22.6 C
Gujarat
रविवार, फ़रवरी 23, 2025

जगन्नाथाष्टकम्

Post Date:

Jagannatha Ashtakam In Hindi

जगन्नाथाष्टकम्(Jagannatha Ashtakam) आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक अत्यंत प्रसिद्ध स्तोत्र है, जो भगवान जगन्नाथ की महिमा का गान करता है। यह स्तोत्र आठ श्लोकों में विभाजित है और भगवान जगन्नाथ की भक्ति, कृपा और दिव्यता का वर्णन करता है। इस स्तोत्र का पाठ श्रद्धा और समर्पण से करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है और सभी पापों का नाश होता है।

जगन्नाथाष्टक का महत्व Jagannatha Ashtakam Importance

यह स्तोत्र भक्ति, समर्पण और दिव्यता का प्रतीक है। भगवान जगन्नाथ की महिमा का गान करते हुए यह उनके अद्भुत स्वरूप, लीला और कृपा को उजागर करता है। इसे पढ़ने और सुनने से मन को शांति और आध्यात्मिक शक्ति मिलती है। विशेषकर रथयात्रा के समय इसका पाठ अत्यधिक पुण्यदायक माना गया है।

जगन्नाथाष्टकम् Jagannatha Ashtakam Lyrics

कदाचित्-कालिन्दी तटविपिन सङ्गीतकरवो
मुदाभीरी नारीवदन कमलास्वादमधुपः ।
रमा शम्भु ब्रह्मामरपति गणेशार्चित पदो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ १ ॥

भुजे सव्ये वेणुं शिरसि शिखिपिञ्छं कटितटे
दुकूलं नेत्रान्ते सहचरकटाक्षं विदधते ।
सदा श्रीमद्वृन्दावनवसतिलीलापरिचयो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु ने ॥ २ ॥

महाम्भोधेस्तीरे कनकरुचिरे नीलशिखरे
वसन् प्रासादान्तस्सहज बलभद्रेण बलिना ।
सुभद्रा मध्यस्थस्सकलसुर सेवावसरदो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ ३ ॥

कृपा पारावारास्सजल जलद श्रेणिरुचिरो
रमावाणी रामस्फुरदमल पङ्कॆरुहमुखः ।
सुरेन्द्रैराराध्यः श्रुतिगणशिखा गीत चरितो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ ४ ॥

रथारूढो गच्छन् पथि मिलित भूदेवपटलैः
स्तुति प्रादुर्भावं प्रतिपदमुपाकर्ण्य सदयः ।
दयासिन्धुर्बन्धुस्सकल जगता सिन्धुसुतया
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ ५ ॥

परब्रह्मापीडः कुवलय-दलोत्फुल्लनयनो
निवासी नीलाद्रौ निहित-चरणोऽनन्त-शिरसि ।
रसानन्दो राधा-सरस-वपुरालिङ्गन-सखो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ ६ ॥

न वै याचे राज्यं न च कनक माणिक्य विभवं
न याचेऽहं रम्यां निखिलजन-काम्यां वरवधूम् ।
सदा काले काले प्रमथ-पतिना गीतचरितो
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ ७ ॥

हर त्वं संसारं द्रुततरमसारं सुरपते
हर त्वं पापानां विततिमपरां यादवपते ।
अहो दीनोऽनाथे निहितचरणो निश्चितमिदं
जगन्नाथः स्वामी नयनपथगामी भवतु मे ॥ ८ ॥

जगन्नाथाष्टकं पुन्यं यः पठेत् प्रयतः शुचिः ।
सर्वपाप विशुद्धात्मा विष्णुलोकं स गच्छति ॥

इति श्रीमद् शङ्कराचार्यविरचितं जगन्नाथाष्टकं सम्पूर्णं॥

श्लोक 1:

कदाचित्-कालिन्दी तटविपिन सङ्गीतकरवो…
यह श्लोक भगवान जगन्नाथ को कालिन्दी (यमुना) तट पर वंशी बजाते हुए मधुर स्वर में भक्ति संगीत करने वाले के रूप में प्रस्तुत करता है। वे गोपियों के चेहरे रूपी कमलों का आस्वादन करने वाले मधुमक्खी के समान हैं। इस श्लोक में लक्ष्मी, शिव, ब्रह्मा, इंद्र और गणेश द्वारा उनकी पूजा का उल्लेख है।

श्लोक 2:

भुजे सव्ये वेणुं शिरसि शिखिपिञ्छं कटितटे…
भगवान जगन्नाथ की मूर्ति का वर्णन किया गया है, जिसमें उनके हाथ में बांसुरी, सिर पर मोर पंख और कटि पर पीताम्बर का उल्लेख है। उनके नेत्रों से प्रसन्नता झलकती है। यह श्लोक वृन्दावन की उनकी लीलाओं का स्मरण कराता है।

श्लोक 3:

महाम्भोधेस्तीरे कनकरुचिरे नीलशिखरे…
यह श्लोक भगवान जगन्नाथ के निवास स्थान का वर्णन करता है। वे नीलाचल पर्वत पर स्थित उनके स्वर्णिम मंदिर में विराजमान हैं। उनके साथ उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा भी हैं। भगवान के इस दिव्य स्वरूप को देवता सेवा का सौभाग्य प्राप्त करते हैं।

श्लोक 4:

कृपा पारावारास्सजल जलद श्रेणिरुचिरो…
इस श्लोक में भगवान जगन्नाथ की कृपा और करुणा का वर्णन किया गया है। वे रमादेवी (लक्ष्मी), सरस्वती और सीता के प्रिय हैं। उनके मुखमंडल का सौंदर्य पूर्ण खिले हुए कमल के समान है। वे देवताओं और ऋषियों द्वारा गाए गए वेदों के स्तोत्रों से पूजित हैं।

श्लोक 5:

रथारूढो गच्छन् पथि मिलित भूदेवपटलैः…
यह श्लोक भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा का चित्रण करता है। जब वे रथ पर सवार होकर निकलते हैं, तो उनके दर्शन हेतु संपूर्ण जगत उमड़ पड़ता है। उनके भक्त उनकी स्तुति करते हैं, और भगवान अपनी करुणा से सभी को अनुग्रहित करते हैं।

श्लोक 6:

परब्रह्मापीडः कुवलय-दलोत्फुल्लनयनो…
इस श्लोक में भगवान जगन्नाथ को परमब्रह्म के रूप में वर्णित किया गया है। उनके नेत्र पूर्ण खिले हुए कमल की भाँति विशाल और सुशोभित हैं। वे राधा के प्रियतम हैं और उनके रसपूर्ण आलिंगन में आनन्दित रहते हैं।

श्लोक 7:

न वै याचे राज्यं न च कनक माणिक्य विभवं…
भक्त भगवान से सांसारिक संपत्ति, राज्य या सुख की कामना नहीं करता। उसकी एकमात्र अभिलाषा भगवान जगन्नाथ के चरणों में स्थायी स्थान प्राप्त करना है। वह भगवान के गुणगान से अपने जीवन को धन्य मानता है।

श्लोक 8:

हर त्वं संसारं द्रुततरमसारं सुरपते…
भक्त भगवान जगन्नाथ से संसार सागर से मुक्त करने की प्रार्थना करता है। वह अपने पापों के भार से मुक्ति चाहता है और भगवान के चरणों में अपना जीवन समर्पित कर देता है।

अंतिम श्लोक (फलश्रुति):

जगन्नाथाष्टकं पुन्यं यः पठेत् प्रयतः शुचिः…
जो व्यक्ति पवित्रता और श्रद्धा से इस जगन्नाथाष्टक का पाठ करता है, वह सभी पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक की प्राप्ति करता है।

जगन्नाथाष्टकम् पर पूछे जाने वाले प्रश्न

  1. जगन्नाथाष्टकम् का पाठ क्यों किया जाता है?

    जगन्नाथाष्टकम् का पाठ भगवान जगन्नाथ की कृपा प्राप्त करने, आध्यात्मिक शांति पाने और मोक्ष की ओर अग्रसर होने के लिए किया जाता है।

  2. जगन्नाथाष्टकम् में भगवान जगन्नाथ का वर्णन कैसे किया गया है?

    जगन्नाथाष्टकम् में भगवान जगन्नाथ को पुरी के शासक, सभी जीवों के संरक्षक और भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाले दिव्य रूप में वर्णित किया गया है।

  3. जगन्नाथाष्टकम् का पाठ किस समय करना सबसे उपयुक्त होता है?

    जगन्नाथाष्टकम् का पाठ प्रातःकाल और संध्याकाल में, शुद्ध मन और शांत वातावरण में करना सबसे उपयुक्त होता है।

  4. क्या जगन्नाथाष्टकम् का पाठ करने से विशेष लाभ होते हैं?

    हाँ, इसका पाठ करने से भगवान जगन्नाथ की कृपा प्राप्त होती है, मन की शांति मिलती है और सांसारिक बाधाएं दूर होती हैं।

  5. जगन्नाथाष्टकम् का पाठ करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

    पाठ करते समय भगवान के प्रति पूर्ण भक्ति और श्रद्धा रखें, शुद्धता का पालन करें और ध्यानपूर्वक श्लोकों का उच्चारण करें।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Share post:

Subscribe

Popular

More like this
Related

Lakshmi Shataka Stotram

Lakshmi Shataka Stotramआनन्दं दिशतु श्रीहस्तिगिरौ स्वस्तिदा सदा मह्यम् ।या...

आज सोमवार है ये शिव का दरबार है

आज सोमवार है ये शिव का दरबार है -...

वाराही कवचम्

Varahi Kavachamवाराही देवी(Varahi kavacham) दस महाविद्याओं में से एक...

श्री हनुमत्कवचम्

Sri Hanumatkavachamश्री हनुमत्कवचम्(Sri Hanumatkavacham) एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है...