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बुधवार, नवम्बर 5, 2025

अब तो कुछ भी नहीं सुहावै | Ab to Kuchh Bhee Nahin Suhaavai

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अब तो कुछ भी नहीं सुहावै एक तु ही मन भावै है

Ab to Kuchh Bhee Nahin Suhaavai Ek Tu Hee Man Bhaavai Hai

( मारवाड़ी बोली )

अब तो कुछ भी नहीं सुहावै, एक तु ही मन भावै है ।

तनै मिलणनै आज मेरो हिवड़ो उझल्यौ आवै है ।

तड़फ रह्यो ज्यूँ मछली जळ बिन, अब लूँ क्यूँ तरसावै है । !

दरस दिखाणै मैं देरी कर क्यूँ अब और सतावै है ! ॥ १ ॥

पण, जो इसी बातमैं तेरो चित राजी होतो होवै ।

तौ कोई भी आँट नहीं, मनै चाहे जितणो दुख होवै ॥

तेरै सुखसैं सुखिया हूँ मैं, तेरे लिये प्राण मेरी खातर प्रियतम !

अपणे सेवै । सुखमैं मत काँटा बोवै ॥ २ ॥

पण या निश्चै समझ, तर्ने मिलणैकी ख. तर मेरा प्राण ।

छिन-छिन मैं व्याकुल होबै है, दरसणकी है भारी टाण ॥

बाँध तुड़ाकर भाग्या चावै, मानै नहीं किसीकी काण ।

आहूँ पहर उड्या सा डोलै, पलक-पलककी समझै हाण ।। ३ ।।

पण प्यारा ! तेरी राजी मैं है नित राजी मेरो मन ।

प्राणाधिक, दोनूँ लोकाँको यूँ ही मेरो जीवन-धन !!

नहीं मिलै तो तेरी मरजी, पण तन-मन तेरै अरपन ।

लोक-चेद है लूँ ही मेरो, यूँ ही मेरो परम रतन || ४ ||

चातककी ज्यूँ सदा उडीकूँ कदे नहीं मुँहनै मोड़ ।

दुख देवै, मारै, तड़फावै, तो भी नेह नहीं तोड़ ॥

तरसा-तरसाकर जी लेबै तो भी तनै नहीं छोड़ें ।

झाँकूँ नहीं दूसरी कानी तेरैमैं ही जी जोड़ें ॥ ५ ॥

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