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मंगलवार, फ़रवरी 4, 2025

ललिता पंचकम् லலிதா பஞ்சகம்

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Lalitha Panchakam In Hindi

ललिता पंचकम्(Lalitha Panchakam) संस्कृत भाषा में रचित एक प्रसिद्ध स्तोत्र है, जो देवी ललिता त्रिपुरा सुंदरी को समर्पित है। यह स्तोत्र देवी के अद्वितीय रूप, उनकी महिमा और अनुग्रह का वर्णन करता है। यह पंच श्लोकों का संग्रह है, जिसे आदि शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है। इसे भक्तिभाव से गाया जाता है और इसे पाठ करने से जीवन में शांति, समृद्धि और आध्यात्मिक उत्थान की प्राप्ति होती है।

ललिता पंचकम् श्लोकों का महत्व Lalitha Panchakam Importance

ललिता पंचकम् में केवल पाँच श्लोक हैं, लेकिन इनमें देवी ललिता के स्वरूप, गुण, कार्य और उनके प्रति समर्पण का संपूर्ण विवरण दिया गया है। यह श्लोक देवी को सच्चे हृदय से प्रणाम करने और उनके प्रति भक्ति प्रकट करने का माध्यम है। प्रत्येक श्लोक में भक्तों को देवी की कृपा प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन दिया गया है।

देवी ललिता का स्वरूप

ललिता त्रिपुरा सुंदरी को शाक्त परंपरा में सबसे प्रमुख देवियों में से एक माना गया है। वे शक्ति, करुणा, प्रेम और सौंदर्य की प्रतीक हैं। उनका वर्णन “श्री चक्र” और “श्री विद्या” से संबंधित है। ललिता पंचकम् के अनुसार, वे पूरे ब्रह्मांड की अधिष्ठात्री देवी हैं और उनकी कृपा से ही आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।

देवी ललिता पाठ करने का महत्त्व Lalitha Panchakam Path Importance

  1. आध्यात्मिक शांति: ललिता पंचकम् का पाठ करने से मन को शांति मिलती है और ध्यान में स्थिरता आती है।
  2. कर्मों का शुद्धिकरण: इसे नियमित रूप से पढ़ने से पिछले बुरे कर्मों का शुद्धिकरण होता है।
  3. भक्ति और आत्मज्ञान: यह श्लोक भक्त को देवी के प्रति पूर्ण समर्पण और आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करता है।
  4. श्री चक्र पूजा का अंग: यह स्तोत्र श्री चक्र पूजा का अभिन्न हिस्सा है, जो देवी की पूजा का विशेष रूप है।

ललिता पंचकम् லலிதா பஞ்சகம்

प्रातः स्मरामि ललितावदनारविन्दं
बिम्बाधरं पृथुलमौक्तिकशोभिनासम्।
आकर्णदीर्घनयनं मणिकुण्डलाढ्यं
मन्दस्मितं मृगमदोज्ज्वलफालदेशम्।
प्रातर्भजामि ललिताभुजकल्पवल्लीं
रक्ताङ्गुलीयलसदङ्गुलिपल्लवाढ्याम्।
माणिक्यहेमवलयाङ्गदशोभमानां
पुण्ड्रेक्षुचापकुसुमेषुसृणीर्दधानाम्।
प्रातर्नमामि ललिताचरणारविन्दं
भक्तेष्टदाननिरतं भवसिन्धुपोतम्।
पद्मासनादिसुरनायकपूजनीयं
पद्माङ्कुशध्वजसुदर्शनलाञ्छनाढ्यम्।
प्रातः स्तुवे परशिवां ललितां भवानीं
त्रय्यङ्गवेद्यविभवां करुणानवद्याम्।
विश्वस्य सृष्टिविलयस्थितिहेतुभूतां
विद्येश्वरीं निगमवाङ्मनसातिदूराम्।
प्रातर्वदामि ललिते तव पुण्यनाम
कामेश्वरीति कमलेति महेश्वरीति।
श्रीशाम्भवीति जगतां जननी परेति
वाग्देवतेति वचसा त्रिपुरेश्वरीति।
यः श्लोकपञ्चकमिदं ललिताम्बिकायाः
सौभाग्यदं सुललितं पठति प्रभाते।
तस्मै ददाति ललिता झटिति प्रसन्ना
विद्यां श्रियं विमलसौख्यमनन्तकीर्तिम्।

उच्चारण और पाठ का समय

ललिता पंचकम् का पाठ प्रातःकाल या संध्या के समय, शुद्ध मन और शरीर से किया जाता है। पाठ के समय दीपक जलाना और देवी की छवि के सामने बैठना शुभ माना जाता है। इसे गाते समय उच्चारण की शुद्धता का ध्यान रखना चाहिए।

भक्ति का प्रतीक

ललिता पंचकम् केवल स्तोत्र ही नहीं, बल्कि भक्ति का अद्वितीय प्रतीक है। यह भक्त और देवी के बीच के आध्यात्मिक संबंध को गहरा करता है। इसे गाते या पढ़ते समय मन में पवित्रता और समर्पण की भावना होनी चाहिए।

ललिता पंचकम् पर पूछे जाने वाले प्रश्न

  1. ललिता पंचकम् क्या है?

    ललिता पंचकम् एक संस्कृत स्तोत्र है, जिसमें देवी ललिता की महिमा का वर्णन किया गया है। इसमें पाँच श्लोक शामिल हैं, जो उनकी कृपा, सौंदर्य और अद्वितीय दिव्यता का गुणगान करते हैं। इसे आदि शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है।

  2. ललिता पंचकम् का पाठ क्यों किया जाता है?

    ललिता पंचकम् का पाठ देवी ललिता की कृपा प्राप्त करने और मानसिक शांति के लिए किया जाता है। इसे पढ़ने से आत्मिक शुद्धि, आध्यात्मिक उन्नति और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। भक्त इसे अपनी श्रद्धा और भक्ति प्रकट करने के लिए गाते हैं।

  3. ललिता पंचकम् कब पढ़ा जाना चाहिए?

    ललिता पंचकम् को किसी भी समय पढ़ा जा सकता है, लेकिन इसे प्रातःकाल या संध्याकाल में पढ़ना अधिक शुभ माना जाता है। विशेष अवसरों, जैसे नवरात्रि या शुक्रवार को, देवी पूजन के समय इसका पाठ करना लाभकारी होता है।

  4. क्या ललिता पंचकम् को कंठस्थ करना आवश्यक है?

    नहीं, ललिता पंचकम् को कंठस्थ करना आवश्यक नहीं है, लेकिन इसे याद करना और नियमित पाठ करना अधिक फलदायक होता है। इसे अपनी भाषा में समझकर पढ़ने से भी देवी की कृपा प्राप्त की जा सकती है।

  5. ललिता पंचकम् का स्रोत क्या है?

    ललिता पंचकम् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित स्तोत्रों में से एक है। यह देवी उपासना की परंपरा का महत्वपूर्ण भाग है और इसे विभिन्न ग्रंथों में उल्लिखित देवी स्तुतियों में स्थान प्राप्त है।

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