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रविवार, दिसम्बर 14, 2025

दुर्गा स्तव

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Durga Stava In Hindi

दुर्गा स्तव(Durga Stava) देवी दुर्गा की स्तुति में गाए जाने वाले शक्तिशाली मंत्रों एवं श्लोकों का संग्रह है। यह विभिन्न ग्रंथों में वर्णित है और विशेष रूप से मार्कंडेय पुराण, देवी महात्म्य और दुर्गा सप्तशती में उल्लेखित है। इसे शक्ति की आराधना के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है।

दुर्गा स्तव का महत्व

दुर्गा स्तव का पाठ करने से न केवल मानसिक और शारीरिक बल प्राप्त होता है, बल्कि यह नकारात्मक शक्तियों से भी रक्षा करता है। ऐसा माना जाता है कि यह स्तुति देवी की कृपा प्राप्त करने का एक श्रेष्ठ मार्ग है। विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान दुर्गा स्तव का पाठ अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है।

दुर्गा स्तव के स्रोत

दुर्गा स्तव के कई स्रोत हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

  1. मार्कंडेय पुराण – इसमें दुर्गा सप्तशती का उल्लेख है, जिसमें देवी दुर्गा की महिमा गाई गई है।
  2. देवी महात्म्य – इसमें दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों और उनकी लीलाओं का वर्णन है।
  3. स्कंद पुराण एवं अन्य ग्रंथ – इनमें भी देवी दुर्गा के स्तोत्रों का विस्तार से वर्णन है।

दुर्गा स्तव का प्रभाव और लाभ

  • संकटों से मुक्ति: दुर्गा स्तव के नियमित पाठ से जीवन में आने वाली कठिनाइयों और बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
  • सकारात्मक ऊर्जा का संचार: यह मानसिक और आत्मिक शांति प्रदान करता है।
  • नकारात्मक शक्तियों का नाश: इसे पढ़ने से व्यक्ति को नकारात्मक शक्तियों से रक्षा मिलती है।
  • भय, चिंता और तनाव से मुक्ति: यह स्तोत्र मन को शांत करता है और जीवन में साहस बढ़ाता है।

पाठ की विधि

  • प्रातः या संध्या के समय स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • माता दुर्गा के चित्र या मूर्ति के सामने दीप प्रज्वलित करें।
  • शांत मन से दुर्गा स्तव का पाठ करें।
  • नवरात्रि, अष्टमी, नवमी या विशेष अवसरों पर इसका पाठ विशेष फलदायी माना जाता है।

Durga Stava In Hindi

सन्नद्धसिंहस्कन्धस्थां स्वर्णवर्णां मनोरमाम्।
पूर्णेन्दुवदनां दुर्गां वर्णयामि गुणार्णवाम्।
किरीटहारगेरैवेयनूपुराङ्गदकङ्कणैः।
रत्नकाञ्च्या रत्नचित्रकुचकञ्चुकतेजसा।
विराजमाना रुचिराम्बरा किङ्किणिमण्डिता।
रत्नमेखलया रत्नवासोपरिविभूषिता।
वीरशृङ्खलया शोभिचारुपादसरोरुहा।
रत्नचित्राङ्गुलीमुद्रारत्नकुण्डलमण्डिता।
विचित्रचूडामणिना रत्नोद्यत्तिलकेन च।
अनर्घ्यनासामणिना शोभितास्यसरोरुहा।
भुजवीर्या रत्नचित्रकण्ठसूत्रेण चाङ्किता।
पद्माक्षिणी सुबिम्बोष्ठी पद्मगर्भादिभिः स्तुता।
कबरीभारविन्यस्तपुष्पस्तबकविस्तरा।
कर्णनीलोत्पलरुचा लसद्भूमण्डलत्विषा।
कुन्तलानां च सन्तत्या शोभमाना शुभप्रदा।
तनुमध्या विशालोरःस्थला पृथुनितम्बिनी।
चारुदीर्घभुजा कम्बुग्रीवा जङ्घायुगप्रभा।
असिचर्मगदाशूलधनुर्बाणाङ्कुशादिना।
वराभयाभ्यां चक्रेण शङ्खेन च लसत्करा।
दंष्ट्राग्रभीषणास्योत्थहुङ्कारार्द्दितदानवा।
भयङ्करी सुरारीणां सुराणामभयङ्करी।
मुकुन्दकिङ्करी विष्णुभक्तानां मौक्तशङ्करी।
सुरस्त्री किङ्करीभिश्च वृता क्षेमङ्करी च नः।
आदौ मुखोद्गीतनानाम्नाया सर्गकरी पुनः।
निसर्गमुक्ता भक्तानां त्रिवर्गफलदायिनी।
निशुम्भशुम्भसंहर्त्री महिषासुरमर्द्दिनी।
तामसानां तमःप्राप्त्यै मिथ्याज्ञानप्रवर्त्तिका।
तमोभिमाननी पायात् दुर्गा स्वर्गापवर्गदा।
इमं दुर्गास्तवं पुण्यं वादिराजयतीरितम्।
पठन् विजयते शत्रून् मृत्युं दुर्गाणि चोत्तरेत्।

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