Anokha Abhinay Yah Sansar
अनोखा अभिनय यह संसार ! रंगमंचपर होता नित नटवर-इच्छित व्यापार ॥१ ॥
कोई है सुत सजा, किसीने घरा पिताका साज । कोई स्नेहमयी जननी बन करता नटका काज ॥ २ ॥
कोई सज पक्षी, पति कोई, करें प्रेमकी बात । कोई सुहृद बना, बैरी बन कोई करता घात ॥ ३ ॥
कोई राजा, रंक बना, कोई कायर, अति शूर। कोई अति दयालु बनता, कोई हिंसक अति क्रूर ॥ ४॥
कोई ब्राह्मण, शूद्र, श्वपच है, कोई बनता मूढ़ । पंडित परम स्वाँग घर कोई करता बातें गूढ़ ॥ ५ ॥
कोई रोता हँसता कोई, कोई है गंभीर । कोई कातर बन कराहता, कोई घरता बीर ॥ ६ ॥
रहते सभी स्वाँग अपनेके सभी भाँति अनुकूल । होती नाश पात्रता जो किंचित् करता प्रतिकूल ॥ ७॥
मनमें सभी समझते हैं अपना सच्चा संबंध । इसीलिये आसक्ति नहीं कर सकती उनको अंध ॥ ८ ॥
किसी वस्तुमें नहीं मानते कुछ भी अपना भाव । रंगमंचपर किन्तु दिखाते तत्परतासे दाव ॥ ९ ॥
इसी तरह जगमें सब खेलें खेल सभी अविकार । मायापति नटवर नायकके शुभ इंगित अनुसार ॥ १०॥