Lalita Pushpanjali Stotram
ललिता पुष्पांजलि स्तोत्रम् एक अत्यंत पवित्र और दिव्य स्तोत्र है, जो माँ त्रिपुरा सुंदरी अथवा ललिता देवी की स्तुति में रचा गया है। यह स्तोत्र उनके चरणों में पुष्पांजलि अर्पित करने के भाव से गाया जाता है, जिसमें भक्त अपनी सम्पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से देवी को स्मरण करता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से माँ ललिता की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है और साधक को भौतिक और आध्यात्मिक लाभ दोनों प्राप्त होते हैं।
ललिता देवी का परिचय
देवी ललिता, जिन्हें श्री विद्या की अधिष्ठात्री देवी भी कहा जाता है, दशमहाविद्याओं में से एक विशेष स्थान रखती हैं। वे शक्तिपीठों की अधीश्वरी और श्रीचक्र की केंद्रबिंदु (बिंदुस्थान) पर विराजमान होती हैं। उनका स्वरूप सौंदर्य, करुणा और शक्ति का समन्वय है।
ललिता पुष्पांजलि स्तोत्रम्
समस्तमुनियक्ष- किंपुरुषसिद्ध- विद्याधर-
ग्रहासुरसुराप्सरो- गणमुखैर्गणैः सेविते।
निवृत्तितिलकाम्बरा- प्रकृतिशान्तिविद्याकला-
कलापमधुराकृते कलित एष पुष्पाञ्जलिः।
त्रिवेदकृतविग्रहे त्रिविधकृत्यसन्धायिनि
त्रिरूपसमवायिनि त्रिपुरमार्गसञ्चारिणि।
त्रिलोचनकुटुम्बिनि त्रिगुणसंविदुद्युत्पदे
त्रयि त्रिपुरसुन्दरि त्रिजगदीशि पुष्पाञ्जलिः।
पुरन्दरजलाधिपान्तक- कुबेररक्षोहर-
प्रभञ्जनधनञ्जय- प्रभृतिवन्दनानन्दिते।
प्रवालपदपीठीका- निकटनित्यवर्तिस्वभू-
विरिञ्चिविहितस्तुते विहित एष पुष्पाञ्जलिः।
यदा नतिबलादहङ्कृतिरुदेति विद्यावय-
स्तपोद्रविणरूप- सौरभकवित्वसंविन्मयि।
जरामरणजन्मजं भयमुपैति तस्यै समा-
खिलसमीहित- प्रसवभूमि तुभ्यं नमः।
निरावरणसंविदुद्भ्रम- परास्तभेदोल्लसत्-
परात्परचिदेकता- वरशरीरिणि स्वैरिणि।
रसायनतरङ्गिणी- रुचितरङ्गसञ्चारिणि
प्रकामपरिपूरिणि प्रकृत एष पुष्पाञ्जलिः।
तरङ्गयति सम्पदं तदनुसंहरत्यापदं
सुखं वितरति श्रियं परिचिनोति हन्ति द्विषः।
क्षिणोति दुरितानि यत् प्रणतिरम्ब तस्यै सदा
शिवङ्करि शिवे पदे शिवपुरन्ध्रि तुभ्यं नमः।
शिवे शिवसुशीतलामृत- तरङ्गगन्धोल्लस-
न्नवावरणदेवते नवनवामृतस्पन्दिनी।
गुरुक्रमपुरस्कृते गुणशरीरनित्योज्ज्वले
षडङ्गपरिवारिते कलित एष पुष्पाञ्जलिः।
त्वमेव जननी पिता त्वमथ बन्धवस्त्वं सखा
त्वमायुरपरा त्वमाभरणमात्मनस्त्वं कलाः।
त्वमेव वपुषः स्थितिस्त्वमखिला यतिस्त्वं गुरुः
प्रसीद परमेश्वरि प्रणतपात्रि तुभ्यं नमः।
कञ्जासनादिसुरवृन्दल- सत्किरीटकोटिप्रघर्षण- समुज्ज्वलदङ्घ्रिपीठे।
त्वामेव यामि शरणं विगतान्यभावं दीनं विलोकय यदार्द्रविलोकनेन।
ललिता पुष्पांजलि स्तोत्रम् पाठ विधि:
- प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें
- देवी की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक, अगरबत्ती, पुष्प और नैवेद्य रखें
- पहले ललिता अष्टोत्तर शतनामावली या ललिता सहस्रनाम का पाठ करें (यदि संभव हो)
- फिर ललिता पुष्पांजलि स्तोत्रम् का पाठ करें
- स्तोत्र के अंत में देवी से अपने मन की बात कहें और प्रार्थना करें
ललिता पुष्पांजलि स्तोत्रम् लाभ और फल:
लाभ | विवरण |
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मानसिक शांति | चिंता, भय और तनाव से मुक्ति मिलती है |
ऐश्वर्य की प्राप्ति | धन-धान्य, सुख-संपत्ति में वृद्धि होती है |
आध्यात्मिक उन्नति | साधक का आत्मबल बढ़ता है और चित्त स्थिर होता है |
सौंदर्य और तेज | विशेष रूप से स्त्रियों को सुंदरता, आकर्षण और सौभाग्य की प्राप्ति होती है |
बाधाओं से रक्षा | ग्रहदोष, काली शक्तियाँ और शत्रुओं से सुरक्षा होती है |