18.5 C
Gujarat
रविवार, दिसम्बर 22, 2024

अर्गला स्तोत्रम् Argala Stotram

Post Date:

अर्गला स्तोत्रम् Argala Stotram In Hindi

अर्गला स्तोत्रम् देवी दुर्गा की स्तुति में रचित एक महत्वपूर्ण मंत्रमाला है, जो दुर्गा सप्तशती या चण्डी पाठ का हिस्सा है। इसे भगवती दुर्गा के विविध रूपों की आराधना के लिए किया जाता है और इसका पाठ करने से साधक को इच्छित फल की प्राप्ति होती है। इस स्तोत्र का पाठ मुख्य रूप से किसी कार्य या मनोकामना की पूर्ति, भय से मुक्ति और जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

अर्गला स्तोत्रम् की रचना और महत्व Importance of Argala Stotram

अर्गला स्तोत्रम् की रचना ऋषि मार्कण्डेय द्वारा मानी जाती है। यह स्तोत्र दुर्गा सप्तशती के आरंभिक पाठों में आता है। यह देवी दुर्गा के स्वरूपों का वर्णन करता है और उनसे विभिन्न वरदानों की कामना की जाती है। “अर्गला” शब्द का अर्थ होता है “बाधा” या “रुकावट”। इस स्तोत्र का पाठ करते समय देवी दुर्गा से सभी बाधाओं को दूर करने और सफलता प्रदान करने की प्रार्थना की जाती है।

अर्गला स्तोत्रम् का पाठ करने के लाभ Argala Stotram Benefits

  1. रोगों से मुक्ति: जो लोग किसी रोग से ग्रसित होते हैं, उनके लिए अर्गला स्तोत्र का पाठ अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
  2. आर्थिक समस्याओं से छुटकारा: इस स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करने से धन-संबंधी समस्याओं का समाधान होता है।
  3. साहस और आत्मविश्वास में वृद्धि: यह स्तोत्र साधक के आत्मबल को बढ़ाने में मदद करता है और मानसिक शक्ति प्रदान करता है।
  4. शत्रुओं का नाश: जो लोग शत्रु या विरोधियों से परेशान होते हैं, उनके लिए अर्गला स्तोत्र का पाठ अत्यंत प्रभावी माना जाता है।
  5. परिवारिक समस्याओं का समाधान: घरेलू समस्याओं, पारिवारिक कलह या किसी भी प्रकार की मानसिक अशांति से मुक्ति के लिए यह स्तोत्र अत्यंत प्रभावी माना गया है।

अर्गला स्तोत्रम् का पाठ करने की विधि

  • साधक को स्वच्छता का ध्यान रखते हुए, शांत वातावरण में इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
  • इसे किसी भी देवी दुर्गा की प्रतिमा या चित्र के सामने किया जा सकता है।
  • नवरात्रि, विशेष रूप से शारदीय और चैत्र नवरात्रि, के दिनों में इसका पाठ अत्यंत शुभ माना जाता है।
  • यदि साधक नियमित रूप से इसका पाठ करता है, तो उसे विशेष लाभ प्राप्त होते हैं।

अर्गला स्तोत्रम् का पाठ

जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतापहारिणि ।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तु ते ॥१॥

जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा शिवा क्षमा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ॥२॥

मधुकैटभविध्वंसि विधातृवरदे नमः ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥३॥

महिषासुरनिर्नाशि भक्तानां सुखदे नमः ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥४॥

धूम्रनेत्रवधे देवि धर्मकामार्थदायिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥५॥

रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्डविनाशिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥६॥

निशुम्भशुम्भनिर्नाशि त्रैलोक्यशुभदे नमः ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥७॥

वन्दिताङ्घ्रियुगे देवि सर्वसौभाग्यदायिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥८॥

अचिन्त्यरूपचरिते सर्वशत्रुविनाशिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥९॥

नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चापर्णे दुरितापहे ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥१०॥

स्तुवद्भयो भक्तिपूर्वं त्वां चण्डिके व्याधिनाशिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥११॥

चण्डिके सततं युद्धे जयन्ति पापनाशिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥१२॥

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि देवि परं सुखम् ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥१३॥

विधेहि देवि कल्याणं विधेहि विपुलां श्रियम् ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥१४॥

विधेहि द्विषतां नाशं विधेहि बलमुच्चकैः ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥१५॥

सुरासुरशिरोरत्ननिघृष्टचरणेऽम्बिके ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥१६॥

विद्यावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मीवन्तञ्च मां कुरु ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥१७॥

देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पनिषूदिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥१८॥

प्रचण्डदैत्यदर्पघ्ने चण्डिके प्रणताय मे ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥१९॥

चतुर्भुजे चतुर्वक्त्रसंस्तुते परमेश्वरि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥२०॥

कृष्णेन संस्तुते देवि शश्वद्भक्त्या सदाम्बिके ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥२१॥

हिमाचलसुतानाथसंस्तुते परमेश्वरि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥२२॥

इन्द्राणीपतिसद्भावपूजिते परमेश्वरि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥२३॥

देवि भक्तजनोद्दामदत्तानन्दोदयेऽम्बिके ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥२४॥

भार्या मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम् ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥२५॥

तारिणि दुर्गसंसारसागरस्याचलोद्भवे ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥२६॥

इदं स्तोत्रं पठित्वा तु महास्तोत्र पठेन्नरः ।
सप्तशतीं समाराध्य वरमाप्नोति दुर्लभम् ॥२७॥

इस श्लोक में देवी के विभिन्न रूपों की स्तुति की गई है। जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, दुर्गा, क्षमा, शिवा, और धात्री के रूप में देवी को नमन किया जाता है। स्वाहा और स्वधा देवताओं के लिए उपयोग की जाने वाली आदित्य शक्ति हैं, जिनके द्वारा यज्ञ और अनुष्ठान सफल होते हैं।

Share post:

Subscribe

Popular

More like this
Related

शनि कवचम् Shani Kavacham

शनि कवचम् एक विशेष मंत्र है, जो भगवान शनि...

शनि पंचकम Shani Panchakam

https://youtu.be/8F9OEeQcPwk?si=yXrF7yqSQBId_mL8शनि पंचकम एक प्रसिद्ध हिंदू स्तोत्र है, जो शनिदेव...

नक्षत्र शान्तिकर स्तोत्रम् Nakshatra Shantikara Stotram

https://youtu.be/ckHkT9eh5_4?si=Z5O34cvymPpinv3fनक्षत्र शान्तिकर स्तोत्रम् एक वैदिक स्तोत्र है, जिसका उपयोग...

नवग्रह ध्यान स्तोत्रम् Navagraha Dhyana Stotram

https://youtu.be/qwE-7mS8XkM?si=WfYCxSbdOAaJ4zPvनवग्रह ध्यान स्तोत्रम् Navagraha Dhyana Stotramनवग्रह ध्यान स्तोत्रम् एक...
error: Content is protected !!