Kamakshi Dandakam
कामाक्षी डण्डकम् (Kamakshi Dandakam) एक अत्यंत प्रभावशाली, भावप्रवण और काव्यशैली में रचित स्तोत्र है जो देवी कामाक्षी को समर्पित है। यह स्तोत्र विशेषतः अद्वैत वेदान्ताचार्य श्री आदी शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है, हालाँकि कुछ विद्वान इस रचना को अन्य तांत्रिक या शैव परंपराओं से भी जोड़ते हैं।
देवी कामाक्षी, कांचीपुरम् (तमिलनाडु) की अधिष्ठात्री देवी हैं और उन्हें आदि शक्ति, त्रिपुरा सुन्दरी, और महात्रिपुरासुंदरी के रूप में पूजा जाता है। ‘कामाक्षी’ शब्द का अर्थ है जिसकी दृष्टि मात्र से सभी कामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं।
कामाक्षी डण्डकम्
ओङ्कारात्मकभासिरूप्यवलये संशोभि हेमं महः
बिभ्रत्केलिशुकं त्रयीकलगिरं दक्षेण हस्तेन च।
वामे लंबकरं त्रिभङ्गिसुभगं दीनार्तनम्रत्पदं
स्वान्ते दीव्यतु मे कटाक्षशुभदं मन्दस्मितोदारकम्।
दक्षिणे कामजिद्यस्याः चूडायां कामवल्लभः।
वासः कामायुधस्याधः कामाक्षीं तां नमाम्यहम्।
कामान्धा तिलकं यस्याः काममाली च पुत्रकः।
कामान्धोपमवाणीं तां कामाक्षीं प्रणमाम्यहम्।
गाङ्गमाता तु या देवी गाङ्गमालाविराजिता।
गां गता रक्षितुं मर्त्यान् गाङ्गदेहां नमामि ताम्।
जयैकाम्रेश्वरार्धाङ्गि जय तञ्जाविलासिनि।
जय बङ्गारुकामाक्षि जय सर्वार्थदायिनि।
जय जननि सुरासुरस्तोमसंसेव्यमानातिपुण्यप्रदेशप्रमुख्यामधिष्ठाय
काञ्चीं स्वमूलस्वरूपेण भक्तेष्टसन्दानचिन्तामणे मञ्जुसम्भाषणे भामणे।
मूलदेवीतृतीयाक्षिसञ्जाततेजोनुरूपां सुवर्णां सुमूर्तिं विधायाम्ब
वणीपतिस्त्वां ध्रुवे चैकदेशे प्रतिष्ठाप्य काञ्च्यां
विवाहोत्सवं चारु निर्वृत्य चैकाम्रनाथेन
कामाक्षि संयोजयामास चाकाशभूपालमेवात्र कर्तुं महं ते सदा।
कामकोटी सुपीटावमर्देन नष्टेक्षणः पद्मभूश्चक्रपूजां तथाराधनं ते
स्वनुष्ठय चक्षुः प्रकाशं प्रपेदे भृशम्।
यवनजनितघोरकर्नाटकानीककाले नु
दुर्वाससश्शिष्यमुख्यैर्वरस्थानिकैराशु शेञ्चिं
प्रपद्याम्ब सन्तानभूपालसंपूजिताऽभूः।
ततश्चोड्यार्पालयस्वामिना त्वं समाराधिताऽऽसीश्चिरायाऽथ
गत्वा बहून् ग्रामदेशान्मुदा हाटकक्षेत्रसंशोभमाना सुदीर्घास्समास्तत्र
नीत्वाऽथ तञ्जापुराधीशभाग्यप्रकर्षेण
संप्राप्य तञ्जां च पूतां सुहृत्तूलजेन्द्राख्यराजेनसंस्थापिताऽस्मिन्
शुभे मन्दिरे रामकृष्णालयाभ्यन्तराभासि तेन प्रदत्तां भुवं चापि
लब्ध्वाऽत्र दुर्वाससाऽऽदिष्टसौभाग्यचिन्तामणिप्रोक्तपूजां नु कुर्वन्ति ते साधवः।
शरभमहिपवर्धितानेकभागं च ते मन्दिरं काञ्चीपीठाधिनाथप्रकाण्डैरथो धर्मकर्तृप्रमुख्यैश्च देवालयानल्पवित्तव्ययेनातिनूत्नीकृतं तत्।
श्शाङ्कावतंसे सुगत्या जितोन्मत्तहंसे रुचातीतहंसे नतांसे।
तुलामीनमासात्तसत्फल्गुनीऋक्ष शोभादिनेष्वत्र जन्मोद्वहाद्युत्सवं
शारदे रात्रिकाले प्रमुख्योत्सवं चातिसंभारपूर्वेण दिव्याभिषेकेण संभावन्त्यम्ब।
ते भक्तवृन्दाः सदानन्दकन्दे सुमातङ्गनन्दे
अच्छकुन्दाभदन्ते शुभे गन्धमार्जाररेतोऽभिसंवासिते
जानकीजानिसंवन्दिते जामदग्न्येन सन्नन्दित।
मधुरसुकविमूकसंश्लाधिते पूज्यदुर्वाससाराधिते
धौम्यसद्भक्तसंभाविते शङ्कराचार्यसंसेविते
काञ्चिपीठेश्वरैः पूजिते श्यामशास्त्रीतिविख्यातसङ्गीतराट्कीर्तिते
तञ्जपूर्वासिसौभाग्यदात्रीं पवित्रीं सदा भावये त्वां वराकाः।
कृपासान्द्रदृष्टिं कुरुष्वाम्ब शीघ्रं मनः
शुद्धिमच्छां च देह्यात्मविद्यां क्षमस्वापराधं
मया यत्कृतं ते प्रयच्छात्र सौख्यं परत्रापि नित्यं
विधेह्यङ्घ्रिपद्मे दृढां भक्तिमारात्
नमस्ते शिवे देहि मे मङ्गलं पाहि कामाक्षि मां पाहि कामाक्षि माम्।
डण्डक काव्य शैली
‘डण्डक’ एक विशिष्ट काव्य शास्त्रीय छंद होता है जिसमें लम्बी, संस्कृत में जटिल, लेकिन लयबद्ध पंक्तियाँ होती हैं। इसमें पद्य-रूप में देवी की स्तुति की जाती है, जहाँ प्रत्येक पंक्ति देवी की किसी एक महिमा, रूप, गुण, शक्ति या लीला का वर्णन करती है।
कामाक्षी डण्डकम् की विशेषताएँ
- देवी की कृपा का वर्णन:
इसमें देवी कामाक्षी की करूणा, सौंदर्य, शक्ति, ज्ञान और उनकी भक्ति से प्राप्त होने वाली सिद्धियों का विस्तार से वर्णन किया गया है। - आत्मिक समर्पण की भावना:
कवि (या भक्त) पूरे मन और आत्मा से देवी के चरणों में समर्पण करता है और उनके बिना स्वयं को असहाय बताता है। - तांत्रिक और अद्वैत मिश्रण:
यह स्तोत्र शृंगार, भक्ति और ज्ञान तीनों का समावेश करता है – विशेषकर अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों के साथ-साथ शक्ति उपासना की तांत्रिक परंपराओं का भी दर्शन इसमें मिलता है। - काव्य सौंदर्य:
संस्कृत साहित्य के अनेक रसों का समावेश – जैसे करुणा, भक्ति, शृंगार, अद्भुत आदि – इसे अत्यंत हृदयस्पर्शी बनाता है।
कामाक्षी डण्डकम् पाठ के लाभ
कामाक्षी डण्डकम् का नित्य पाठ करने से अनेक आध्यात्मिक लाभ माने गए हैं:
- सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति होती है
- मानसिक शांति एवं आत्मबल की प्राप्ति
- शत्रुओं से सुरक्षा और बाधाओं से मुक्ति
- धन, बुद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति
- विद्या और भक्ति में वृद्धि
- विशेषकर स्त्रियों के लिए सौभाग्य और संतान सुख की प्राप्ति