किरातमूर्तिस्तोत्रम् भगवान शिव को समर्पित एक प्रसिद्ध स्तोत्र है, जिसमें उन्हें “किरात” रूप में पूजा जाता है। ‘किरात’ शब्द का अर्थ है पर्वतीय या वनवासी शिकारी, और इस रूप में भगवान शिव का चित्रण महाभारत के ‘किरात अर्जुन संवाद’ से लिया गया है। यह संवाद महाभारत के वन पर्व में वर्णित है, जिसमें भगवान शिव एक किरात (शिकारी) के रूप में प्रकट होते हैं और अर्जुन को परीक्षा देकर पाशुपतास्त्र प्रदान करते हैं।
किरातमूर्तिस्तोत्रम् का महत्त्व
किरातमूर्ति रूप में शिव का स्तवन उनकी शक्ति, करुणा, और भक्ति को दर्शाता है। शिव के इस रूप में भक्ति करने से भक्त को साहस, संयम और विजय प्राप्त होती है। यह स्तोत्र उन लोगों के लिए विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है जो संघर्ष के समय में धैर्य और आंतरिक शक्ति प्राप्त करना चाहते हैं।
कथा पृष्ठभूमि
महाभारत में जब पांडव वनवास में थे, अर्जुन ने कठिन तपस्या की थी ताकि वह शिव से पाशुपतास्त्र प्राप्त कर सकें। इस दौरान शिव ने किरात (वनवासी शिकारी) के रूप में अर्जुन की परीक्षा ली। अर्जुन और शिव के बीच एक युद्ध हुआ, जिसमें अर्जुन ने अपनी भक्ति और धैर्य का परिचय दिया। अंत में शिव ने अपनी पहचान प्रकट की और अर्जुन को पाशुपतास्त्र का वरदान दिया।
स्त्रोत एवं अर्थ
किरातमूर्तिस्तोत्रम् का पाठ भगवान शिव के शक्ति, साहस और अद्वितीय रूप की स्तुति करता है। इसमें शिव के किरात रूप की महिमा का गान है और उनके वरदायक स्वरूप की प्रार्थना की जाती है। इसके पाठ से भक्त को आंतरिक शक्ति, मानसिक शांति और विजय की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र संकट के समय में शिव की कृपा प्राप्त करने का एक प्रभावी माध्यम है।
किरातमूर्तिस्तोत्रम् का प्रभाव
किरातमूर्तिस्तोत्रम् के नियमित पाठ से जीवन में आने वाले कठिनाई और चुनौतियों का सामना करने की शक्ति मिलती है। इसके अलावा, यह शिव की करुणा और भक्ति के माध्यम से मानसिक संतुलन और धैर्य प्रदान करता है।
यह स्तोत्र उन भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो शिव की पूजा शक्ति, समर्पण और धैर्य के रूप में करते हैं।
किरातमूर्तिस्तोत्रम् KIRATHAMOORTHY STOTRAM
नमः शिवाय भर्गाय लीलाशबररूपिणे ।
प्रपन्नार्तपरित्राणकरुणामसृणात्मने ॥१॥
पिञ्छोत्तंसं समानीलश्मश्रुविद्योतिताननम् ।
उदग्रारक्तनयनं गौरकौशेयवाससम् ॥२॥
कैलासशिखरोत्तुङ्गं छुरिकाचापधारिणम् ।
किरातमूर्तिं ध्यायामि परमं कुलदैवतम् ॥३॥
दुर्जनैर्बहुधाऽऽक्रान्तं भयसंभ्रान्तमानसम् ।
त्वदेकशरणं दीनं परिपालय नाथ, माम् ॥४॥
मह्यं द्रुह्यन्ति रिपवो बाह्याश्चाभ्यन्तराश्च ये।
विद्रावय दयासिन्धो चापज्यानिस्वनेन तान् ॥५॥
कूटकर्मप्रसक्तानां शत्रूणां शातनाय भोः ।
चालय छुरिकां घोरां शतकोटिसमुज्ज्वलाम् ॥६॥
विपद्दावानलज्वालासन्तप्तं रोगपीडितम् ।
कर्तव्यताविमूढं मां त्रायस्व गिरिशात्मज ॥७॥
नमः किरातवपुषे नमः क्षेमङ्कराय च ।
नमः पापविघाताय नमस्ते धर्मसेतवे ॥८॥
शिवषडक्षरस्तोत्रम् – २ KIRATHAMOORTHY STOTRAM
ओंकारसंज्ञाय समस्तवेद-
पुराणपुण्यागमपूजिताय
ओंकाररूप प्रियदर्शनाय
ओंकाररूपाय नमः शिवाय ॥१॥
नाना जराव्याधि विनाशनाय
नाथाय लोकस्य जगद्धिताय ।
नाना कलाज्ञान निदर्शनाय
तस्मै नकाराय नमः शिवाय ॥२॥
मात्सर्यदोषान्तक संभवाय
मातुः पितुः दुःखनिवरणाय ।
माहेश्वरी सूक्ष्मवराय नित्यं
तस्मै मकाराय नमः शिवाय ॥३॥
शीलव्रतज्ञानदृढव्रताय
शीलासुवर्णाय समुत्सुकाय ।
शीघ्राय नित्यं सुरसेविताय
तस्मै शिकाराय नमः शिवाय ॥४॥
वामार्धविद्युत्प्रतिमप्रभाय
वचो मनः कर्म विमोचनाय ।
वागीश्वरी सूक्ष्मवराय नित्यं
तस्मै वकाराय नमः शिवाय ॥५॥
यक्षोरगेन्द्रादिसुरावृताय
यक्षाङ्गनाजन्मविमोचनाय
यक्षेषु लोकेषु जगद्धिताय
तस्मै यकाराय नमः शिवाय ॥६॥
उत्फुल्लनीलोत्पललोचनायै
कृशानुचन्द्रार्कविलोचनाय ।
निरीश्वरायै निखिलेश्वराय
नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥७॥