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बुधवार, नवम्बर 5, 2025

नाथ थारै सरण पड़ी दासी – Naath Thaarai Saran Padee Daasee

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नाथ थारै सरण पड़ी दासी

Naath Thaarai Saran Padee Daasee

(मारवाड़ी बोली)

नाथ थारै सरण पड़ी दासी ।

(मोय) भवसागरसें त्यार काटयो जनम मरण फाँसी ।।

नाथ ! मैं भोत कष्ट पाई।

भटक भटक चौरासी जूणी मिनख-देह पाई। मिटाद्यो दुःखाँकी रासी ।।

नाथ ! मैं पाप भोत कीना ।

संसारी भोगाँकी आसा दुःख भोत दीना । कामना है सत्याना डी ।।

नाथ ! मैं भगति नहीं कीनी ।

झूठा भोगाँकी तृसनामें उम्मर खो दीनी । दुःख अब मेटो अविनासी ।।

नाथ ! अब सब आसा टूटी ।

(थारे) श्रीचरणाँकी भगति एक है संजीवन बूटी। रहूँ नित दरसणकी प्यासी ।।

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