दीनबन्धो कृपासिन्धो कृपाबिन्दू दो प्रभो – प्रार्थना
Dinabandho Krpasindho Krpaabindo Do Prabho Lyrics
दीनबन्धो ! कृपासिन्धो ! कृपाबिन्दू दो प्रभो ।
उस कृपाकी बूँदसे फिर बुद्धि ऐसी हो प्रभो ।
वृत्तियाँ द्रुतगामिनी हो जा समावें नाथमें ।
नदी-नद जैसे समाते हैं सभी जलनाथमें ।॥
जिस तरफ देखूँ उधर ही दरस हो श्रीरामका ।
आँख भी मूँदूँ तो दीखै मुखकमल घनश्यामका ।।
आपमे मैं आ मिलूँ प्रभु ! यह मुझे वरदान दो ।
मिलती तरंग समुद्रमे जैसे, मुझे भी स्थानो हो ।।
छूट जावें दुःख सारे, क्षुद्र सीमा दूर हो ।
देतकी दुबिधा मिडै, आनन्दमे भरपूर हो ।।
आनन्द सीमारहित हो, आनन्द पूर्णानन्द हो ।
आनन्द सत आनन्द हो, आनन्द चित आनन्द हो ।।
आनन्दका आनन्द हो, आनन्दमें आनन्द हो ।
आनन्दको आनन्द हो, आनन्द ही आनन्द हो ।।



