श्री गायत्री चालीसा
श्री गायत्री चालीसा हिंदू धर्म में एक अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली भक्ति रचना है, जो माँ गायत्री को समर्पित है। माँ गायत्री को वेदों की जननी, ज्ञान की देवी और सृष्टि की प्रेरक शक्ति माना जाता है। यह चालीसा उनके गुणों, महिमा और कृपा का गुणगान करती है, साथ ही भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति और जीवन में शांति प्राप्त करने का मार्ग दिखाती है। आइए, श्री गायत्री चालीसा के बारे में विस्तार से जानते हैं।
माँ गायत्री को वैदिक परंपरा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। वे सावित्री और सरस्वती का संयुक्त स्वरूप मानी जाती हैं। गायत्री मंत्र, जो “ऋग्वेद” से लिया गया है (मंत्र: ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्), उनकी महिमा का आधार है। यह मंत्र ज्ञान, बुद्धि और प्रकाश का प्रतीक है। गायत्री चालीसा इसी मंत्र की भावना को विस्तृत रूप में प्रस्तुत करती है, जिससे सामान्य भक्त भी माँ की आराधना आसानी से कर सकें।
श्री गायत्री चालीसा
॥ दोहा ॥
ह्रीं, श्रीं क्लीं मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचंड।
शांति क्रांति, जागृति, प्रगति, रचना शक्ति अखंड ॥
जगत जननि, मंगल करनि, गायत्री सुख धाम।
प्रणवों सावित्री, स्वधा स्वाहा पूरन काम ॥
॥ चौपाई ॥
भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी, गायत्री नित कलिमल दहनी ।
अक्षर चौबीस परम पुनीता, इसमें बसे शास्त्र, श्रुति, शाश्वत सतोगुणी सतरूपा,
सत्य सनातन सुधा हंसारूढ़ श्वेताम्बर धारी,
स्वर्ण कांति शुचि गगन गीता अनूपा बिहारी ।
पुस्तक, पुष्प, कमण्डलु, माला, शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला।
ध्यान धरत पुलकित हिय होई, सुख उपजत दुःख-दुरमति खोई।
कामधेनु तुम सुर तरु छाया, निराकार की अद्भुत माया।
तुम्हारी शरण गर्दै जो कोई, तरै सकल संकट सों सोई।
सरस्वती लक्ष्मी तुम काली, दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ।
तुम्हारी महिमा पार न पावैं, जो शारद शतमुख गुण गावैं।
चार वेद की मातु पुनीता, तुम ब्रह्माणी गौरी सीता।
महामन्त्र जितने जग माहीं, कोऊ गायत्री सम नाहीं।
सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै, आलस पाप अविद्या नासै।
सृष्टि बीज जग जननि भवानी, कालरात्रि वरदा कल्याणी।
ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते, तुम सों पावें सुरता तेते ।
तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे, जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे।
महिमा अपरम्पार तुम्हारी, जय जय जय त्रिपदा भयहारी।
पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना, तुम सम अधिक न जग में आना।
तुमहिं जान कछु रहे न शेषा, तुमहिं पाय कछु रहे न क्लेशा।
जानत तुमहिं तुमहिं हैजाई, पारस परसि कुधातु सुहाई।
तुम्हारी शक्ति दिपै सब ठाई, माता तुम सब ठौर समाई।
ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे, सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे।
सकल सृष्टि की प्राण विधाता, पालक, पोषक, नाशक, त्राता।
मातेश्वरी दया व्रतधारी, मम सन तरें पातकी भारी ।
जा पर कृपा तुम्हारी होई, तापर कृपा करे सब कोई।
मन्द बुद्धि ते बुद्धि बल पावै, रोगी रोग रहित है जावें।
दारिद मिटे, कटे सब पीरा, नाशै दुःख हरै भव भीरा।
गृह क्लेश चित चिन्ता भारी, नासै गायत्री भय हारी।
सन्तति हीन सुसन्तति पावें, सुख सम्पति युत मोद मनावें।
भूत पिशाच सबै भय खावें, यम के दूत निकट नहिं आवें।
जो सधवा सुमिरे चित लाई, अछत सुहाग सदा सुखदाई।
घर वर सुखप्रद लहैं कुमारी, विधवा रहें सत्यव्रत धारी।
जयति जयति जगदंब भवानी, तुम सम और दयालु न दानी।
जो सद्गुरु सों दीक्षा पावें, सो साधन को सफल बनावें।
सुमिरन करें सुरुचि बड़ भागी, लहै मनोरथ गृही विरागी।
अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता, सब समर्थ गायत्री माता।
ऋषि, मुनि, यति, तपस्वी, योगी, आरत, अर्थी, चिन्तत, भोगी।
जो जो शरण तुम्हारी आवै, सो सो मन वांछित फल पावै।
बल, बुद्धि, विद्या, शील स्वभाऊ, धन, वैभव, यश, तेज, उछाऊ।
सकल बढ़ें उपजें सुख नाना, जो यह पाठ करै धरि ध्याना।
॥ दोहा ॥
यह चालीसा भक्ति युत, पाठ करें जो कोय।
तापर कृपा प्रसन्नता, गायत्री की होय ॥

पाठ करने की विधि
- समय: सुबह सूर्योदय के समय या संध्या में।
- स्थान: स्वच्छ और शांत स्थान, अधिमानतः पूजा स्थल।
- तैयारी: स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनें, माँ गायत्री की मूर्ति या चित्र के सामने दीप जलाएँ।
- संकल्प: मन में प्रार्थना करें कि माँ आपकी बुद्धि को प्रकाशित करें और संकट दूर करें।
- पाठ: गायत्री मंत्र का जाप (कम से कम 11 बार) करने के बाद चालीसा का पाठ करें।
- समापन: अंत में माँ से प्रार्थना करें और प्रसाद ग्रहण करें।
आध्यात्मिक लाभ
- बुद्धि और विवेक की प्राप्ति: माँ गायत्री ज्ञान की देवी हैं, अतः यह चालीसा पढ़ने से बुद्धि तेज होती है।
- संकट निवारण: यह नकारात्मकता और संकटों को दूर करती है।
- मानसिक शांति: नियमित पाठ से मन को शांति और एकाग्रता मिलती है।
- कर्मों का शुद्धिकरण: यह पापों से मुक्ति दिलाती है और जीवन को सकारात्मक दिशा देती है।