Kalyana Vrushti Stotram In Hindi
कल्याण वृष्टि स्तोत्रम्(Kalyana Vrushti Stotram) एक ऐसा स्तोत्र है जो भगवान शिव को समर्पित है और इसे धार्मिक, मानसिक और आध्यात्मिक कल्याण प्राप्ति के लिए पढ़ा जाता है। इस स्तोत्र का मुख्य उद्देश्य भक्त के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाना है। संस्कृत भाषा में रचित यह स्तोत्र देवों के देव महादेव की कृपा प्राप्त करने का एक प्रभावशाली माध्यम माना जाता है।
कल्याण वृष्टि स्तोत्रम् की उत्पत्ति
यह स्तोत्र शैव परंपरा का हिस्सा है और प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। इसका नाम “कल्याण वृष्टि” इसलिए है क्योंकि इसे पढ़ने और स्मरण करने से जीवन में कल्याण की वर्षा होती है। यह स्तोत्र विशेष रूप से कठिन समय में मानसिक शांति और आत्मबल प्रदान करता है।
कल्याण वृष्टि स्तोत्रम् का महत्त्व Kalyana Vrushti Stotram Importance
कल्याण वृष्टि स्तोत्रम् को पढ़ने से व्यक्ति को आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त होती है और उसकी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। यह स्तोत्र न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में समृद्धि प्राप्ति के लिए भी सहायक है। इसे नियमित रूप से पढ़ने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मकता का संचार होता है।
कल्याण वृष्टि स्तोत्रम् का मुख्य लाभ Kalyana Vrushti Stotram Benifits
- आध्यात्मिक कल्याण: यह स्तोत्र भगवान शिव की कृपा से आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करता है।
- मानसिक शांति: इसका पाठ मन को शांत और स्थिर करता है।
- समृद्धि: इसे पढ़ने से जीवन में धन, सुख और वैभव की प्राप्ति होती है।
- संकट निवारण: यह स्तोत्र जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करता है।
- स्वास्थ्य लाभ: इसे पढ़ने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
कल्याण वृष्टि स्तोत्रम् पाठ का समय और विधि
कल्याण वृष्टि स्तोत्रम् का पाठ प्रातःकाल या संध्याकाल में, स्वच्छ और शांत वातावरण में करना सबसे शुभ माना जाता है। पाठ करने से पहले भगवान शिव की मूर्ति या शिवलिंग का ध्यान करें और शुद्ध मन से स्तोत्र का पाठ करें।
कल्याण वृष्टि स्तोत्रम् का पाठ कैसे करें?
- सबसे पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- भगवान शिव की प्रतिमा के सामने दीप जलाएं।
- बेलपत्र, जल, और अक्षत से शिवलिंग का अभिषेक करें।
- तत्पश्चात, शांत चित्त होकर स्तोत्र का पाठ करें।
कल्याण वृष्टि स्तोत्रम् के श्लोक கல்யாண வ்ருஷ்டி ஸ்தோத்திரம்
कल्याणवृष्टिभिरिवामृतपूरिताभि-
र्लक्ष्मीस्वयंवरणमङ्गलदीपिकाभिः।
सेवाभिरम्ब तव पादसरोजमूले
नाकारि किं मनसि भाग्यवतां जनानाम्।
एतावदेव जननि स्पृहणीमास्ते
त्वद्वन्दनेषु सलिलस्थगिते च नेत्रे।
सान्निध्यमुद्यदरुणायुतसोदरस्य
त्वद्विग्रहस्य सुधया परया प्लुतस्य।
ईशत्वनामकलुषाः कति वा न सन्ति
ब्रह्मादयः प्रतिभवं प्रलयाभिभूताः|
एकः स एव जननि स्थिरसिद्धिरास्ते
यः पादयोस्तव सकृत् प्रणतिं करोति|
लब्ध्वा सकृत् त्रिपुरसुन्दरि तावकीनं
कारुण्यकन्दलितकान्तिभरं कटाक्षम्|
कन्दर्पकोटिसुभगास्त्वयि भक्तिभाजः
सम्मोहयन्ति तरुणीर्भुवनत्रयेऽपि|
ह्रीङ्कारमेव तव नाम गृणन्ति वेदा
मातस्त्रिकोणनिलये त्रिपुरे त्रिनेत्रे|
त्वत्संस्मृतौ यमभटाभिभवं विहाय
दीव्यन्ति नन्दनवने सह लोकपालैः|
हन्तु पुरामधिगलं परिपीयमानः
क्रूरः कथं न भविता गरलस्य वेगः|
नाश्वासनाय यदि मातरिदं तवार्धं
देहस्य शश्वदमृताप्लुतशीतलस्य|
सर्वज्ञतां सदसि वाक्पटुतां प्रसूते
देवि त्वदङ्घ्रिसरसीरुहयोः प्रणामः।
किञ्च स्फुरन्मकुटमुज्ज्वलमातपत्रं
द्वे चामरे च महतीं वसुधां दधाति।
कल्पद्रुमैरभिमतप्रतिपादनेषु
कारुण्यवारिधिभिरम्ब भवत्कटाक्षैः।
आलोकय त्रिपुरसुन्दरि मामनाथं
त्वय्यैव भक्तिभरितं त्वयि बद्धतृष्णम्।
अन्तेतरेष्वपि मनांसि निधाय चान्ये
भक्तिं वहन्ति किल पामरदैवतेषु।
त्वामेव देवि मनसा समनुस्मरामि
त्वामेव नौमि शरणं जननि त्वमेव।
लक्ष्येषु सत्स्वपि कटाक्षनिरीक्षणाना-
मालोकय त्रिपुरसुन्दरि मां कदाचित्।
नूनं मया तु सदृशः करुणैकपात्रं
जातो जनिष्यति जनो न च जायते वा।
ह्रीं ह्रीमिति प्रतिदिनं जपतां तवाख्यां
किन्नाम दुर्लभमिह त्रिपुराधिवासे।
मालाकिरीटमदवारणमाननीया
तान् सेवतेव सुमतीः स्वयमेव लक्ष्मीः।
सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदाननिरतानि सरोरुहाक्षि।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि।
मामेव मानरनिशं कलयन्तु नान्यम्।
कल्पोपसंहृतिषु कल्पितताण्डवस्य
देवस्य खण्डपरशोः परभैरवस्य।
पाशाङ्कुशैक्षवशरासनपुष्पबाणा
सा साक्षिणी विजयते तव मूर्तिरेका।
लग्नं सदा भवतु मातरिदं तवार्थं
तेजःपरं बहुलकुङ्कुमपङ्कशोणम्।
भास्वत्किरीटममृतांशुकलावतंसं
मध्ये त्रिकोणनिलयं परमामृतार्द्रम्।
ह्रीङ्कारमेव तव नाम तदेव रूपं
त्वन्नाम दुर्लभमिह त्रिपुरे गृणन्ति।
त्वत्तेजसा परिणतं वियदादिभूतं
सौख्यं तनोति सरसीरुहसम्भवादेः।
कल्याण वृष्टि स्तोत्रम् भगवान शिव के भक्तों के लिए एक अमूल्य स्तोत्र है। इसका नियमित पाठ न केवल भौतिक सुख प्रदान करता है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति और मानसिक शांति भी देता है। यदि इसे श्रद्धा और समर्पण के साथ पढ़ा जाए, तो यह स्तोत्र जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने में सहायक सिद्ध होता है।
यदि आप इस स्तोत्र को अपनी दिनचर्या में शामिल करते हैं, तो आप निश्चित रूप से भगवान शिव की अनुकंपा से अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं।
कल्याण वृष्टि स्तोत्रम् पर पूछे जाने वाले प्रश्न
कल्याण वृष्टि स्तोत्रम् क्या है?
कल्याण वृष्टि स्तोत्रम् एक दिव्य प्रार्थना है जिसे भगवान की कृपा और कल्याणकारी ऊर्जा प्राप्त करने के लिए गाया या पाठ किया जाता है। यह स्तोत्र जीवन में सुख, समृद्धि और मानसिक शांति लाने के उद्देश्य से रचित है।
कल्याण वृष्टि स्तोत्रम् का महत्व क्या है?
इस स्तोत्र का महत्व यह है कि इसे सुनने या पाठ करने से जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है। यह आत्मिक शुद्धि, शांति, और जीवन के सभी क्षेत्रों में उन्नति के लिए सहायक माना जाता है। इसके माध्यम से भक्त भगवान की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
कल्याण वृष्टि स्तोत्रम् का पाठ कैसे और कब करना चाहिए?
इसका पाठ प्रातःकाल या संध्या के समय शुद्ध मन और वातावरण में करना शुभ माना जाता है। पाठ से पहले स्नान करें और शांत मन से इसे गाएं या पढ़ें। इसे श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ करना चाहिए।
क्या कल्याण वृष्टि स्तोत्रम् का पाठ करने से सभी समस्याएं हल हो सकती हैं?
कल्याण वृष्टि स्तोत्रम् का पाठ मानसिक शांति, सकारात्मकता और ईश्वर की कृपा को आकर्षित करता है। यह जीवन की चुनौतियों से लड़ने की आंतरिक शक्ति प्रदान करता है। हालांकि, यह हर समस्या का समाधान नहीं है, बल्कि ईश्वर पर विश्वास और आत्मिक संतुलन को बढ़ावा देता है।
क्या कल्याण वृष्टि स्तोत्रम् सभी के लिए उपयोगी है?
हाँ, यह स्तोत्र सभी के लिए उपयोगी है, चाहे वह किसी भी आयु वर्ग या जीवन के चरण में हो। इसे गाने या पढ़ने के लिए किसी विशेष नियम या योग्यता की आवश्यकता नहीं होती। केवल श्रद्धा और भक्ति भाव आवश्यक हैं।