21.4 C
Gujarat
रविवार, दिसम्बर 21, 2025

कृष्णवेणी स्तोत्रम् (Krishnaveni Stotram)

Post Date:

Krishnaveni Stotram In Hindi

कृष्णवेणी स्तोत्रम्(Krishnaveni Stotram) एक पवित्र संस्कृत स्तोत्र है, जो कृष्णवेणी नदी (जिसे आज की कृष्णा नदी भी कहा जाता है) की महिमा का गुणगान करता है। यह स्तोत्र देवी रूप में कृष्णा नदी की स्तुति करता है और इसके जल को पवित्र व मोक्षदायी मानता है।

कृष्णवेणी स्तोत्रम् का महत्व

  • यह स्तोत्र कृष्णा नदी की पवित्रता, दिव्यता और इसके आध्यात्मिक प्रभावों का वर्णन करता है।
  • यह नदी दक्षिण भारत की प्रमुख नदियों में से एक है और इसे गंगा के समान पवित्र माना जाता है।
  • इसे मोक्ष प्रदायिनी कहा जाता है, क्योंकि इसमें स्नान करने से पापों का नाश और आत्मा की शुद्धि होती है।
  • इस स्तोत्र का पाठ करने से मन की शांति, आध्यात्मिक उन्नति और देवी कृपा प्राप्त होती है।

कृष्णवेणी स्तोत्रम् और रचना

  • यह स्तोत्र वैदिक काल से जुड़ा हुआ माना जाता है और दक्षिण भारत के कई भक्तों द्वारा इसका पाठ किया जाता है।
  • इसमें कृष्णा नदी को एक माता (देवी) के रूप में वर्णित किया गया है, जो अपने जल से जीवन देती है और भक्तों का उद्धार करती है।
  • यह नदी महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में प्रवाहित होती है और इसका धार्मिक महत्व कई तीर्थस्थलों से जुड़ा हुआ है।

कृष्णवेणी स्तोत्रम् के पाठ के लाभ

  1. सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
  2. मन को शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है।
  3. कष्टों और बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
  4. स्वास्थ्य, समृद्धि और शुभता बढ़ती है।
  5. ग्रह दोष, विशेष रूप से शनि और राहु-केतु के प्रभाव को कम करने में सहायक होता है।

श्रेष्ठ समय और विधि

  • प्रातःकाल या संध्या समय, जब वातावरण शुद्ध और शांत होता है।
  • सोमवार और पूर्णिमा तिथि को इसका पाठ विशेष फलदायी माना जाता है।
  • यदि संभव हो, तो कृष्णा नदी के तट पर या किसी जल स्रोत के पास बैठकर इसका पाठ करें
  • जल का एक पात्र पास रखें और पाठ के बाद उसे पी लें या तुलसी के पौधे में चढ़ा दें

कृष्णवेणी स्तोत्रम् Krishnaveni Stotram

स्वैनोवृन्दापहृदिह मुदा वारिताशेषखेदा
शीघ्रं मन्दानपि खलु सदा याऽनुगृह्णात्यभेदा।

कृष्णावेणी सरिदभयदा सच्चिदानन्दकन्दा
पूर्णानन्दामृतसुपददा पातु सा नो यशोदा।

स्वर्निश्रेणिर्या वराभीतिपाणिः
पापश्रेणीहारिणी या पुराणी।

कृष्णावेणी सिन्धुरव्यात्कमूर्तिः
सा हृद्वाणीसृत्यतीताऽच्छकीर्तिः।

कृष्णासिन्धो दुर्गतानाथबन्धो
मां पङ्काधोराशु कारुण्यसिन्धो।

उद्धृत्याधो यान्तमन्त्रास्तबन्धो
मायासिन्धोस्तारय त्रातसाधो।

स्मारं स्मारं तेऽम्ब माहात्म्यमिष्टं
जल्पं जल्पं ते यशो नष्टकष्टम्।

भ्रामं भ्रामं ते तटे वर्त आर्ये
मज्जं मज्जं तेऽमृते सिन्धुवर्ये।

श्रीकृष्णे त्वं सर्वपापापहन्त्री
श्रेयोदात्री सर्वतापापहर्त्री।

भर्त्री स्वेषां पाहि षड्वैरिभीते-
र्मां सद्गीते त्राहि संसारभीतेः।

कृष्णे साक्षात्कृष्णमूर्तिस्त्वमेव
कृष्णे साक्षात्त्वं परं तत्त्वमेव।

भावग्राह्रे मे प्रसीदाधिहन्त्रि
त्राहि त्राहि प्राज्ञि मोक्षप्रदात्रि।

हरिहरदूता यत्र प्रेतोन्नेतुं निजं निजं लोकम्।

कलहायन्तेऽन्योन्यं सा नो हरतूभयात्मिका शोकम्।

विभिद्यते प्रत्ययतोऽपि रूपमेकप्रकृत्योर्न हरेर्हरस्य।

भिदेति या दर्शयितुं गतैक्यं वेण्याऽजतन्वाऽजतनुर्हि कृष्णा।

Share post:

Subscribe

Popular

More like this
Related

गोकुल अष्टकं

गोकुल अष्टकं - Shri Gokul Ashtakamश्रीमद्गोकुलसर्वस्वं श्रीमद्गोकुलमंडनम् ।श्रीमद्गोकुलदृक्तारा श्रीमद्गोकुलजीवनम्...

अष्टादश शक्तिपीठ स्तोत्रम्

अष्टादश शक्तिपीठ स्तोत्रम्अष्टादश शक्तिपीठ स्तोत्रम् एक अत्यंत पवित्र...

लक्ष्मी शरणागति स्तोत्रम्

लक्ष्मी शरणागति स्तोत्रम्लक्ष्मी शरणागति स्तोत्रम् (Lakshmi Sharanagati Stotram) एक...

विष्णु पादादि केशांत वर्णन स्तोत्रं

विष्णु पादादि केशांत वर्णन स्तोत्रंलक्ष्मीभर्तुर्भुजाग्रे कृतवसति सितं यस्य रूपं...
error: Content is protected !!