Rama Raksha Stotram In Hindi
श्रीरामरक्षास्तोत्रं(Rama Raksha Stotram) भगवान श्रीराम के प्रति श्रद्धा, भक्ति और सुरक्षा की भावना से ओतप्रोत एक अद्भुत स्तोत्र है। यह स्तोत्र श्री बुधकौशिक ऋषि द्वारा रचित है। इसे पाठ करने से मनुष्य के जीवन में शांति, सुख, और सुरक्षा का अनुभव होता है। कहा जाता है कि इस स्तोत्र का पाठ करने से भगवान राम अपने भक्त की रक्षा करते हैं और सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति दिलाते हैं।
श्रीरामरक्षास्तोत्र का महत्त्व Importance of Rama Raksha Stotram
- आध्यात्मिक सुरक्षा:
श्रीरामरक्षास्तोत्र में भगवान राम के नाम, गुण और उनकी महिमा का गुणगान किया गया है। इसे पढ़ने से व्यक्ति को आध्यात्मिक सुरक्षा प्राप्त होती है और मन में सकारात्मकता का संचार होता है। - कष्टों से मुक्ति:
यह माना जाता है कि इस स्तोत्र का पाठ करने से सभी प्रकार के भय, कष्ट और बुरे प्रभाव दूर हो जाते हैं। यह व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति और सफलता लाता है। - भक्ति का संचार:
श्रीरामरक्षास्तोत्र भगवान राम के प्रति भक्ति को गहन और दृढ़ बनाता है। यह मन को शुद्ध करता है और व्यक्ति को ईश्वर के समीप लाता है। - राम नाम की महिमा:
स्तोत्र में भगवान राम के नाम की महिमा, उनके व्यक्तित्व और उनके कार्यों का वर्णन किया गया है, जो भक्त को प्रेरणा और आत्मबल प्रदान करता है।
श्रीरामरक्षास्तोत्र की रचना और पाठ की विधि
श्रीरामरक्षास्तोत्र की रचना बहुत ही सरल और प्रभावशाली है। यह संस्कृत भाषा में लिखा गया है और इसमें कुल 38 श्लोक हैं। इसका पाठ किसी भी दिन, विशेष रूप से मंगलवार या राम नवमी के दिन, शुभ माना जाता है।
पाठ की विधि:
- प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजन स्थल पर दीप जलाकर भगवान श्रीराम की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें।
- श्रीरामरक्षास्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करें।
- पाठ के बाद भगवान राम को प्रणाम करें और उनकी कृपा की कामना करें।
राम रक्षा स्तोत्र
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं
पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ।
वामाङ्कारूढसीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलं रामचन्द्रम् ॥१॥
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥२॥
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामकुटमण्डितम् ॥३॥
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम् ।
स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥४॥
रामरक्षां पठेत् प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः ॥५॥
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रियः श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ॥६॥
जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवन्दितः ।
स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ॥७॥
करौ सीतापतिः पातु हृदयं जामदग्न्यजित् ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ॥८॥
सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभुः ।
ऊरू रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत् ॥९॥
जानुनी सेतुकृत् पातु जङ्खे दशमुखान्तकः ।
पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः ॥१०॥
एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत् ।
स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥११॥
पातालभूतलव्योमचारिणः छद्मारिणः ।
न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रमनामभिः ॥१२॥
रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन ।
नरो न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१३॥
जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
यः कण्ठे धरयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥१४॥
वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ।
अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमङ्गलम् ॥१५॥
आदिष्टवान् यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हरः ।
तथा लिखितवान् प्राप्तः प्रबुद्धो बुधकौशिकः ॥१६॥
आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम् ।
अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमन्स नः प्रभुः ॥१७॥
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१८॥
फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१९॥
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥२०॥
आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशावक्षयाशुगनिषङ्गसङ्गिनौ
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम् ॥२१॥
सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन्ममाग्रतो नित्यं रामः पातु सलक्ष्मणः ॥२२॥
रामो दाशरथिः शूरो लक्ष्मणानुचरो बली ।
काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः ॥२३॥
वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः ।
जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः ॥२४॥
इत्येतानि जपन्नितयं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशयः ॥२५॥
रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैः न ते संसारिणो नराः ॥२६॥
रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दॢं
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम् ।
राजेन्द्रं सत्यसन्धं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्तिं
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥२७॥
रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधस ।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ॥२८॥
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२९॥
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि
श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि
श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥३०॥
माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः
स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः ।
सर्वस्वं मे जीवितेशो दयालु-
र्नान्यं दैवं नैव जाने न जाने ॥३१॥
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम् ॥३२॥
लोकाभिरामं रणरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥३३॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥३४॥
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरं ।
आरुह्यकविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३५॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥३६॥
भर्जनं भवबीजानां अर्जनं सुखसंपदाम् ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥३७॥
रमो राजमणिः सदा विजयते रामं रमेशं भजे
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहं
रामे चित्तलयः सदा भवतु मेभो राम मामुद्धर ॥३८॥
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥
इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ।
श्रीरामरक्षास्तोत्र का फलश्रुति
श्रीरामरक्षास्तोत्र के अंत में कहा गया है कि जो भी व्यक्ति इसका श्रद्धा और भक्ति के साथ पाठ करता है, उसे निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:
- उसे सभी प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है।
- भगवान राम की कृपा से उसे सुख और समृद्धि प्राप्त होती है।
- वह व्यक्ति भगवान राम के प्रति अधिक समर्पित हो जाता है।
- उसके जीवन में आध्यात्मिक शक्ति और स्थिरता का संचार होता है।
यह स्तोत्र न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह मानसिक और भावनात्मक शांति प्रदान करने वाला भी है। आज के तनावपूर्ण जीवन में इसका पाठ करने से व्यक्ति को मानसिक संतुलन और आत्मबल मिलता है