Ram Kavach
श्री राम कवचम् एक शक्तिशाली स्तोत्र है, जो भगवान श्रीराम की कृपा प्राप्त करने और हर प्रकार की विपत्तियों से रक्षा करने के लिए पाठ किया जाता है। यह कवच भगवान राम की महिमा का वर्णन करता है और साधक को आध्यात्मिक, मानसिक एवं शारीरिक रूप से बल प्रदान करता है। श्री राम कवचम् का पाठ विशेष रूप से संकट के समय, ग्रह बाधा निवारण, शत्रु बाधा नाश एवं आत्मिक शुद्धि के लिए किया जाता है।
श्री राम कवचम् का पाठ विधि
- स्नान एवं शुद्धता – सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थान – श्रीराम की मूर्ति या चित्र के समक्ष दीप जलाएँ और पुष्प अर्पित करें।
- संकल्प – पाठ करने से पहले संकल्प लें कि आप यह स्तोत्र श्रीराम की कृपा प्राप्ति के लिए कर रहे हैं।
- आसन ग्रहण करें – किसी शुद्ध स्थान पर कुश या ऊन के आसन पर बैठें।
- श्री राम कवचम् का पाठ करें – श्रद्धा एवं भक्ति के साथ पाठ करें।
- आरती करें – पाठ समाप्त करने के बाद भगवान श्रीराम की आरती करें और प्रसाद अर्पित करें।
- ध्यान और प्रार्थना – अंत में राम नाम का जप करें और भगवान श्रीराम का ध्यान करें।
श्री राम कवचम् के लाभ
- सभी प्रकार के भय से मुक्ति – यह कवच साधक को भय, मानसिक तनाव एवं नकारात्मक ऊर्जा से बचाता है।
- ग्रह दोष निवारण – श्री राम कवचम् का पाठ करने से राहु, केतु और शनि के कुप्रभाव समाप्त होते हैं।
- शत्रु नाश एवं सुरक्षा – यह कवच शत्रु बाधाओं से रक्षा करता है और व्यक्ति को आत्मिक बल प्रदान करता है।
- शांति एवं समृद्धि – श्रीराम की कृपा से जीवन में सुख, समृद्धि एवं मानसिक शांति प्राप्त होती है।
- स्वास्थ्य रक्षा – निरोगी काया के लिए भी इस कवच का पाठ लाभकारी माना जाता है।
- परिवार में सुख-शांति – परिवार में आपसी प्रेम और सद्भाव बनाए रखने में यह कवच सहायक होता है।
- संकटमोचक प्रभाव – किसी भी संकट या समस्या से निकलने में यह कवच अत्यंत प्रभावी सिद्ध होता है।
श्री राम कवचम् का पाठ करने का उपयुक्त समय
- नवरात्रि, रामनवमी, दीपावली, एकादशी, मंगलवार एवं गुरुवार के दिन विशेष रूप से इसका पाठ करना शुभ माना जाता है।
- प्रतिदिन सुबह या रात को सोने से पहले पाठ करने से विशेष फल मिलता है।
- किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए 11 या 21 दिनों तक नियमित पाठ करने से शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं।
Ram Kavach
अगस्तिरुवाच
आजानुबाहुमरविंददलायताक्ष-
-माजन्मशुद्धरसहासमुखप्रसादम् ।
श्यामं गृहीत शरचापमुदाररूपं
रामं सराममभिराममनुस्मरामि ॥ 1 ॥
अस्य श्रीरामकवचस्य अगस्त्य ऋषिः अनुष्टुप् छंदः सीतालक्ष्मणोपेतः श्रीरामचंद्रो देवता श्रीरामचंद्रप्रसादसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।
अथ ध्यानं
नीलजीमूतसंकाशं विद्युद्वर्णांबरावृतम् ।
कोमलांगं विशालाक्षं युवानमतिसुंदरम् ॥ 1 ॥
सीतासौमित्रिसहितं जटामुकुटधारिणम् ।
सासितूणधनुर्बाणपाणिं दानवमर्दनम् ॥ 2 ॥
यदा चोरभये राजभये शत्रुभये तथा ।
ध्यात्वा रघुपतिं क्रुद्धं कालानलसमप्रभम् ॥ 3 ॥
चीरकृष्णाजिनधरं भस्मोद्धूलितविग्रहम् ।
आकर्णाकृष्टविशिखकोदंडभुजमंडितम् ॥ 4 ॥
रणे रिपून् रावणादींस्तीक्ष्णमार्गणवृष्टिभिः ।
संहरंतं महावीरमुग्रमैंद्ररथस्थितम् ॥ 5 ॥
लक्ष्मणाद्यैर्महावीरैर्वृतं हनुमदादिभिः ।
सुग्रीवाद्यैर्माहावीरैः शैलवृक्षकरोद्यतैः ॥ 6 ॥
वेगात्करालहुंकारैर्भुभुक्कारमहारवैः ।
नदद्भिः परिवादद्भिः समरे रावणं प्रति ॥ 7 ॥
श्रीराम शत्रुसंघान्मे हन मर्दय खादय ।
भूतप्रेतपिशाचादीन् श्रीरामाशु विनाशय ॥ 8 ॥
एवं ध्यात्वा जपेद्रामकवचं सिद्धिदायकम् ।
सुतीक्ष्ण वज्रकवचं शृणु वक्ष्याम्यनुत्तमम् ॥ 9 ॥
अथ कवचम्
श्रीरामः पातु मे मूर्ध्नि पूर्वे च रघुवंशजः ।
दक्षिणे मे रघुवरः पश्चिमे पातु पावनः ॥ 10 ॥
उत्तरे मे रघुपतिर्भालं दशरथात्मजः ।
भ्रुवोर्दूर्वादलश्यामस्तयोर्मध्ये जनार्दनः ॥ 11 ॥
श्रोत्रं मे पातु राजेंद्रो दृशौ राजीवलोचनः ।
घ्राणं मे पातु राजर्षिर्गंडौ मे जानकीपतिः ॥ 12 ॥
कर्णमूले खरध्वंसी भालं मे रघुवल्लभः ।
जिह्वां मे वाक्पतिः पातु दंतपंक्ती रघूत्तमः ॥ 13 ॥
ओष्ठौ श्रीरामचंद्रो मे मुखं पातु परात्परः ।
कंठं पातु जगद्वंद्यः स्कंधौ मे रावणांतकः ॥ 14 ॥
धनुर्बाणधरः पातु भुजौ मे वालिमर्दनः ।
सर्वाण्यंगुलिपर्वाणि हस्तौ मे राक्षसांतकः ॥ 15 ॥
वक्षो मे पातु काकुत्स्थः पातु मे हृदयं हरिः ।
स्तनौ सीतापतिः पातु पार्श्वं मे जगदीश्वरः ॥ 16 ॥
मध्यं मे पातु लक्ष्मीशो नाभिं मे रघुनायकः ।
कौसल्येयः कटी पातु पृष्ठं दुर्गतिनाशनः ॥ 17 ॥
गुह्यं पातु हृषीकेशः सक्थिनी सत्यविक्रमः ।
ऊरू शार्ङ्गधरः पातु जानुनी हनुमत्प्रियः ॥ 18 ॥
जंघे पातु जगद्व्यापी पादौ मे ताटकांतकः ।
सर्वांगं पातु मे विष्णुः सर्वसंधीननामयः ॥ 19 ॥
ज्ञानेंद्रियाणि प्राणादीन् पातु मे मधुसूदनः ।
पातु श्रीरामभद्रो मे शब्दादीन्विषयानपि ॥ 20 ॥
द्विपदादीनि भूतानि मत्संबंधीनि यानि च ।
जामदग्न्यमहादर्पदलनः पातु तानि मे ॥ 21 ॥
सौमित्रिपूर्वजः पातु वागादीनींद्रियाणि च ।
रोमांकुराण्यशेषाणि पातु सुग्रीवराज्यदः ॥ 22 ॥
वाङ्मनोबुद्ध्यहंकारैर्ज्ञानाज्ञानकृतानि च ।
जन्मांतरकृतानीह पापानि विविधानि च ॥ 23 ॥
तानि सर्वाणि दग्ध्वाशु हरकोदंडखंडनः ।
पातु मां सर्वतो रामः शार्ङ्गबाणधरः सदा ॥ 24 ॥
इति श्रीरामचंद्रस्य कवचं वज्रसम्मितम् ।
गुह्याद्गुह्यतमं दिव्यं सुतीक्ष्ण मुनिसत्तम ॥ 25 ॥
यः पठेच्छृणुयाद्वापि श्रावयेद्वा समाहितः ।
स याति परमं स्थानं रामचंद्रप्रसादतः ॥ 26 ॥
महापातकयुक्तो वा गोघ्नो वा भ्रूणहा तथा ।
श्रीरामचंद्रकवचपठनाच्छुद्धिमाप्नुयात् ॥ 27 ॥
ब्रह्महत्यादिभिः पापैर्मुच्यते नात्र संशयः ।
भो सुतीक्ष्ण यथा पृष्टं त्वया मम पुराः शुभम् ।
तथा श्रीरामकवचं मया ते विनिवेदितम् ॥ 28 ॥
इति श्रीमदानंदरामायणे मनोहरकांडे सुतीक्ष्णागस्त्यसंवादे श्रीरामकवचम् ॥
श्री राम कवचम् एक अत्यंत प्रभावशाली और शक्तिशाली स्तोत्र है। इसका पाठ करने से साधक पर भगवान श्रीराम की कृपा बनी रहती है और जीवन में आने वाली सभी प्रकार की बाधाएँ दूर हो जाती हैं। जो भी व्यक्ति नियमित रूप से श्रद्धा और विश्वास के साथ इस कवच का पाठ करता है, वह आध्यात्मिक रूप से उन्नति करता है और भगवान श्रीराम का आशीर्वाद प्राप्त करता है।
🔸 श्री राम जय राम जय जय राम 🔸