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गुरूवार, जून 19, 2025

कामाख्या कवच

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Kamakhya Kavach In Hindi

कामाख्या कवच(Kamakhya Kavach) हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण तांत्रिक पाठ है, जो देवी कामाख्या को समर्पित है। यह कवच देवी की शक्ति, कृपा और उनके संरक्षण को प्राप्त करने के लिए पढ़ा जाता है। यह कवच विशेष रूप से उन साधकों और भक्तों के लिए उपयोगी है, जो मां कामाख्या की आराधना करते हैं और उनसे सिद्धियां प्राप्त करना चाहते हैं।

कामाख्या देवी को शक्ति पीठों में प्रमुख स्थान प्राप्त है। यह शक्ति पीठ असम के गुवाहाटी स्थित नीलांचल पर्वत पर स्थित है। पौराणिक कथा के अनुसार, जब माता सती ने अपने शरीर को अग्नि में समर्पित कर दिया, तो भगवान विष्णु ने उनके शरीर के टुकड़े कर दिए। जहां-जहां उनके अंग गिरे, वहां शक्ति पीठ स्थापित हुए। कामाख्या देवी का स्थान उनकी योनि का प्रतीक है, जो सृजन और शक्ति का प्रतीक मानी जाती है।

माँ कामाख्या

माँ कामाख्या, जिन्हें कामाख्या देवी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक प्रमुख शक्ति पीठ की अधिष्ठात्री देवी हैं। यह मंदिर भारत के असम राज्य में गुवाहाटी शहर के पास नीलाचल पर्वत पर स्थित है। कामाख्या मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह तांत्रिक साधना और शक्ति उपासना का भी प्रमुख केंद्र माना जाता है। यह मंदिर 51 शक्ति पीठों में से एक है, जहां माता सती के शरीर का एक अंग गिरा था। नीचे माँ कामाख्या के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है

माँ कामाख्या का मिथकीय और धार्मिक महत्व

हिंदू पुराणों के अनुसार, जब भगवान शिव अपनी पत्नी सती के मृत शरीर को लेकर तांडव नृत्य कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंडित कर दिया। सती के शरीर के विभिन्न अंग अलग-अलग स्थानों पर गिरे, जो शक्ति पीठ के रूप में पूजे जाते हैं। मान्यता है कि कामाख्या मंदिर में माता सती का योनि भाग गिरा था, जिसके कारण यह स्थान विशेष रूप से पवित्र और शक्तिशाली माना जाता है।

कामाख्या देवी को महाकाली, महालक्ष्मी, और महासरस्वती का संयुक्त स्वरूप माना जाता है। वे प्रेम, सृजन, प्रजनन, और शक्ति की देवी हैं। तांत्रिक परंपराओं में उन्हें दस महाविद्याओं की अधिष्ठात्री के रूप में भी पूजा जाता है।

कामाख्या मंदिर का इतिहास

कामाख्या मंदिर का इतिहास बहुत प्राचीन है, और इसे 8वीं-9वीं शताब्दी में निर्मित माना जाता है। हालांकि, वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण 16वीं शताब्दी में कोच राजवंश के राजा नरनारायण ने करवाया था। मंदिर का वास्तुशिल्प नीलाचल शैली में है, जो असम की स्थानीय वास्तुकला को दर्शाता है। मंदिर का गर्भगृह भूमिगत है, जहां कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि एक प्राकृतिक चट्टान है जो योनि के आकार की है और जिसे माता का प्रतीक माना जाता है।

कामाख्या मंदिर की विशेषताएं

  1. प्राकृतिक योनि-कुंड: मंदिर में माता की मूर्ति के बजाय एक प्राकृतिक चट्टान है, जो हमेशा नम रहती है। इसे माता का प्रतीक माना जाता है और यह तांत्रिक साधना का केंद्र है।
  2. अंबुबाची मेला: यह मंदिर का सबसे प्रसिद्ध उत्सव है, जो हर साल जून महीने में आयोजित होता है। इस दौरान मान्यता है कि माता रजस्वला होती हैं, और मंदिर का गर्भगृह चार दिनों के लिए बंद रहता है। इस समय योनि-कुंड से लाल रंग का जल निकलता है, जिसे माता का रज माना जाता है। भक्त इसे पवित्र प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।
  3. तांत्रिक साधना का केंद्र: कामाख्या मंदिर तंत्र-मंत्र और शक्ति साधना का प्रमुख केंद्र है। यहां कई तांत्रिक और अघोरी साधना करने आते हैं।
  4. पशुबलि: मंदिर में कुछ विशेष अवसरों पर बकरे और भैंस की बलि दी जाती है, जो तांत्रिक परंपराओं का हिस्सा है।

कामाख्या कवच का उद्देश्य

कामाख्या कवच का पाठ तांत्रिक साधना, आध्यात्मिक उन्नति और शत्रु बाधा से मुक्ति के लिए किया जाता है। इसे पढ़ने से साधक को देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। यह कवच भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक सुरक्षा प्रदान करता है।

कामाख्या कवच का पाठ कैसे करें?

  1. शुद्धता और स्वच्छता:
    कवच का पाठ करने से पहले शरीर और मन को शुद्ध करना आवश्यक है। स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. स्थान का चयन:
    पाठ किसी शांत और पवित्र स्थान पर करें। यदि संभव हो, तो इसे देवी कामाख्या के मंदिर में या घर में बनाए गए पूजा स्थान पर करें।
  3. संकल्प और ध्यान:
    पाठ शुरू करने से पहले देवी कामाख्या का ध्यान करें और अपनी मनोकामना के लिए संकल्प लें।
  4. पाठ सामग्री:
    • कामाख्या कवच का सही उच्चारण और अर्थ समझना आवश्यक है।
    • यदि पाठ स्वयं करने में कठिनाई हो, तो किसी अनुभवी गुरु या तांत्रिक से मार्गदर्शन लें।

कामाख्या कवच

रविशशियुतकर्णा कुंकुमापीतवर्णा
मणिकनकविचित्रा लोलजिह्वा त्रिनेत्रा।
अभयवरदहस्ता साक्षसूत्रप्रहस्ता
प्रणतसुरनरेशा सिद्धकामेश्वरी सा।
अरुणकमलसंस्था रक्तपद्मासनस्था
नवतरुणशरीरा मुक्तकेशी सुहारा।
शवहृदि पृथुतुङ्गा स्वाङ्घ्रियुग्मा मनोज्ञा
शिशुरविसमवस्त्रा सर्वकामेश्वरी सा।
विपुलविभवदात्री स्मेरवक्त्रा सुकेशी
दलितकरकदन्ता सामिचन्द्रावतंसा।
मनसिज-दृशदिस्था योनिमुद्रालसन्ती
पवनगगनसक्ता संश्रुतस्थानभागा।
चिन्ता चैवं दीप्यदग्निप्रकाशा
धर्मार्थाद्यैः साधकैर्वाञ्छितार्था।
ॐ कामाख्याकवचस्य मुनिर्बृहस्पतिः स्मृतः।
देवी कामेश्वरी तस्य अनुष्टुप्छन्द इष्यते।
विनियोगः सर्वसिद्धौ तञ्च श‍ृण्वन्तु देवताः।
शिराः कामेश्वरी देवी कामाख्या चक्षूषी मम।
शारदा कर्णयुगलं त्रिपुरा वदनं तथा।
कण्ठे पातु माहामाया हृदि कामेश्वरी पुनः।
कामाख्या जठरे पातु शारदा पातु नाभितः।
त्रिपुरा पार्श्वयोः पातु महामाया तु मेहने।
गुदे कामेश्वरी पातु कामाख्योरुद्वये तु माम्।
जानुनोः शारदा पातु त्रिपुरा पातु जङ्घयोः।
माहामाया पादयुगे नित्यं रक्षतु कामदा।
केशे कोटेश्वरि पातु नासायां पातु दीर्घिका।
भैरवी (शुभगा) दन्तसङ्घाते मातङ्ग्यवतु चाङ्गयोः।
बाह्वोर्मे ललिता पातु पाण्योस्तु वनवासिनी।
विन्ध्यवासिन्यङ्गुलीषु श्रीकामा नखकोटिषु।
रोमकूपेषु सर्वेषु गुप्तकामा सदावतु।
पादाङ्गुली पार्ष्णिभागे पातु मां भुवनेश्वरी।
जिह्वायां पातु मां सेतुः कः कण्टाभ्यन्तरेऽवतु।
पातु नश्चान्तरे वक्षः ईः पातु जठरान्तरे।
सामीन्दुः पातु मां वस्तौ विन्दुर्विन्द्वन्तरेऽवतु।
ककारस्त्वचि मां पातु रकारोऽस्थिषु सर्वदा।
लकारः सर्वनाडिषु ईकारः सर्वसन्धिषु।
चन्द्रः स्नायुषु मां पातु विन्दुर्मज्जासु सन्ततम्।
पूर्वस्यां दिशि चाग्नेय्यां दक्षिणे नैरृते तथा।
वारुणे चैव वायव्यां कौबेरे हरमन्दिरे।
अकाराद्यास्तु वैष्णव्याः अष्टौ वर्णास्तु मन्त्रगाः।
पान्तु तिष्ठन्तु सततं समुद्भवविवृद्धये।
ऊर्द्ध्वाधः पातु सततं मां तु सेतुद्वये सदा।
नवाक्षराणि मन्त्रेषु शारदा मन्त्रगोचरे।
नवस्वरास्तु मां नित्यं नासादिषु समन्ततः।
वातपित्तकफेभ्यस्तु त्रिपुरायास्तु त्र्यक्षरम्।
नित्यं रक्षतु भूतेभ्यः पिशाचेभ्यस्तथैव च।
तत् सेतु सततं पातु क्रव्याद्भ्यो मान्निवारकम्।
नमः कामेश्वरीं देवीं महामायां जगन्मयीम्।
या भूत्वा प्रकृतिर्नित्या तनोति जगदायतम्।
कामाख्यामक्षमालाभयवरदकरां सिद्धसूत्रैकहस्तां
श्वेतप्रेतोपरिस्थां मणिकनकयुतां कुङ्कमापीतवर्णाम्।
ज्ञानध्यानप्रतिष्ठामतिशयविनयां ब्रह्मशक्रादिवन्द्या-
मग्नौ विन्द्वन्तमन्त्रप्रियतमविषयां नौमि विन्ध्याद्र्यतिस्थाम्।
मध्ये मध्यस्य भागे सततविनमिता भावहारावली या
लीलालोकस्य कोष्ठे सकलगुणयुता व्यक्तरूपैकनम्रा।
विद्या विद्यैकशान्ता शमनशमकरी क्षेमकर्त्री वरास्या
नित्यं पायात् पवित्रप्रणववरकरा कामपूर्वेश्वरी नः।
इति हरेः कवचं तनुकेस्थितं शमयति वै शमनं तथा यदि।
इह गृहाण यतस्व विमोक्षणे सहित एष विधिः सह चामरैः।
इतीदं कवचं यस्तु कामाख्यायाः पठेद्बुधः।
सुकृत् तं तु महादेवी तनु व्रजति नित्यदा।
नाधिव्याधिभयं तस्य न क्रव्याद्भ्यो भयं तथा।
नाग्नितो नापि तोयेभ्यो न रिपुभ्यो न राजतः।
दीर्घायुर्बहुभोगी च पुत्रपौत्रसमन्वितः।
आवर्तयन् शतं देवीमन्दिरे मोदते परे।
यथा तथा भवेद्बद्धः सङ्ग्रामेऽन्यत्र वा बुधः।
तत्क्षणादेव मुक्तः स्यात् स्मारणात् कवचस्य तु।

कामाख्या कवच के लाभ

  1. शत्रुओं से सुरक्षा:
    कवच के प्रभाव से साधक को शत्रुओं से मुक्ति और सुरक्षा मिलती है।
  2. सकारात्मक ऊर्जा:
    देवी की कृपा से जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है और सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
  3. मनोकामना पूर्ति:
    यह कवच भक्त की इच्छाओं को पूर्ण करने में सहायक होता है।
  4. आध्यात्मिक उन्नति:
    यह साधना साधक को आध्यात्मिक रूप से उन्नति प्रदान करती है।
  5. संपत्ति और समृद्धि:
    देवी की कृपा से आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं और घर में सुख-शांति बनी रहती है।

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