होगा कब वह सुदिन समय शुभ मायावी मन बनकर दीन – प्रार्थना
Hoga Kab Vah Sudin Samay Shubh Lyrics
होगा कब वह सुदिन समय शुभ, मायावी मन बनकर दीन ।
मोहमुक्त हो हो जायेगा, पावन प्रभु-चरणोंमें लीन ॥ १ ॥
कच जगकी झूठी बातोंसे, हो जावेगी घृणा इसे ।
कब समझेगा उसे भयानक, मान रहा रमणीय जिसे ॥ २ ॥
कब गुरु चरणोंकी रजको यह, निज मस्तकपर धारेगा ।
काम-क्रोध-लोभादि कब वैरियोंको, हठसे मारेगा ॥ ३ ॥
पुण्यभूमि ऋषिसेवितमें कब, होगा इसका निर्जन-वास ।
गंगाकी पुनीत धारासे कब सब अघका होगा नास ॥ ४ ॥
कब छोड़ेंगी सबल इन्द्रियाँ अपने विषयोंमें रमना ।
कभ सीखेंगी उलटी आकर अन्तरमें उसके जमना ॥ ५ ॥
कच साधनके प्रखर तेजसे सारा तम मिट जायेगा ।
कच मन विषयविमुख हो हरिकी विमल भक्तिको पायेगा ।। ६ ।।
धन-जन-पदकी प्रबल लालसा कष्टमयी क मान-बड़ाई।
‘मैं मेरे’ की छूटेगी फाँसी कब यह टूटेगी ।॥ ७ ॥
कब यह मोह-स्वप्न छूटेगा, कब प्रपंचका होगा बाध ।
परवैराग्य प्रकट कब होगा, कब सुख होगा इसे अगाध ॥ ८ ॥
कब भवभयके कारण मिथ्या अहंकारका होगा नास ।
कब सच्चा स्वरूप दीखेगा, छूट जायगा देहा ध्यास || ९ ||
कब सबके आधार एक भूमा- सुखका मुख दोखेगा ।
कब यह सब भेदोंमें नित्य अभेद देखना सीखेगा ॥१०॥
कत्र प्रतिबिम्ब बिम्ब होगा, कब नहीं रहेगा चित-आभास ।
निजानन्द निर्मल अज अव्ययमें कत्र होगा नित्य निवास ॥११॥



