Lalitha Stava
ललिता स्तव (या ललिता स्तोत्र) एक अत्यंत पवित्र एवं शक्तिशाली स्तोत्र है जो आदिशक्ति त्रिपुरा सुंदरी देवी (श्रीललिता देवी) की स्तुति में रचा गया है। यह स्तव देवी उपासना में एक उच्च स्थान रखता है और विशेष रूप से श्रीविद्या साधना से जुड़ा हुआ माना जाता है। यह स्तोत्र ब्रह्मानंद और आनंदलहरी जैसी रचनाओं की तरह देवी की कृपा प्राप्त करने हेतु अत्यंत प्रभावशाली है।
- संस्कृत भाषा में रचित यह स्तव मार्कण्डेय पुराण, ललिता महात्म्य और त्रिपुरा रहस्य जैसे ग्रंथों से संबंधित है।
- इसे ललिता सहस्रनाम का पूरक स्तोत्र भी माना जाता है, जो कि देवी के हजार नामों की स्तुति है।
- इस स्तव में देवी की रूप-लावण्य, तेजस्विता, करुणा, शक्ति और ज्ञान की अत्यंत सरस और अलंकारिक भाषा में प्रशंसा की गई है।
ललिता स्तव
कलयतु कवितां सरसां कविहृद्यां कालकालकान्ता मे।
कमलोद्भवकमलासखकलितप्रणतिः कृपापयोराशिः।
एनोनीरधिनौकामेकान्तवासमौनरतलभ्याम्।
एणाङ्कतुल्यवदनामेकाक्षररूपिणीं शिवां नौमि।
ईक्षणनिर्जितहरिणीमीप्सितसर्वार्थदानधौरेयाम्।
ईडितविभवां वेदैरीशाङ्कनिवासिनीं स्तुवे देवीम्।
ललितैः पदविन्यासैर्लज्जां तनुते यदीयपदभक्तः।
लघु देवेन्द्रगुरोरपि ललितां तां नौमि सन्ततं भक्त्या।
पाठ करने के लाभ
- मन की शुद्धि – यह स्तोत्र पाठक के अंतःकरण को निर्मल करता है।
- मनोकामना पूर्ति – देवी की कृपा से इच्छित फल की प्राप्ति होती है।
- मंत्र-सिद्धि – यह स्तव श्रीविद्या साधकों के लिए अत्यंत उपयोगी है।
- दुर्भाग्य का नाश – शत्रु बाधा, दरिद्रता, भय, रोग आदि का निवारण करता है।
- आध्यात्मिक उन्नति – साधक को आत्मा के उच्चतम स्तर पर पहुँचने में सहायक होता है।
पाठ की विधि
- सुबह या संध्या के समय स्नान करके शुद्ध होकर देवी के समक्ष दीपक जलाकर पाठ करना चाहिए।
- संभव हो तो श्रीचक्र या ललिता यंत्र के समक्ष पाठ करें।
- लाल पुष्प, कुमकुम, चंदन आदि से पूजा करें।
- नवरात्रि, पूर्णिमा, शुक्रवार तथा विशेष रूप से ललिता जयंती (माघ शुक्ल पंचमी) पर इसका पाठ विशेष फलदायक होता है।