मार्ग प्रदान करता है।
  4. सांसारिक और आध्यात्मिक विकास: इसे पढ़ने से व्यक्ति के जीवन में सांसारिक सुख और आध्यात्मिक उन्नति दोनों प्राप्त होती हैं। इसका पाठ करने से भक्त भगवान राम के प्रति समर्पित होता है और उन्हें उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।

रामरक्षास्तोत्र के मुख्य श्लोक Main verses of Ramrakshastotra

रामरक्षास्तोत्र में कई शक्तिशाली श्लोक हैं, जो भगवान राम की विभिन्न रूपों में महिमा का गुणगान करते हैं। इसमें भगवान राम के विभिन्न नामों, उनके आभूषणों, और उनके दिव्य गुणों का वर्णन है। प्रमुख श्लोकों में भगवान राम के व्यक्तित्व, उनके शस्त्रों, और उनके पराक्रम का उल्लेख है।

उदाहरण के रूप में:

“ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं। पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्॥”

यह श्लोक भगवान राम के शांत और प्रसन्न रूप का वर्णन करता है, जहां वे कमल के समान सुंदर आंखों वाले, पीत वस्त्र धारण किए हुए दिखाई देते हैं।

रामरक्षास्तोत्र के लाभ Benefits of Ramrakshastotra

  1. आध्यात्मिक उन्नति: इसका पाठ करने से भक्त के भीतर आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ती है और वह भगवान राम के प्रति समर्पण को और गहरा करता है।
  2. रोगों से मुक्ति: कहा जाता है कि रामरक्षास्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है।
  3. विघ्नों का नाश: यह स्तोत्र जीवन के सभी विघ्न-बाधाओं को दूर करने में सहायक होता है। जब भी जीवन में किसी संकट का सामना करना पड़ता है, तो रामरक्षास्तोत्र का पाठ करने से संकट दूर होता है।
  4. परिवार की रक्षा: इसे परिवार की समग्र सुरक्षा और कल्याण के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है। जो व्यक्ति इसे पूरे मन से पढ़ता है, उसके परिवार पर भगवान राम की कृपा सदैव बनी रहती है।

श्री रामरक्षास्तोत्रं पद्ममहापुराणान्तर्गतम् Ramaraksha Stotra

 

इदं पवित्रं परमं भक्तानां वल्लभं सदा ।
ध्येयं हि दासभावेन भक्तिभावेन चेतसा ॥

परं सहस्रनामाख्यम् ये पठन्ति मनीषिणः ।
सर्वपापविनिर्मुक्ताः ते यान्ति हरिसन्निधौ ॥

महादेव उवाच ।

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि माहात्म्यं केशवस्य तु ।
ये शृण्वन्ति नरश्रेष्ठाः ते पुण्याः पुण्यरूपिणः ॥

ॐ रामरक्षास्तोत्रस्य श्रीमहर्षिर्विश्वामित्रऋषिः ।
श्रीरामोदेवता । अनुष्टुप् छन्दः । विष्णुप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ॥१॥

अतसी पुष्पसङ्काशं पीतवास समच्युतम् ।
ध्यात्वा वै पुण्डरीकाक्षं श्रीरामं विष्णुमव्ययम् ॥२॥

पातुवो हृदयं रामः श्रीकण्ठः कण्ठमेव च ।
नाभिं पातु मखत्राता कटिं मे विश्वरक्षकः ॥३॥

करौ पातु दाशरथिः पादौ मे विश्वरूपधृक् ।
चक्षुषी पातु वै देव सीतापतिरनुत्तमः ॥४॥

शिखां मे पातु विश्वात्मा कर्णौ मे पातु कामदः ।
पार्श्वयोस्तु सुरत्राता कालकोटि दुरासदः ॥५॥

अनन्तः सर्वदा पातु शरीरं विश्वनायकः ।
जिह्वां मे पातु पापघ्नो लोकशिक्षाप्रवर्त्तकः ॥६॥

राघवः पातु मे दन्तान् केशान् रक्षतु केशवः ।
सक्थिनी पातु मे दत्तविजयोनाम विश्वसृक् ॥७॥

एतां रामबलोपेतां रक्षां यो वै पुमान् पठेत् ।
सचिरायुः सुखी विद्वान् लभते दिव्यसम्पदाम् ॥८॥

रक्षां करोति भूतेभ्यः सदा रक्षतु वैष्णवी ।
रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति यः स्मरेत् ॥९॥

विमुक्तः स नरः पापान् मुक्तिं प्राप्नोति शाश्वतीम् ।
वसिष्ठेन इदं प्रोक्तं गुरवे विष्णुरूपिणे ॥१०॥

ततो मे ब्रह्मणः प्राप्तं मयोक्तं नारदं प्रति ।
नारदेन तु भूर्लोके प्रापितं सुजनेष्विह ॥११॥

सुप्त्वा वाऽथ गृहेवापि मार्गे गच्छेत एव वा ।
ये पठन्ति नरश्रेष्ठः ते नराः पुण्यभागिनः ॥१२॥

इति श्रीपाद्मेमहापुराणे पञ्चपञ्चाशत्साहस्त्र्यां संहितायामुत्तरखण्डे उमापतिनारदसंवादे रामरक्षास्तोत्रं नामत्रिसप्ततितमोऽध्यायः ॥

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