देवी क्षमापण स्तोत्रम्(Devi Aparadha Kshamapana Stotram) का महत्व देवी उपासना में अत्यधिक है। यह स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचित है और इसे देवी के प्रति क्षमा याचना के भाव से लिखा गया है। इसमें भक्त देवी से अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगते हैं और उनके कृपा पात्र बनने की प्रार्थना करते हैं।
मनुष्य से अज्ञानतावश या अनजाने में अनेक प्रकार की त्रुटियाँ हो जाती हैं। देवी क्षमापण स्तोत्रम् में, भक्त अपनी इन त्रुटियों को स्वीकार करते हुए देवी से क्षमा की याचना करते हैं। यह स्तोत्र न केवल आत्म-विश्लेषण की प्रेरणा देता है, बल्कि भक्त और देवी के बीच एक गहरा आध्यात्मिक संबंध स्थापित करता है।
देवी क्षमापण स्तोत्रम् के श्लोक – Devi Aparadha Kshamapana Stotram Sloka
न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो
न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथाः।
न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं
परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम्॥१॥
विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया
विधेयाशक्यत्वात् तव चरणयोर्या च्युतिरभूत्।
तदेतत् क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति॥२॥
पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहवः सन्ति सरलाः
परं तेषां मध्ये विरलतरलोऽहं तव सुतः।
मदीयोऽयं त्यागः समुचितमिदं नो तव शिवे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति॥३॥
जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता
न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया।
तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति॥४॥
परित्यक्त्वा देवा विविधविधसेवाकुलतया
मया पञ्चाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि।
इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नाऽपि भविता
निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम्॥५॥
श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा
निरातङ्को रङ्को विहरति चिरं कोटिकनकैः।
तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं
जनः को जानीते जननि जननीयं जपविधौ॥६॥
चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो
जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपतिः।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं
भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम्॥७॥
न मोक्षस्याकाङ्क्षा भवविभववाञ्छापि च न मे
न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुनः।
अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै
मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपतः॥८॥
नाराधितासि विधिना विविधोपचारैः
किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभिः।
श्यामे त्वमेव यदि किञ्चन मय्यनाथे
धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव॥९॥
आपत्सु मग्नः स्मरणं त्वदीयं
करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि।
नैतच्छठत्वं मम भावयेथाः
क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति॥१०॥
जगदम्ब विचित्रमत्र किं
परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि।
अपराधपरम्परापरं
न हि माता समुपेक्षते सुतम्॥११॥
मत्समः पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा नहि।
एवं ज्ञात्वा महादेवि यथायोग्यं तथा कुरु॥१२॥
देवी क्षमापण स्तोत्रम् के पाठ करने की विधि
- प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ स्थान पर बैठें।
- दीप जलाकर देवी की प्रतिमा या चित्र के समक्ष बैठें।
- स्तोत्र का पाठ शुद्ध उच्चारण के साथ करें।
- पाठ के बाद देवी से अपनी गलतियों के लिए क्षमा माँगें।
देवी क्षमापण स्तोत्रम् पर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
देवी क्षमापण स्तोत्रम् क्या है?
देवी क्षमापण स्तोत्रम् एक धार्मिक और भक्ति से ओत-प्रोत संस्कृत स्तोत्र है, जिसमें देवी से अपने अपराधों, अशुद्धियों और त्रुटियों के लिए क्षमा की प्रार्थना की जाती है। इसे विशेष रूप से शक्ति साधकों द्वारा उनकी साधना में पूर्णता और शुद्धता के लिए पढ़ा जाता है।
देवी क्षमापण स्तोत्रम् का महत्व क्या है?
यह स्तोत्र भक्त और देवी के बीच एक गहन आध्यात्मिक संबंध स्थापित करता है। इसके माध्यम से भक्त अपनी गलतियों को स्वीकार करते हुए देवी से माफी मांगते हैं। यह आत्मशुद्धि, अहंकार के त्याग और आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होता है।
देवी क्षमापण स्तोत्रम् का पाठ कब और कैसे करना चाहिए?
इसका पाठ प्रातःकाल या संध्याकाल में, शुद्ध मन और शांत वातावरण में करना चाहिए। देवी की प्रतिमा या चित्र के सामने दीप जलाकर, ध्यानपूर्वक और श्रद्धा से इसका पाठ करना शुभ माना जाता है।
देवी क्षमापण स्तोत्रम् किसने रचा है?
देवी क्षमापण स्तोत्रम् के रचयिता आदि शंकराचार्य माने जाते हैं। उन्होंने इसे अद्वैत वेदांत और भक्ति की भावना को व्यक्त करने के लिए रचा। इसमें उनके गहरे आध्यात्मिक ज्ञान और भक्ति का प्रतीकात्मक वर्णन मिलता है।
क्या देवी क्षमापण स्तोत्रम् के पाठ से विशेष फल प्राप्त होते हैं?
हां, इस स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति मानसिक शांति, आंतरिक शुद्धता और देवी की कृपा प्राप्त करता है। यह भय, चिंता और नकारात्मकता को दूर करने में मदद करता है और आत्मा को दिव्यता की ओर ले जाता है।