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बुधवार, नवम्बर 20, 2024

दुर्गा चालीसा Durga Chalisa

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दुर्गा चालीसा Durga Chalisa in Hindi

श्री दुर्गा चालीसा एक प्रसिद्ध और पूजनीय भक्ति पाठ है, जिसे हिन्दू धर्म में देवी दुर्गा की आराधना के रूप में विशेष स्थान प्राप्त है। इसमें कुल 40 चौपाइयां होती हैं, जिनमें देवी दुर्गा की महिमा, उनके गुणों और उनके द्वारा सम्पूर्ण संसार की रक्षा के लिए किए गए कार्यों का वर्णन किया गया है। “चालीसा” शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है “चालीस”, और इसमें कुल 40 पंक्तियां होती हैं।

श्री दुर्गा चालीसा का महत्व Importance of Shri Durga Chalisa

श्री दुर्गा चालीसा का पाठ विशेष रूप से नवरात्रि के दिनों में किया जाता है, लेकिन इसे किसी भी दिन किया जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि इस चालीसा का नियमित रूप से पाठ करने से व्यक्ति को आत्मबल, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह चालीसा न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करती है, बल्कि शत्रुओं से रक्षा, रोगों से मुक्ति और जीवन में उन्नति के मार्ग प्रशस्त करती है।

श्री दुर्गा चालीसा के प्रमुख भाव: Durga Chalisa in Hindi

  1. देवी की महिमा: श्री दुर्गा चालीसा में सबसे पहले देवी दुर्गा की महिमा का वर्णन किया गया है। वे सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक और जगत की पालनहार हैं।
  2. शक्ति का स्रोत: देवी दुर्गा को शक्ति का अवतार माना जाता है। उन्हें सभी देवताओं की शक्ति का स्रोत कहा गया है, और वे संसार की सभी नकारात्मक शक्तियों को नष्ट करती हैं।
  3. माता के रूप में: दुर्गा माता को करुणामयी और सहायक माता के रूप में दर्शाया गया है, जो अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और उनकी इच्छाओं को पूर्ण करती हैं।
  4. राक्षसों का विनाश: देवी दुर्गा ने समय-समय पर पृथ्वी पर आकर दुष्ट राक्षसों का विनाश किया। जैसे कि महिषासुर मर्दिनी के रूप में उनका चित्रण किया गया है।
  5. भक्तों की रक्षा: यह चालीसा बताती है कि जो व्यक्ति सच्चे मन से देवी की आराधना करता है, वह सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्त होता है और उसे सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।

श्री दुर्गा चालीसा का पाठ करने का सही समय और विधि: श्री दुर्गा चालीसा का पाठ करने के लिए कोई विशेष समय निर्धारित नहीं है, लेकिन इसे ब्रह्म मुहूर्त या सुबह-सुबह करना अत्यधिक शुभ माना जाता है। पाठ करने से पहले देवी दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर के सामने दीपक जलाएं और पुष्प अर्पित करें। उसके बाद, शांत मन से इस चालीसा का पाठ करें।

श्री दुर्गा चालीसा का पाठ करने के लाभ Benefits of reciting Shri Durga Chalisa

  1. शत्रु से रक्षा: दुर्गा चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति शत्रुओं और दुष्ट आत्माओं से सुरक्षित रहता है।
  2. आत्मविश्वास में वृद्धि: इसे नियमित रूप से पढ़ने से मानसिक और आत्मिक शक्ति प्राप्त होती है, जिससे जीवन में आने वाली कठिनाइयों से निपटने का आत्मविश्वास बढ़ता है।
  3. रोगों से मुक्ति: जिन लोगों को शारीरिक कष्ट या रोग होते हैं, उन्हें भी दुर्गा चालीसा का पाठ करने से राहत मिलती है। देवी दुर्गा को सर्वरोग निवारणी माना जाता है।
  4. आध्यात्मिक उन्नति: यह चालीसा भक्तों को आत्मिक शांति और ध्यान की गहराई में जाने का अवसर प्रदान करती है।

दुर्गा चालीसा Durga Chalisa Lyrics

॥ चौपाई ॥

नमो नमो दुर्गे सुख करनी।नमो नमो अम्बे दुःख हरनी॥
निराकार है ज्योति तुम्हारी।तिहूँ लोक फैली उजियारी॥

अर्थ:- है सुख दायिनी माँ दुर्गा मेरा नमस्कार स्वीकार करे। है दुःख हरने वाली माँ श्री अम्बा मेरा नमस्कार स्वीकार करे।

मां आपकी ज्योति का प्रकाश अनंत है और इस प्रकाश से पृथ्वी, आकाश और पाताल तीनों ही लोकों में उजाला छाया हुआ है।

आपकी ज्योति का प्रकाश असीम है, जिसका तीनों लोको (पृथ्वी, आकाश, पाताल) में प्रकाश फैल रहा है।

शशि ललाट मुख महाविशाला।नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे।दरश करत जन अति सुख पावे॥

तुम संसार शक्ति लय कीना।पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला।तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी।तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

रूप सरस्वती को तुम धारा।दे सुबुद्धि ऋषि-मुनिन उबारा॥
धरा रूप नरसिंह को अम्बा।प्रगट भईं फाड़कर खम्बा॥

रक्षा कर प्रह्लाद बचायो।हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।श्री नारायण अंग समाहीं॥

क्षीरसिन्धु में करत विलासा।दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।महिमा अमित न जात बखानी॥

मातंगी अरु धूमावति माता।भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी।छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

केहरि वाहन सोह भवानी।लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर-खड्ग विराजै।जाको देख काल डर भाजे॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला।जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगर कोटि में तुम्हीं विराजत।तिहुंलोक में डंका बाजत॥

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे।रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी।जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

रूप कराल कालिका धारा।सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब-जब।भई सहाय मातु तुम तब तब॥

अमरपुरी अरु बासव लोका।तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावै।दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो।काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप को मरम न पायो।शक्ति गई तब मन पछितायो॥

शरणागत हुई कीर्ति बखानी।जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो।तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावे।मोह मदादिक सब विनशावै॥

शत्रु नाश कीजै महारानी।सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला।ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला॥

जब लगि जियउं दया फल पाऊं।तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥
दुर्गा चालीसा जो नित गावै।सब सुख भोग परमपद पावै॥

देवीदास शरण निज जानी।करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

॥दोहा॥

शरणागत रक्षा करे, भक्त रहे नि:शंक ।
मैं आया तेरी शरण में, मातु लिजिये अंक ॥
॥ इति श्री दुर्गा चालीसा ॥

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