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शुक्रवार, मार्च 7, 2025

महागणपति मंगल मालिका स्तोत्रम्

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महागणपति मंगल मालिका स्तोत्रम्(Mahaganapati Mangal Malika Stotram) श्री कृष्णेन्द्र यति द्वारा रचित एक पवित्र और प्राचीन स्तोत्र है। यह स्तोत्र मुख्य रूप से भगवान गणेश की स्तुति के लिए लिखा गया है, जो विघ्नहर्ता और मंगलकारी देवता के रूप में पूजित हैं। श्री गणेश को सभी शुभ कार्यों की शुरुआत में पूजा जाता है और उनके आशीर्वाद से कार्य में आने वाली बाधाओं का नाश होता है।

लेखक परिचय: श्री कृष्णेन्द्र यति एक प्रख्यात संत और विद्वान थे, जिन्होंने संस्कृत में कई महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथों की रचना की। वे भक्ति और वेदांत के बड़े ज्ञाता थे। उनके द्वारा रचित कई स्तोत्रों में महागणपति मंगल मालिका स्तोत्रम् का विशेष स्थान है।

महागणपति मंगल मालिका स्तोत्रम् का महत्व:

यह स्तोत्र भगवान गणेश की महिमा का गान करता है और इसे नियमित रूप से पढ़ने से जीवन के समस्त संकटों का नाश होता है। इसे मंगलकारी और कल्याणकारी माना गया है। इस स्तोत्र में भगवान गणेश के विभिन्न नामों और रूपों का वर्णन किया गया है, जो भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।

शब्द संरचना: ‘मालिका’ शब्द से तात्पर्य माला या श्रृंखला से है। इस स्तोत्र में श्लोकों की श्रृंखला भगवान गणेश की मंगलमयी स्तुति करती है। इस स्तोत्र की भाषा सरल, परंतु अत्यंत प्रभावशाली है। इसमें गणपति के विविध गुणों का वर्णन किया गया है, जैसे उनकी शक्ति, सौम्यता, करुणा और बुद्धिमत्ता।

महागणपति मंगल मालिका स्तोत्रम् का लाभ:

महागणपति मंगल मालिका स्तोत्रम् के नियमित पाठ से कई प्रकार के लाभ बताए गए हैं:

  1. कार्यों में आ रही बाधाओं का नाश होता है।
  2. घर-परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।
  3. मानसिक शांति प्राप्त होती है और चिंता का नाश होता है।
  4. ज्ञान, बुद्धि और विवेक की प्राप्ति होती है।
  5. आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर चलने में सहायता मिलती है।

महागणपति मंगल मालिका स्तोत्रम् पाठ विधि:

स्तोत्र का पाठ श्रद्धा और भक्ति से करना चाहिए ताकि भगवान गणेश की कृपा प्राप्त हो सके।

सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर इस स्तोत्र का पाठ करना शुभ माना गया है।

पाठ के दौरान मन को शांत और एकाग्र रखना चाहिए।

श्रीकंठप्रेमपुत्राय गौरीवामाङ्कवासिने ।
द्वात्रिंशद्रूपयुक्ताय श्रीगणेशाय मंगलम् ॥१॥

आदिपूज्याय देवाय दन्तमोदकधारिणे ।
वल्लभाप्राणकान्ताय श्रीगणेशाय मंगलम् ॥२॥

लंबोदराय शान्ताय चन्द्रगर्वापहारिणे ।
गजाननाय प्रभवे श्रीगणेशाय मंगलम् ॥३॥

पंचहस्ताय वन्द्याय पाशाङ्कुशधराय च ।
श्रीमते गजकर्णाय श्रीगणेशाय मंगलम् ॥४॥

द्वैमातुराय बालाय हेरंबाय महात्मने ।
विकटायाखुवाहाय श्रीगणेशाय मंगलम् ॥५॥

पृश्निशृंगायाजिताय क्षिप्राभीष्टार्थदायिने ।
सिद्धि बुद्धि प्रमोदाय श्रीगणेशाय मंगलम् ॥६॥

विलंबियज्ञसूत्राय सर्व विघ्ननिवारिणे ।
दूर्वादल सुपूज्याय श्रीगणेशाय मंगलम् ॥७॥

महाकायाय भीमाय महासेनाग्रजन्मने ।
त्रिपुरारिवरोद्धर्त्रे श्रीगणेशाय मंगलम् ॥८॥

सिंधूररम्यवर्णाय नागबद्धोदराय च ।
आमोदायप्रमोदाय श्रीगणेशाय मंगलम् ॥९॥

विघ्नकर्त्रे दुर्मुखाय विघ्नहर्त्रे शिवात्मने ।
सुमुखायैकदन्ताय श्रीगणेशाय मंगलम् ॥१०॥

समस्तगणनाथाय विष्णवे धूमकेतवे ।
त्र्यक्षाय फालचन्द्राय श्रीगणेशाय मंगलम् ॥११॥

चतुर्थीशाय मान्याय सर्वविद्याप्रदायिने ।
वक्रतुण्डाय कुब्जाय श्रीगणेशाय मंगलम् ॥१२॥

धुण्डिने कपिलाख्याय श्रेष्ठाय ऋणहारिणे ।
उद्दण्डोद्दण्डरूपाय श्रीगणेशाय मंगलम् ॥१३॥

कष्टहर्त्रे द्विदेहाय भक्तेष्टजयदायिने ।
विनायकाय विभवे श्रीगणेशाय मंगलम् ॥१४॥

सच्चिदानन्दरूपाय निर्गुणाय गुणात्मने ।
वटवे लोकगुरवे श्रीगणेशाय मंगलम् ॥१५॥

श्रीचामुण्डासुपुत्राय प्रसन्नवदनायच ।
श्रीराज राजसेव्याय श्रीगणेशाय मंगलम् ॥१६॥

श्रीचामुण्डाकृपापात्र श्रीकृष्णेंद्र विनिर्मिताम् ।
विभूतिमातृकारम्यां कल्याणैश्वर्यदायिनीम् ॥१७॥

श्रीमहागणनाथस्य शुभां मंगलमालिकाम् ।
यः पठेत् सततं वाणीं लक्ष्मीं सिद्धिमवाप्नुयात् ॥१८॥

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