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Lalita Hridaya Stotram

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Lalita Hridaya Stotram

ललिता हृदय स्तोत्रम् (Lalita Hridaya Stotram) एक अत्यंत पवित्र और प्रभावशाली स्तोत्र है जो देवी ललिता त्रिपुरा सुंदरी की स्तुति में रचा गया है। यह स्तोत्र शाक्त परंपरा में विशेष स्थान रखता है और इसे देवी के हृदय से संबंधित परम रहस्यात्मक ज्ञान के रूप में माना जाता है। यह स्तोत्र केवल भक्ति का ही नहीं, बल्कि तांत्रिक साधना और ध्यान का भी एक महत्वपूर्ण अंग है।

ललिता हृदय स्तोत्रम्

बालव्यक्तविभाकरामितनिभां भव्यप्रदां भारती-
मीषत्फुल्लमुखाम्बुजस्मितकरैराशाभवान्धापहाम् ।
पाशं साभयमङ्कुशं च वरदं सम्बिभ्रतीं भूतिदां
भ्राजन्तीं चतुरम्बुजाकृतकरैर्भक्त्या भजे षोडशीम् ॥

सुन्दरी सकलकल्मषापहा कोटिकञ्जकमनीयकान्तिका ।
कोटिकल्पकृतपुण्यकर्मणा पूजनीयपदपुण्यपुष्करा ॥
शर्वरीशसमसुन्दरानना श्रीशशक्तिसुकृताश्रयाश्रिता ।
सज्जनानुशरणीयसत्पदा सङ्कटे सुरगणैः सुवन्दिता ॥

या सुरासुररणे जवान्विता ह्याजघान जगदम्बिकाऽजिता ।
तां भजामि जननीं जगज्जनिं युद्धयुक्तदितिजान् सुदुर्जयान् ॥
योगिनां हृदयसङ्गतां शिवां योगयुक्तमनसां यतात्मनाम् ।
जाग्रतीं जगति यत्नतो द्विजा यां जपन्ति हृदि तां भजाम्यहम् ॥

कल्पकास्तु कलयन्ति कालिकां यत्कला कलिजनोपकारिका ।
कौलिकालिकलिताङ्घ्रिपङ्कजां तां भजामि कलिकल्मषापहाम् ॥
बालार्कानन्तशोचिर्न्निजतनुकिरणैर्द्दीपयन्तीं दिगन्तान्
दीप्तैर्द्देदीप्तमानां दनुजदलवनानल्पदावानलाभाम् ।

दान्तोदन्तोग्रचितां दलितदितिसुतां दर्शनीयां दुरन्तां
देवीं दीनार्द्रचित्तां हृदि मुदितमनाः षोडशीं संस्मरामि ॥
धीरान्धन्यान्धरित्रीधवविधृतशिरो धूतधूल्यब्जपादां
घृष्टान्धाराधराधो विनिधृतचपलाचारुचन्द्रप्रभाभाम् ।

धर्म्यान्धूतोपहारान् धरणिसुरधवोद्धारिणीं ध्येयरूपां
धीमद्धन्यातिधन्यान्धनदधनवृतां सुन्दरीं चिन्तयामि ॥
जयतु जयतु जल्पा योगिनी योगयुक्ता
जयतु जयतु सौम्या सुन्दरी सुन्दरास्या ।
जयतु जयतु पद्मा पद्मिनी केशवस्य
जयतु जयतु काली कालिनी कालकान्ता ॥
जयतु जयतु खर्वा षोडशी वेदहस्ता
जयतु जयतु धात्री धर्मिणी धातृशान्तिः ।

जयतु जयतु वाणी ब्रह्मणो ब्रह्मवन्द्या
जयतु जयतु दुर्गा दारिणी देवशत्रोः ॥
देवि त्वं सृष्टिकाले कमलभवभृता राजसी रक्तरूपा
रक्षाकाले त्वमम्बा हरिहृदयधृता सात्विकी श्वेतरूपा ।
भूरिक्रोधा भवान्ते भवभवनगता तामसी कृष्णरूपा
एताश्चान्यास्त्वमेव क्षितमनुजमला सुन्दरी केवलाद्या ॥
सुमलशमनमेतद्देवि गोप्यं गुणज्ञे
ग्रहणमननयोग्यं षोडशीयं खलघ्नम् ।
सुरतरुसमशीलं सम्प्रदं पाठकानां
प्रभवति हृदयाख्यं स्तोत्रमत्यन्तमान्यम् ॥
इदं त्रिपुरसुन्दर्याः षोडश्याः परमाद्भुतम् ।
यः श‍ृणोति नरः स्तोत्रं स सदा सुखमश्नुते ॥

ललिता हृदय स्तोत्र का उद्देश्य

  1. भक्त को देवी के हृदय से जोड़ना — यह स्तोत्र साधक को आत्मिक रूप से देवी के हृदय तक पहुंचाता है।
  2. आध्यात्मिक शुद्धि — यह स्तोत्र चित्त को निर्मल करता है और साधक को समर्पण की चरम अवस्था तक ले जाता है।
  3. तांत्रिक रहस्यों की कुंजी — इसमें वर्णित शब्द, बीजाक्षर और भाव, श्रीविद्या और श्रीचक्र के रहस्यों को उजागर करते हैं।

गुप्तता और मर्यादा

  • इस स्तोत्र को गुरु दीक्षा के बिना साधारणत: नहीं पढ़ा जाता।
  • इसे पढ़ने से पूर्व ललिता त्रिपुरा सुंदरी की शरणागति और अनुमति आवश्यक मानी जाती है।
  • कुछ परंपराओं में इसे केवल अनुभवी साधकों या श्रीविद्या उपासकों के लिए आरक्षित बताया गया है।

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