गिरिधर अष्टकम, भक्तिकाल के प्रसिद्ध संत-महात्मा सूरदास जी द्वारा रचित एक उत्कृष्ट भक्ति स्तोत्र है। यह भगवान श्रीकृष्ण की आराधना और उनके दिव्य गुणों का वर्णन करने वाला अष्टक (आठ पदों वाला स्तोत्र) है। गिरिधर अष्टकम में सूरदास जी ने श्रीकृष्ण के बाल-रूप, उनके लीलाओं और उनकी करुणा का अत्यंत सुंदर चित्रण किया है। इसे भक्तिगीतों की श्रेणी में एक विशेष स्थान प्राप्त है।
गिरिधर अष्टकम का महत्व Importance of Giridhara Ashtakam
गिरिधर अष्टकम में भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अद्वितीय प्रेम और विश्वास व्यक्त किया गया है। इसमें भक्ति का सहज रूप देखने को मिलता है। यह भक्तों को यह सिखाता है कि भगवान की शरण में जाकर कैसे उनके गुणों का स्मरण करना चाहिए।
गिरिधर अष्टकम में निम्नलिखित विषयों को प्रमुखता दी गई है
- श्रीकृष्ण की बाल-लीला – इसमें भगवान के बालस्वरूप, उनकी शरारतों और गोपियों के साथ उनके प्रेम का वर्णन है।
- करुणा और दया – भगवान श्रीकृष्ण के करुणामय स्वभाव और उनके भक्तों के प्रति असीम प्रेम का उल्लेख है।
- शरणागत भाव – सूरदास जी भगवान को शरणागत होने का संदेश देते हैं और उनकी महिमा का गान करते हैं।
- भक्त और भगवान का संबंध – गिरिधर अष्टकम में भक्त और भगवान के बीच के पवित्र संबंध को उजागर किया गया है।
साहित्यिक सौंदर्य
गिरिधर अष्टकम में छंदों की सादगी, शब्दों का चयन, और भावों की गहराई अद्वितीय है। इसमें ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है, जो इसे सहज और मधुर बनाती है। सूरदास जी की यह रचना भारतीय भक्ति साहित्य का एक अनमोल रत्न है।
गिरिधर अष्टकम Giridhara Ashtakam
त्र्यैलोक्यलक्ष्मी- मदभृत्सुरेश्वरो यदा घनैरन्तकरैर्ववर्ष ह।
तदाकरोद्यः स्वबलेन रक्षणं तं गोपबालं गिरिधारिणं भजे।
यः पाययन्तीमधिरुह्य पूतनां स्तन्यं पपौ प्राणपरायणः शिशुः।
जघान वातायित- दैत्यपुङ्गवं तं गोपबालं गिरिधारिणं भजे।
नन्दव्रजं यः स्वरुचेन्दिरालयं चक्रे दिवीशां दिवि मोहवृद्धये।
गोगोपगोपीजन- सर्वसौख्यकृत्तं गोपबालं गिरिधारिणं व्रजे।
यं कामदोग्घ्री गगनाहृतैर्जलैः स्वज्ञातिराज्ये मुदिताभ्यषिञ्चत्।
गोविन्दनामोत्सव- कृद्व्रजौकसां तं गोपबालं गिरिधारिणं भजे।
यस्याननाब्जं व्रजसुन्दरीजनां दिनक्षये लोचनषट्पदैर्मुदा।
पिबन्त्यधीरा विरहातुरा भृशं तं गोपबालं गिरिधारिणं भजे।
वृन्दावने निर्जरवृन्दवन्दिते गाश्चारयन्यः कलवेणुनिःस्वनः।
गोपाङ्गनाचित्त- विमोहमन्मथस्तं गोपबालं गिरिधारिणं भजे।
यः स्वात्मलीला- रसदित्सया सतामाविश्चकाराऽग्नि- कुमारविग्रहम्।
श्रीवल्लभाध्वानु- सृतैकपालकस्तं गोपबालं गिरिधारिणं भजे।
गोपेन्द्रसूनोर्गिरि- धारिणोऽष्टकं पठेदिदं यस्तदनन्यमानसः।
समुच्यते दुःखमहार्णवाद् भृशं प्राप्नोति दास्यं गिरिधारिणे ध्रुवम्।
प्रणम्य सम्प्रार्थयते तवाग्रतस्त्वदङ्घ्रिरेणुं रघुनाथनामकः।
श्रीविठ्ठ्लानुग्रह- लब्धसन्मतिस्तत्पूरयैतस्य मनोरथार्णवम्।
गिरिधर अष्टकम, सूरदास जी की महान भक्ति भावना और भगवान श्रीकृष्ण के प्रति उनकी असीम श्रद्धा का प्रतीक है। यह भक्तों के लिए न केवल भक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है, बल्कि भगवान की लीलाओं का सजीव अनुभव भी प्रदान करता है। यदि इसे प्रतिदिन प्रेमपूर्वक गाया जाए, तो यह भक्त के जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा और संतोष का संचार करता है।
गिरिधर अष्टकम पर पूछे जाने वाले प्रश्न FAQs for Giridhara Ashtakam
गिरिधर अष्टकम क्या है?
गिरिधर अष्टकम एक भक्तिपूर्ण स्तुति है जो भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। यह आठ श्लोकों का संग्रह है जो उनके दिव्य स्वरूप, गुणों और भक्तों के प्रति उनकी करुणा का वर्णन करता है। इसे गहरे प्रेम और भक्ति के साथ गाया जाता है।
गिरिधर अष्टकम की रचना किसने की थी?
गिरिधर अष्टकम की रचना संत वल्लभाचार्य ने की थी। वल्लभाचार्य भक्ति मार्ग के महान संत और पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक थे। उन्होंने इसे भगवान श्रीकृष्ण की महिमा गाने और भक्तों को प्रेरित करने के लिए लिखा।
गिरिधर अष्टकम का पाठ करने से क्या लाभ होता है?
गिरिधर अष्टकम का पाठ करने से भक्तों को मानसिक शांति, आत्मिक संतोष और भगवान श्रीकृष्ण के प्रति गहरी भक्ति की अनुभूति होती है। यह कठिन समय में साहस और धैर्य प्रदान करता है और मन को पवित्र करता है।
गिरिधर अष्टकम का पाठ कब और कैसे करना चाहिए?
गिरिधर अष्टकम का पाठ सुबह और शाम के समय, शुद्ध और शांत वातावरण में करना शुभ माना जाता है। इसे ध्यानमग्न होकर और भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर गाया जा सकता है।
गिरिधर अष्टकम के प्रमुख श्लोक कौन-कौन से हैं?
गिरिधर अष्टकम के आठों श्लोक महत्वपूर्ण हैं, लेकिन एक प्रसिद्ध श्लोक है:
“मधुराधिपतेरखिलं मधुरं”
इसमें भगवान श्रीकृष्ण के हर रूप और हर क्रिया को मधुर (सुंदर) बताया गया है। यह श्लोक उनकी दिव्यता और आकर्षण का प्रतीक है।